इस्लामिक देश पाकिस्तान में हिंदू बच्चियों का उच्च शिक्षा ग्रहण कर कुछ बड़ा कर पाना बेहद कठिन है। परिस्थितियां कुछ ऐसी बना दी गई हैं कि उच्च शिक्षा तो छोड़िए प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करना भी इनके लिए दूर की कौड़ी लाने के समान है। कभी-कभार कुछ हिंदू बच्चियां अपने साहस के बूते कुछ कर दिखाना भी चाहें हैं तो षड़यंत्र रचकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। बाद में उल्टे-सीधे तर्क देकर फाइलें बंद कर दी जाती हैं।
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हाल के वर्षों में पाकिस्तान में ऐसी कई हिंदू बच्चियां षड़यंत्र का शिकार हुई हैं। वो मेडिकल की पढ़ाई कर अपने समाज और समुदाय की सेवा करना चाहती थीं, पर उन्हें इसका अवसर नहीं दिया गया। इससे पहले ही वो साजिश का शिकार हो गईं। ताजा मामला पाकिस्तान के सिंध प्रांत का है, जब खैरपुर मेडिकल कॉलेज की चौथे वर्ष की मेडिकल छात्रा स्नेहा केसरवानी अपने छात्रावास के कमरे में मृत पाईं गई।
पाकिस्तानी एक्टिविस्ट डॉ. सोरथ सिंधु का कहना है कि स्नेहा के आसपास परिस्थितियां ऐसी बुनी गईं कि उसे किसी न किसी तरह मौत का निवाला बनना ही था। बताते हैं कि स्नेहा अपने कमरे में तीन अन्य दोस्तों के साथ पढ़ रही थी। तभी अचानक मुर्छित होकर गिर पड़ी। दोस्तों ने सीपीआर दिया, पर काम नहीं आया। हालांकि, इस मामले में अस्पताल और कॉलेज प्रशासन का विरोधाभासी बयान है। छात्रा की दोस्तों और अस्पताल ने मौत का कारण हृदयाघात बताया है, जबकि कॉलेज प्रशासन ने पुलिस को दिए गए बयान में कहा है कि स्नेहा का शव छात्रावास के कमरे में पाया गया था।
हालांकि, केएमसी, खैरपुर मीर के विभागाध्यक्ष एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. हरीश मखीजा मेडिकल काॅलेज प्रशासन के बयान से सहमत नहीं। मेडिकल छात्र स्नेह सिंधु के दहारकी की रहने वाली थी। उसकी उत्कृष्ट बौद्धिक क्षमता, सम्मानजनक आचरण, नैतिकता और कुशल संचार कौशल के इलाके के लोग कायल थे। डाॅ. मखीजा कहते हैं, ऐसी छात्रा का इस तरह दिल का दौरा पड़ना संदेह पैदा करता है। उनके अनुसार, मरने से पहल वह अपने रूम मेट के साथ पढ़ाई कर रही थी। अगली सुबह उन्हें बाल रोग की परीक्षा देनी थी।
डाॅ. सोरथ सिंधु के अनुसार, मृत्यु से पहले स्नेहा की आंखें अचानक ऊपर की ओर टंग गईं। साथ ही उसे घुटन का एहसास हुआ और चेतना खो बैठी। पोस्टमार्टम में मृत्यु का कारण हृदयाघात बताया गया है। प्रश्न यह है कि ऐसी नौबत आई ही क्यों कि परीक्षा से ठीक कुछ घंटे पहले इस 22-23 वर्षीय मेडिकल छात्रा को दिल का दौरा पड़ा और मौत हो गई? सोशल मीडिया पर पाकिस्तान में उत्पीड़न के शिकार हिंदुओं की आवाज बुलंद करने वाले हैंडल ‘पाकिस्तान अनटोल्ड‘ ने खुलासा किया है कि स्नेहा ज्योति केसवानी की हृदयघात की वजह दरअसल, मेडिकल काॅलेज के होस्टल के वाॅर्डन शाहजहां शेख और डाॅ. अब्दुल अलाहे हैं। वे दोनों स्नेहा के पीछे पड़े हुए थे। उसका उत्पीड़न किया करते थे।
बात-बे-बात स्नेहा को अपमानित करते थे जिसकी वजह से वह परेशान रहने लगी थी। इस बाबत उसने कई बार अपने सह-पाठियों से बात की थी, पर किसी ने उसकी मदद नहीं की। जिस दिन उसे दिल का दौरा पड़ा, उस दिन भी वाॅर्डन ने होस्टल की छात्राओं के सामने अपमानित किया था। स्नेहा मेडिकल काॅलेज में चौथे वर्ष की छात्रा थी। इस तरह सबके सामने अपमानित किया जाना शायद उसके दिल को चुभ गया और सदमे में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।
मामले का एक चिंता तक पहलू यह है कि इन बातों का खुलासा होने के बावजूद वाॅर्डन शाहजहां शेख और डाॅ. अब्दुल अलाहे के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। शिकायत देने के बावजूद न तो मेडिकल कॉलेज प्रशासन और न ही स्थानीय पुलिस ने आरोपियों पर मुकदमा दर्ज किया है।
यह कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले लरकाना की मेडिकल छात्रा निमृता अमृता माहेर चांदनी की मौत के मामले में भी ऐसा ही हुआ था। शुरुआत में मामला जोर-शोर से उठाया गया। बाद में फाइल बंद कर दी गई। निमृता अमरता माहेर चंदानी का शव भी छात्रावास में रहस्यमय परिस्थियों में पाया गया था। पाकिस्तान के अखबार ‘डान’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट हो चका है कि लरकाना की छात्रा निमृता की यौन उत्पीड़न के बाद हत्या की गई थी। यह घटना 16 सितंबर 2019 की है।
निमृता अमृता माहेर चांदनी सिंध के लरकाना के बीबी आसिफा डेंटल कॉलेज की अंतिम वर्ष की छात्रा थी। निमृता अपने छात्रावास के कमरे में मृत पाई गई थी। पुलिस सर्जन डॉ. करार अहमद अब्बासी के अनुसार, लरकाना की छात्रा की बलात्कार के बाद गला घोंटकर हत्या की गई थी।
उन्होंने कहा, पोस्टमार्टम रिपोर्ट से स्पष्ट है कि निमृता का गला घोंटा गया या उसे लटकाया गया। पीड़िता की गर्दन पर घाव के निशान मिले थे। यह घाव दुपट्टे के बजाय, रस्सी जैसी चीज से बने थे। इसके अलावा कपड़ों पर पड़े वीर्य के दाग और शुक्राणु के अंशों से पता चला कि मृत्यु से पहले उसके साथ यौन क्रिया की गई थी। पुरुष डीएनए से पुष्टि हुई है कि उसके साथ बलात्कार हुआ था।
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हालांकि, इस मामले में भी चांदनी के परिजनों को बेटी का इंसाफ नहीं मिला है। कराची के डॉव मेडिकल कॉलेज में मेडिकल कंसल्टेंट रहे निमृता के भाई डॉ. विशाल के अनुसार, उसकी बहन की हत्या की घटना को कॉलेज प्रशासन और दूसरी एजेंसियों ने आत्महत्या की शक्ल देकर दबाने का प्रयास किया था। यहां तक कहा गया कि अमृता की गर्दन पर केबल तारों से बने निशान दरअसल उसके आत्महत्या करने की ओर इशारा करते हैं। जबकि उसके हाथों पर घाव चुगली खा रहे थे कि हत्या से पहले उसके साथ कुछ बुरा हुआ है। इस मामले में लरकाना पुलिस ने निमृता के डेंटल कॉलेज के दो छात्रों को हिरासत में लिया था। दोनों उसके बैचमेट थे। मामले में सिंध उच्च न्यायालय द्वारा दखल देने के बावजूद इस घटना को लेकर बहुत सारे रहस्य अब भी बने हुए हैं।
यह घटनाएं उच्च शिक्षा ग्रहण करने वाली हिंदू छात्राओं से संबंधित हैं, जबकि पाकिस्तान की अधिकांश हिंदू बच्चियां उच्च शिक्षा की दहलीज तक पहुंच ही नहीं पातीं। इससे पहले ही ‘हर’ ली जाती हैं। कट्टरपंथियों और तहरीक-ए-लब्बैक जैसे इस्लामी आतंकवादी संगठनों ने हिंदुओं के मन में ऐसा भय भरा है कि वे अपनी बच्चियों को आगे शिक्षा दिलाने के नाम पर घर से बाहर जाने नहीं देते। जबकि हिंदू बच्चियां अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं हैं। पाकिस्तान में हिंदू बच्चियों की अपहरण, बलात्कार और धर्मांतरण की घटनाएं आम सी बात हो गई हैं। इस देश में सरकार चाहे किसी की भी हो इच्छा शक्ति के अभाव में ऐसी घटनाओं पर लगाम नहीं लग पा रहा है।
‘वाॅयस ऑफ पाकिस्तान माइनाॅरिटी’ के एक आंकड़ें के अनुसार, गत महीने हिंदू समुदाय की तीन बेटियां इंदिरा मेघवार, श्रीदेवी और राधिका सिंध प्रांत के टांडो जाम, टांडो मोहम्मद खान और लरकाना में अपहरण, बलात्कार और र्धामांतरण का शिकार हुईं। अगस्त महीने में 15 वर्षीय कृतिका की दरगाह उस्मान शाह में बलात्कार के बाद हत्या कर दी गई। जबकि सियाल कोट में 13 साल की ईसाई बच्ची सानिया अमीन का अपहरण कर धर्मातरण कराया गया। पाकिस्तान के मानवाधिकार कार्यकर्ता उस्मान बट कहते हैं, ‘‘जब देश में किसी खास कौम को लेकर यह हालात हों तो भला उनकी बच्चियां कैसे घरों के बाहर निकल सकती हैं।’’
इसके अलावा पाकिस्तान में हिंदू छात्रों को भेदभाव, धार्मिक असहिष्णुता और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुँच का भी सामना करना पड़ रहा है। पाकिस्तान में हिंदू सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हैं। जनसंख्या के लिहाज से देश में इनकी हिस्सेदारी लगभग 1.85 प्रतिशत है। बावजूद इसके उच्च शिक्षा और बड़ी नौकरी तक इनकी पहुंच बेहद सीमित है। रही बात पाकिस्तान में छात्र आबादी की तो यह एक छोटा सा हिस्सा मात्र है। विशेष कर ग्रामीण क्षेत्र में हिंदू छात्र बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। मुस्लिम छात्रों की तुलमाना में हिंदू छात्रों का ड्रापआउट प्रतिशत 70 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
पाकिस्तान के हिंदू संगठनों का कहना है कि जो छात्र पढ़ने जाते हैं उन्हें स्कूलों में अक्सर सामाजिक बहिष्कार और बदमाशी का सामना करना पड़ता है। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 60 प्रतिशत हिंदू छात्रों ने अपनी धार्मिक पहचान के कारण अपने शैक्षिक वातावरण में असुरक्षित महसूस करने की सूचना दी। कई स्कूलों के पाठ्यक्रम में गैर-मुसलमानों के खिलाफ पक्षपातपूर्ण सामग्री होती है। नेशनल कमीशन फॉर जस्टिस एंड पीस के एक अध्ययनों में पाया गया कि पाकिस्तान में इस्तेमाल की जाने वाली लगभग 20-30 प्रतिशत पाठ्यपुस्तकों में ऐसी सामग्री है जिसे हिंदुओं सहित धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति भेदभावपूर्ण माना जा सकता है। कई स्कूलों में, इस्लामिक अध्ययन अनिवार्य विषय है। यह हिंदू छात्रों को इस्लामी सामग्री का अध्ययन करने के लिए मजबूर करता है, जो उनके लिए असुविधाजनक है।
पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार, 5 प्रतिशत से भी कम स्कूल हिंदू छात्रों को इस्लामिक अध्ययन का विकल्प देते हैं। उच्च शिक्षा में अल्पसंख्यकों के लिए कुछ कोटा तय है, पर उनके खिलाफ परिस्थितियां ऐसी बना दी गई हैं कि वे चाहकर भी इसका लाभ नहीं उठाते। लड़कियों के मामले में तो यह खास तौर से देखा गया गया है। काॅलेजों में पढ़ने वाले हिंदू छात्रों से भी भेदभाव किया जाता है। उनके उत्पीड़न का कोई मौका नहीं छोड़ा जाता। यहां तक कि कॉलेज-यूनिवर्सिटी में भी शिक्षा ग्रहण रहे हिंदू छात्र अपने पर्व-त्योहार पर खुशी का जाहिर नहीं कर सकते। पिछले साल पंजाब यूनिवर्सिटी में होली मना रहे हिंदू छात्रों पर इस्लामिक मानसिकता रखने वाले मुस्लिम छात्रों ने हमला कर दिया था।
पाकिस्तान के अल्पसंख्यक छात्र शिक्षा छात्रवृत्ति का भी लाभ नहीं उठा पाते। एक रिपोर्ट में पाया गया कि इस मामले में माकूल प्रशासनिक सहयोग नहीं मिल पाने के कारण 15 प्रतिशत से भी कम पात्र हिंदू छात्र छात्रवृत्तियों का लाभ नहीं उठा पाते। सामाजिक और नीति विज्ञान संस्थान के एक अध्ययन में पाया गया कि हिंदू छात्रों की माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तरों पर स्कूल छोड़ने की दर अधिक है। 70 प्रशित हिंदू लड़कियां मैट्रिकुलेशन पूरी करने से पहले ही स्कूल छोड़ देती हैं।
सॉलिडैरिटी एंड पीस मूवमेंट के अनुसार, हिंदू छात्रों की पढ़ाई की राह में सबसे बड़ा रोड़ा धर्मांतरण है। एक आंकड़े के अनुसार, हर साल 1,000 से 1,500 हिंदू लड़कियों का जबरन धर्मांतरण और विवाह किया जाता है, जो उनकी शिक्षा के रास्ते की बहुत बड़ी बाधा है। अपहरण और जबरन धर्मांतरण का डर से सिंह सहित पाकिस्तान कुछ क्षेत्रों में, विशेष रूप से ग्रामीण सिंध में हिंदू लड़कियों को स्कूल भेजना उनके मां-बाप पसंद नहीं करते। हालांकि, सिंध मानवाधिकार आयोग और पाकिस्तान हिंदू परिषद जैसे संगठन हिंदू छात्रों के अधिकारों की वकालत करने, कानूनी सहायता, छात्रवृत्ति और भेदभाव का सामना पहुंचा रहे हैं। इसके बावजूद इस्लामिक कट्टरपंथियों के आगे ये सारे तमाम बौने साबित हो रहे हैं।
परिणाम यह है कि सिंध के थारपारकर जैसे क्षेत्रों में, जहां हिंदू आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा वास करता है, वहां की हिंदू लड़कियों की साक्षरता दर 10 प्रतिशत से भी कम है। पाकिस्तानी शिक्षा वकालत समूह अलिफ ऐलान के एक सर्वेक्षण के अनुसार, सिंध के घोटकी घटना 2019 में एक हिंदू प्रिंसिपल ने अपने इलाके की हिंदू बच्चियों में जब शिक्षा के प्रति अलख जगाने का प्रयास किया तो उन्हें ईशनिंदा के आरोप फंसा कर जेल भिजवा दिया गया। इस दौरान दंगे भी कराए गए और हिंदुओं की संपत्तियों को नुकसान भी पहुंचाया गया। ऐसी परिस्थितियों में कोई कौम भला अपने बच्चों को शिक्षित कराने का साहस कैसे कर करेगी।
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