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ओपन बुक एग्जाम (ओबीई): किताबें खोलकर परीक्षा – फायदे, चुनौती और प्रश्न

Published by
मनीश कुमार झा

ओपन बुक एग्जाम (ओबीई), पारंपरिक परीक्षाओं की सीमाओं को तोड़ते हुए, छात्रों को ज्ञान के वास्तविक जीवन में उपयोग की क्षमता का आकलन करने का एक माध्यम हो सकता है। क्लोज़्ड बुक एग्जाम (सीबीई) से अलग, ओबीई में छात्रों को किताबें और नोट्स देखने की अनुमति मिलती है। यह परीक्षा समझने और सोचने पर ज्यादा ध्यान देती है, ताकि छात्र परीक्षा में अच्छे मार्क्स लाने के लिए रटने की परंपरा से मुक्त होकर, प्रश्न की गहराई में उतर सकें और लॉजिकल-आंसर दे सकें।

ओबीई छात्रों की समस्या सुलझाने की क्षमता को परखती है। यह परीक्षा न केवल याददाश्त की जाँच करती है, बल्कि छात्रों की सब्जेक्ट-अंडरस्टैंडिंग, एनालिटिकल-एबिलिटी और प्रॉब्लम-सॉल्विंग-एबिलिटी को भी टेस्ट करती है। यह रटने पर आधारित नहीं, बल्कि ज्ञान के प्रैक्टिकल उपयोग पर केंद्रित होती है।

भारत जैसे विकासशील देश में, जहां नॉलेज-इकोनोमी का उदय हो रहा है, ओबीई छात्रों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों के लिए तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कुछ चुनिंदा स्कूलों में नवंबर-दिसंबर में होगी ओबीई!

सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) क्लास 9 से 12 के छात्रों के लिए एक नया प्रयोग शुरू करने जा रहा है। कुछ चुनिंदा स्कूलों में नवंबर-दिसंबर के दौरान ओबीई ली जाएंगी-

(1) क्लास 9 और 10 में इंग्लिश, मैथ, और साइंस के लिए।

(2) क्लास 11 और 12 में इंग्लिश, मैथ, और बायोलॉजी के लिए।

सीबीएसई द्वारा ओबीई लेने के दीर्घकालिक लाभ क्या हो सकते हैं?

सीबीई में ज्यादातर सवाल याद करने पर आधारित होते हैं, लेकिन असली दुनिया में हमें सिर्फ याद रखने भर से काम नहीं चलता। हमें समझने, सोचने, और समस्याओं को हल करने की भी जरूरत होती है। ओबीई इस तरह के स्किल्स को बढ़ावा दे सकती हैं क्योकि यह परीक्षा में छात्रों को जानकारी ढूंढने, समझने, और उसका सही इस्तेमाल करने की क्षमता को परखती हैं। इससे उन्हें रटने की अत्याधिक आदत से छुटकारा मिल सकता है और वे बेहतर सीखने वाले बन सकते हैं। मुख्य रूप से, ओबीई छात्रों की असली क्षमता को सामने लाने में मदद कर सकती हैं, जिससे वे देश के विकास में योगदान दे सकते हैं।

ओबीई के लिए सबसे ज्यादा जरूरी क्या होगा?

सबसे ज्यादा जरूरी होगा की स्कूल टीचर्स अभी की तुलना में ज्यादा मेहनत कर अपने छात्रों के सब्जेक्ट-अंडरस्टैंडिंग, प्रॉब्लम-सॉल्विंग एबिलिटी, और ऐनलिटिक होने पर ध्यान दे। साथ ही, सीबीएसई को छात्रों के ज्ञान को पूरी तरह से परखने के लिए कुएस्शन-पेपर्स में सवालों को सीधे-सीधे न पूछकर नए तरीके से पूछना होगा, ताकि छात्र अपना ज्ञान पूरी तरह से दिखा सकें। साथ ही, सीबीएसई को बहुत ध्यान देना होगा ताकि एग्जामिनर छात्रों के आंसर कॉपी को काफी ज्यादा ध्यान देकर जांचे। ऐसा न होने पर गलत मार्किंग की सम्भावना प्रबल रूप से हो सकता है। उदाहरण के लिए, सीबीएसई के मैथ सब्जेक्ट के क्लास 11 और 12 में ‘प्रोबेबिलिटी’ पढ़ाया जाता है। ओबीई के तहत ‘प्रोबेबिलिटी’ के आसान सवालों को कुछ इस प्रकार से पूछा जा सकता है।

सैम्पल कुएस्शन:

निम्नलिखित सैम्पल डेटा का उपयोग करके अगले 4 प्रश्नों का उत्तर दीजिए:
25, 29, 29, 33, 36, 38, 40, 43, 43, 43, 49, 53, 57, 60, 68, 72, 77, 86, 90, 99

(1) दिए गए डेटा का मीडियन (माध्यिका) है:

(a) 67 (b) 46 (c) 54 (d) 78 (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए ________

(2) दिए गए डेटा को एक सैंपल (नमूने) के रूप में मानते हुए, इसका वरियन्स (प्रसरण) है:

(a) 506.562 (b) 488.857 (c) 480.579 (d) 561.761 (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए

(3) 65वां परसेंटाइल (प्रतिशतक) है:

(a) 52.1 (b) 69.3 (c) 61.4 (d) 55.75 (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए

(4) अंतर-चतुर्थक परिसर (इंटर क्वार्टीले रेंज) है:

(a) 42.75 (b) 75.6 (c) 57.6 (d) 82.4 (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए

सही उत्तर हैं:

(1): विकल्प (b) – 46

(2): विकल्प (c) – 480.579

(3): विकल्प (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए 58.95

(4): विकल्प (e) इनमें से कोई नहीं, स्पष्ट कीजिए 34.5

क्या सीबीएसई के सभी स्कूल तैयार हैं?

सवाल यह उठता है कि …

अगर ओबीई का यह प्रयोग सफल हुआ तो क्या सीबीएसई के 29766 एफिलिएटेड स्कूलों में ओबीई के लिए इस तरह से स्टूडेंट्स को तैयार कराने वाले टीचर्स उपलब्ध हैं?

गलत मार्किंग की सम्भावना न हो इसके लिए सीबीएसई क्या पुख्ता व्यवस्था करेगी?

क्या सीबीएसई ने शिक्षकों को ओबीई के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया है और क्या उनके पास मूल्यांकन के लिए एक स्पष्ट और विश्वसनीय ढांचा है?

ओबीई: रिसर्च क्या कहता हैं? संभावित फायदे और चुनौतियां जानिए!

ईआरआईसी (एजुकेशन रिसोर्सेज इनफार्मेशन सेन्टर) अमेरिका सरकार के शिक्षा विभाग का एक कार्यक्रम है। यह शिक्षा से जुड़े रिसर्च का एक बड़ा ऑनलाइन संग्रह है। ईआरआईसी पर ‘दी जर्नल ऑफ़ इफेक्टिव टीचिंग’ द्वारा प्रकाशित रिसर्च पेपर के अनुसार,

संभावित फायदे और सीबीएसई के लिए प्रश्न:

ओबीई सिस्टम परीक्षा का डर कम कर सकता है और रटने के बजाय नॉलेज डेवलपमेंट को बढ़ावा दे सकता है।

सीबीएसई कैसे सुनिश्चित करेगा कि छात्रों में रटने की प्रवृत्ति खत्म हो और वास्तविक सीखने को बढ़ावा मिले?

ओबीई के कारण छात्र कई स्रोतों से पढ़ते हैं और सब्जेक्ट को गहराई से समझने की कोशिश करते हैं; छात्र खुद से सिख सकते हैं और जानकारी खोजते हैं, जो ‘एक्टिव लर्निंग’ को बढ़ावा देता है।

सीबीएसई यह कैसे सुनिश्चित करेगा कि छात्र सही और विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करें, न कि गलत या भ्रामक जानकारी का?

ओबीई छात्रों को सब्जेक्ट से रिलेटेड एनालिटिकल-थॉट का उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है। ओबीई खुद में ही सीखने का एक तरीका हो सकता है।

सीबीएसई कैसे सुनिश्चित करेगा कि सभी छात्रों को ओबीई के माध्यम से एनालिटिकल-थॉट विकसित करने के समान अवसर मिलें, खासकर उन छात्रों को जो पहले से ही एनालिटिकल-थॉट में कम मजबूत हैं? या, उन छात्रों को जो कम संसाधनों वाले क्षेत्रों से आते हैं?

छात्र क्लोज्ड-बुक एग्जाम (सीबीई) की तुलना में ओबीई के लिए तैयारी करते समय अपनी पाठ्यपुस्तकों को अधिक महत्व दे सकते है और उसका अधिक बार और अधिक व्यापक रूप से उपयोग कर सकते हैं।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि छात्र केवल पाठ्यपुस्तकों तक सीमित न रहें और विभिन्न स्रोतों का उपयोग करें, सीबीएसई क्या कदम उठा सकता है?

आज के बदलते कार्यक्षेत्र में, निर्णय लेने का काम कुछ हद तक ओबीई जैसा ही है; अच्छे फैसले लेने के लिए मैनेजर्स को याद किए गए ज्ञान पर निर्भर नहीं रहना पड़ता।

ओबीई के माध्यम से छात्रों को कौन सी महत्वपूर्ण कौशल विकसित करने के लिए तैयार किया जाएगा ताकि वे भविष्य के कार्यक्षेत्र में सफल हो सकें? सीबीएसई इस संबंध में क्या कदम उठा सकता है?

कई संस्थानों को लगता है कि ओबीई छात्रों को वास्तविक दुनिया के लिए बेहतर तैयार कर सकती है। कई छात्र भविष्य में पायलट, प्रोग्राम मैनेजर या एकाउंटेंट जैसे पदों पर काम कर सकते हैं। इन सभी पदों पर काम करने के लिए सीखने से ज्यादा जानकारी तक पहुंचना और उसका इस्तेमाल करना जरूरी हो सकता है।

क्या ओबीई के माध्यम से विकसित की गई कौशल सभी पेशों के लिए समान रूप से प्रासंगिक हैं? क्या सीबीएसई यह सुनिश्चित करने के लिए कोई विशिष्ट दिशानिर्देश स्कूलों को जारी करने वाला है कि ओबीई से विभिन्न करियर पथों के लिए छात्रों को कैसे तैयार करे?

ओबीई से, टीचर्स को छात्रों के सीखने का बेहतर आंकलन करने में मदद मिल सकती है।

ओबीई के माध्यम से छात्रों के सीखने का आंकलन करने के लिए शिक्षकों को किन नए तरीकों और उपकरणों को अपनाना चाहिए? क्या सीबीएसई शिक्षकों को ओबीई के प्रभावी आकलन के लिए प्रशिक्षित करने के लिए कोई कार्यक्रम चला सकता है?

संभावित चुनौतियां और सीबीएसई के लिए प्रश्न:
अगर ओबीई सिस्टम लागू होता है तो कुछ या कई छात्रों को लग सकता है कि ‘अब ज्यादा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है’। स्कूल मैनेजमेंट, टीचर्स और पेरेंट्स को यह सुनिश्चित करना होगा की छात्रों की तैयारी कम न रह जाये। छात्रों का बड़े पैमाने पर काउंसलिंग करने की जरूरत पड़ सकती है। बड़ा सवाल यह है कि …

सीबीएसई इस संभावित समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाने वाला है?

क्या सीबीएसई ने इस बात पर गंभीरता से विचार किया है कि ओबीई के कारण छात्रों में आलस्य की प्रवृत्ति बढ़ सकती है?

क्या सीबीएसई के पास छात्रों को समझाने के लिए कोई व्यापक योजना है कि ओबीई का मतलब यह नहीं है कि उन्हें कम मेहनत करनी है, बल्कि यह एक अलग तरह से सीखने और सोचने का तरीका है?

सीबीएसई को यह भी स्पष्ट करना होगा कि ओबीई के तहत मूल्यांकन के मानदंड क्या होंगे ताकि छात्रों को यह पता चल सके कि उन्हें किस तरह की तैयारी करनी है।

(2) ओबीई के दौरान कुछ या कई छात्रों को जवाब ढूंढने में ज्यादा समय लग सकता हैं और कुछ छात्र परीक्षा देने के लिए तैयारी भी कम कर सकते है।

सीबीएसई ने यह सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय कर सकती हैं कि सभी छात्र ओबीई के दौरान समय का कुशलता से उपयोग करें और उचित तैयारी करें?

इसके अलावा, ओबीई से लॉन्ग-टर्म मेमोरी पर भी असर पड़ सकता है।

सीबीएसई ने इस बात को सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठा सकती हैं कि छात्र लंबी अवधि तक अपने ज्ञान को याद रख सके?

स्कूलों द्वारा छात्रों को प्रभावी ढंग से ओबीई के लिए कैसे तैयार किया जाए, इस बारे में सीबीएसई ने क्या दिशानिर्देश बनाने जा रही हैं?

विशेषज्ञों का मानना है कि ओबीई से छात्रों की गहन समझ और विश्लेषणात्मक क्षमता बढ़ सकती है।

सीबीएसई ने इस दावे का समर्थन करने के लिए क्या कोई शोध या अध्ययन करवाए हैं?

एग्जाम सिस्टम बदलने से छात्रों का प्रदर्शन भी बदल सकता है। कुछ अध्ययनों में पाया गया है कि लगातार ओबीई देने वाले छात्रों के फाइनल में सीबीई होने पर परीक्षा में कुछ छात्रों को कम अंक आए हैं।

सीबीएसई ने इस बात पर गहन अध्ययन किया है कि ओबीई और सीबीई के बीच इस तरह के अंतर को कैसे कम किया जा सकता है?

क्या सीबीएसई ने यह सुनिश्चित करने के लिए कोई विशिष्ट पाठ्यक्रम या मॉड्यूल विकसित करने जा रहा हैं कि ओबीई के माध्यम से सीखने वाले छात्र सीबीई के लिए भी अच्छी तरह से तैयार हों?

ओबीई और सीबीई के बीच एक संतुलन बनाने की आवश्यकता है।

सीबीएसई इस बात को ध्यान में रखते हुए क्या कदम उठा सकता है?

शिक्षक और अभिभावक भी इस बात को लेकर चिंतित हो सकते है कि स्कूल में ओबीई के बाद, सीबीई पर आधारित किसी प्रतियोगिता परीक्षा में छात्रों के अंक कम आने से उनका मनोबल काफी गिर सकता है और इससे आत्महत्या की संख्या भी बढ़ सकती है।

सीबीएसई छात्रों के मनोबल को बनाए रखने और उन्हें ओबीई के साथ-साथ सीबीई के लिए भी तैयार रखने के लिए क्या उपाय कर सकती है?

ओबीई की उम्मीद छात्रों की पढ़ाई की प्रेरणा को कम कर सकती है।

सीबीएसई ने छात्रों की पढ़ाई के प्रति रुचि बनाए रखने और उन्हें ओबीई के लिए तैयार करने के लिए क्या रणनीतियां बना सकती है?

शिक्षक और अभिभावक भी इस बात को लेकर चिंतित हो सकते हैं कि ओबीई के कारण छात्रों में आत्म-अनुशासन की कमी हो सकती है।

सीबीएसई ने शिक्षकों को छात्रों में आत्म-अनुशासन बढ़ाने के लिए क्या निर्देश दिए हैं?

ओबीई होने पर छात्रों में क्लास में कम आने की प्रवर्ति बढ़ सकती है, साथ ही वे पैरेंट, टीचर, और फ्रेंड से भी कम मदद ले सकते है।

सीबीएसई ने यह सुनिश्चित करने के लिए क्या कदम उठाए जा रही हैं कि ओबीई के दौरान भी छात्र नियमित रूप से कक्षाओं में आएं और शिक्षकों तथा साथियों से बातचीत करें?

ओबीई के कारण छात्रों में स्व-अध्ययन की आदत तो विकसित होती है, लेकिन सामाजिक कौशल और सहयोग की भावना कम हो सकती है।

सीबीएसई ने इस बात को ध्यान में रखते हुए स्कूलों को क्या निर्देश जारी करने जा रही हैं?

ओबीई छात्रों को स्वयं जानकारी खोजने और समझने का अवसर प्रदान करता है, जो एक बहुत अच्छा तरीका है। लेकिन जब परीक्षा में बात आती है, तो कई बार छात्रों को सही और प्रासंगिक जानकारी का चयन करने में मुश्किल होती है। शिक्षकों के लिए यह एक बड़ी चुनौती हो सकता है कि वे कैसे सुनिश्चित करें कि “छात्रों ने जो कुछ सीखा है, उसे सही ढंग से परीक्षा में प्रस्तुत करें”। सवाल यह उठता है कि …

क्या ओबीई के मूल्यांकन तरीकों में छात्रों की इस क्षमता को भी परखा जायेगा कि वे जानकारी का विश्लेषण कैसे करते हैं?

क्या परीक्षाएं सिर्फ याद किए हुए तथ्यों को जांचने तक सीमित होने वाली हैं, या वे छात्रों की गहरी समझ और तार्किक सोच को भी परखने का प्रयास करेगी?

अगर हम चाहते हैं कि छात्र ओबीई के माध्यम से सच्चा ज्ञान प्राप्त करें, तो हमें ऐसे मूल्यांकन तरीके विकसित करने होंगे जो न केवल छात्रों के ज्ञान को जांचें, बल्कि यह भी देखें कि वे उस ज्ञान का उपयोग वास्तविक जीवन की स्थितियों में कैसे करते हैं।

परीक्षाएं सिर्फ सीखने का आंकलन करने से ज्यादा फायदेमंद हो सकती हैं। अच्छी परीक्षाएं सीखने को मजबूत बना सकती हैं और चीजों को लंबे समय तक याद रखने में मदद कर सकती हैं। इसलिए, सवाल यह नहीं है कि परीक्षाएं फायदेमंद हैं या नहीं, बल्कि यह है कि उन्हें कैसे लिया जाए। कुछ रिसर्च बताते हैं कि ओबीई में छात्र भले ही अच्छा स्कोर कर लें, लेकिन उन्हें लंबे समय तक चीजें याद नहीं रहतीं।

सीबीएसई ने इस बात को ध्यान में रखते हुए ओबीई के मूल्यांकन प्रणाली किस प्रकार से तैयार करने वाली है ताकि छात्रों को दीर्घकालिक रूप से ज्ञान प्राप्त हो सके?

ओबीई में मूल्यांकन के लिए ऐसे प्रश्न पूछे जाने चाहिए जो छात्रों के गहन समझ को परखें और जो छात्रों की दीर्घकालिक याददाश्त को मजबूत कर सके।

भारत में ओबीई सिस्टम लागू होने पर स्कूल, कोचिंग, बुक पब्लिकेशन इंडस्ट्री, और राज्यों के स्कूल बोर्ड पर क्या असर हो सकता है?

भारत में कोचिंग संस्थानों का बढ़ता प्रभाव और कई स्कूलों में अपेक्षा से कम वेतन के कारण अधिकतर स्कूलों में अच्छे शिक्षकों की कमी है। इस बड़ी वजह से, भारत में कोचिंग इंडस्ट्री का बोलबाला है और इसका बाजार मूल्य 58088 करोड़ रुपये तक पहुँच चुका है।

ओबीई सिस्टम के लागू होने से छात्रों को ऐनलिटिक और प्रॉब्लम-सॉल्विंग स्किल्स की काफी आवश्यकता होगी, जिससे कई स्कूलों को अभी की तुलना में काफी बेहतर क्वालिफिकेशन वाले टीचर्स की जरूरत पड़ेगी और उन्हें अभी की तुलना में अधिक वेतन भी देना होगा। इस मुख्य बदलाव के कारण स्कूल टीचिंग सेक्टर में ऐसे योग्य लोगों का आकर्षण बढ़ेगा, जो अभी कम ही देखने को मिलता है; रोजगार के नए अवसर पैदा हो सकते हैं।

ओबीई सिस्टम में छात्रों को सेल्फ-स्टडी और प्रॉब्लम सॉल्विंग के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इससे कोचिंग संस्थानों पर निर्भरता कम हो सकती है। हालांकि, प्रारंभिक चरण में, कुछ छात्रों को ओबीई सिस्टम के अनुकूल होने में समय लग सकता है, जिससे कोचिंग संस्थानों की मांग में थोड़ी वृद्धि हो सकती है। कोचिंग इंडस्ट्री को भी अपने पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों को ओबीई के अनुरूप बदलना होगा।

ओबीई सिस्टम लागू होने पर एनसीईआरटी को वर्तमान में स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली कई किताबों को अपग्रेड करना पड़ सकता है क्योंकि अभी वो सभी ओबीई के अनुरूप नहीं हैं। भारत में कई प्राइवेट बुक पब्लिशिंग कंपनियों को भी नये सिरे से ओबीई अनुरूप स्कूल की किताबों को अपग्रेड करना पड़ सकता है।

ओबीई के लिए सीबीएसई के इस प्रयोग से प्रेरित होकर, भारत के अन्य राज्यों के स्कूल बोर्ड भी इस पद्धति को अपनाने पर विचार कर सकते हैं।

पेपर लीक के खतरे को कम करने में ओबीई की भूमिका!

हाल के वर्षों में भारत में प्रश्न पत्र लीक की समस्या एक गंभीर चुनौती बन गई है। ‘नीट’ जैसी प्रमुख परीक्षाओं में भी पेपर लीक होने की घटनाएँ सामने आई हैं, जिससे शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर गहरा प्रश्न चिह्न लगा है। पारंपरिक सीबीई में प्रश्न पत्रों की गोपनीयता सुनिश्चित करना एक जटिल कार्य है। प्रश्न पत्र लीक करने वाले गिरोह इन कमजोरियों का लाभ उठाते हैं, जिससे परीक्षा की निष्पक्षता और मेहनती छात्रों के हित प्रभावित होते हैं।

ओबीई इस समस्या का एक समाधान हो सकता है। चुकि इस सिस्टम में, छात्रों को परीक्षा के दौरान किताबें, नोट्स और अन्य संदर्भ सामग्री का उपयोग करने की अनुमति होती है, इससे प्रश्न पत्र की गोपनीयता का महत्व थोड़ा कम हो जाता है। छात्रों के पास संदर्भ सामग्री की पहुंच होने के कारण प्रश्न पत्र लीक करने का लाभ भी काफी कम हो जाता है। ऐसा होने पर पेपर लीक करने वाले गिरोहों का हौसला पस्त हो सकता है, क्योंकि वे जानते हैं कि लीक किए गए प्रश्न का छात्रों पर उतना प्रभाव नहीं पड़ेगा।

विकल्प:

ओपन और क्लोज्ड बुक एग्जाम सिस्टम के फायदे और चुनौती दोनों हैं। दोनों का मिश्रण भारत में स्कूल और कॉलेज स्तर पर परीक्षाओं में अच्छे प्रदर्शन और सीखने को बढ़ावा देने के लिए बेहतर हो सकता है।

 

 

 

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