बीते कुछ दिनों में डिजिटल अरेस्ट के कई मामले सामने आ चुके हैं। साइबर ठग पढ़े-लिखे लोगों को डिजिटल अरेस्ट की धमकी देकर उनसे ऑनलाइन करोड़ों रुपये ठग रहे हैं। लखनऊ में पीजीआई की डॉक्टर रुचिका टंडन को 7 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट कर करीब तीन करोड़ की ठगी की गई। वहीं, राजस्थान के जोधपुर में ठगों ने आईआईटी की प्रोफेसर अमृता पुरी को 12 दिन तक डिजिटल अरेस्ट करके उनसे 12 लाख रुपये ठग लिए। इससे पहले छह अगस्त को प्रयागराज में रहने वाले एक सेवानिवृत्त इंजीनियर को ठगों ने डिजिटल अरेस्ट किया था। अपराधियों ने सेवानिवृत्त इंजीनियर को डरा धमकाकर उनसे 68 लाख रुपये विभिन्न खातों में ऑनलाइन ट्रांसफर करा लिए।
देश में इंटरनेट के बढ़ते दायरे के साथ ही ऑनलाइन ट्रांजेक्शन का चलन भी बहुत तेजी से बढ़ा है। इसके साथ ही ऑनलाइन फ्रॉड भी बढ़े हैं। प्रतिदिन हजारों लोग इन जालसाजों का शिकार हो रहे हैं। इन्हें कानून का डर दिखाकर और मानसिक रूप से कमजोर करके लाखों-करोड़ों रुपये ठगे जा रहे हैं। इनमें से अधिकतर पीड़ित रिपोर्ट ही नहीं कराते हैं। या फिर रिपोर्ट करवाने में देरी कर देते हैं, जिससे उनका डूबा हुआ पैसा मिलने की संभावनाएं कम होती जाती हैं। आपकी थोड़ी सी सतर्कता और सावधानी आपकी जिंदगी भर की जमा पूंजी को बचा सकती है। अगर आप गलती से इन साइबर ठगों का शिकार हो भी जाते हैं, तो बिल्कुल भी घबराने की जरूरत नहीं हैं। यहां हम आपको इस स्कैम और इससे बचने के उपाय के बारे में विस्तृत जानकारी दे रहे हैं।ऑनलाइन ठगी होने की स्थिति में कहां और कैसे रिपोर्ट करवाएं और अपने डूबे हुए रुपये वापस पाएं। यह जानने से पहले आपको पता होना चाहिए कि डिजिटल अरेस्ट क्या होता है?
डिजिटल अरेस्ट क्या होता है?
डिजिटल अरेस्ट साइबर क्राइम का नया तरीका है। इसमें स्कैमर्स पुलिस, सीबीआई, आरबीआई, इनकम टैक्स या अन्य एजेंसियों का अधिकारी बनकर कॉल करते हैं और पीड़ित को डरा-धमकाकर या किसी दूसरे बहाने से वीडियो व ऑडियो कॉल पर जोड़े रखते हैं। स्कैम का यह खेल यहीं से शुरू नहीं होता, बल्कि अपराधी लोगों को अपना शिकार बनाने से पहले उनसे जुड़ी सभी जानकारियां इकट्ठा करते हैं। ये ज्यादातर शिक्षित और अच्छे बैकग्राउंड वाले लोगों को अपना शिकार बनाते हैं। अब तक जितने भी मामले सामने आए हैं, उनमें कोई डॉक्टर है, कोई इंजीनियर तो कई आईआईटी की प्रोफेसर। स्कैमर्स एक ऐसा सेटअप बना लेते हैं, जिसमें लगता है कि वे पुलिस स्टेशन से बात कर रहे हैं। साइबर अपराधी पीड़ित को कॉल करके कहते हैं कि आपके फोन नंबर, आधार, बैंक अकाउंट से गलत काम हुए हैं। वे उन्हें गिरफ्तारी का डर दिखाकर घर पर ही कैद कर लते हैं और उन्हें पैसे देने के लिए मजबूर कर देते हैं।
डरे नहीं, सतर्क रहें
किसी भी तरह की ऑनलाइन ठगी से बचने के लिए आपको हमेशा सावधान और सतर्क रहना चाहिए। अगर कभी भी आप इस तरह के कॉल रिसीव करते हैं तो सबसे पहले आपको सावधान और निडर रहने की जरूरत है। इसके साथ ही ध्यान रखना चाहिए कि सरकार, बैंक या फिर कोई भी जांच एजेंसी कॉल पर आपको डरा या धमका नहीं सकती है। आप कॉल काट कर बिना समय गंवाए उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करवाएं, क्योंकि जब तक आप रिपोर्ट दर्ज नहीं कराएंगे तब तक हैकर और पैसे के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलेगी।
पर्सनल या फाइनेंशियल डिटेल साझा न करें
किसी को भी कॉल पर पर्सनल या फाइनेंशियल डिटेल बिल्कुल भी साझा न करें, क्योंकि बैंक या कोई ऑफिशियल संस्था आपसे फोन पर पिन या आपसे जुड़ी निजी जानकारी नहीं पूछती है। इसके अलावा आप समय-समय पर बैंक एप्लिेकशन के पासवर्ड को अपडेट करते रहें। सोशल मीडिया पर आने वाले लुभावने विज्ञापनों और ऑफर से भी सतर्क रहें। आपके यहां से ऑनलाइन शॉपिंग करने के दौरान आपकी बैंक डिटेल साइबर ठगों तक पहुंच सकती है। इसलिए ठीक से पहचान करने के बाद ही ऑनलाइन शॉपिंग करें।
संदिग्ध लगने पर शिकायत करें
अगर आपको किसी भी तरह से स्कैमर्स की कॉल या मैसेज आते हैं तो इन्हें रिपोर्ट करें। साथ ही अगर आपको आपके बैंक अकाउंट में कुछ भी संदिग्ध लगता है तो इसकी भी शिकायत करें।
30 मिनट बेहद अहम
ऑनलाइन ठगी में एक-एक मिनट अहम होता है। अगर आप गलती से भी इसका शिकार हो जाते हैं तो 30 मिनट के अंदर साइबर सेल में इसकी रिपोर्ट दर्ज करा सकते हैं। या फिर ठगी की शिकायत हेल्पलाइन नंबर 1930 या 155260 पर करनी चाहिए, ताकि अपराधी को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उनसे वो पैसे वसूल जा सकें। शातिर ठग इस रकम को जल्द से जल्द अनजान अकाउंट में पहुंचाता है और फिर वहां से किसी एटीएम से रकम बाहर निकालने की कोशिश करता है। इसमें कम से कम 30 मिनट का समय तो लगेगा ही है। किसी तरह यह 30 मिनट का समय गुजर जाता है तो ये पैसा कहीं का कहीं पहुंच जाता है।
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