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मदरसों में गैर मुस्‍ल‍िम बच्‍चों के प्रवेश को कहना होगा ना, नहीं तो भुगतने होंगे भयंकर परिणाम

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भोपाल। देश के स्‍तर पर राष्‍ट्रीय बाल संरक्षण आयोग और राज्‍य के स्‍तर पर मध्‍य प्रदेश बाल संरक्षण आयोग लगातार सरकार से यह पूछ रहे थे कि आज तमाम सरकारी और निज‍ी शिक्षण संस्‍थान मौजूद हैं, शिक्षा का अधिकार अधिनियम है और उसके तहत आर्थ‍िक रूप से कमजोर बच्‍चों के लिए विशेष प्रावधान भी हैं, फिर क्‍यों गैर मुस्‍लिम बच्‍चे मदरसों में ‘दीनी तालीम’ ले रहे हैं। जिसमें कि उनके माता-पिता से भी लिखित में कोई अनुमति नहीं ली जाती है। फिर बालकों के हित आयोग जगह-जगह मदरसों पर छापे भी मार रहा था, जिसमें कई अनियमितताएं तो मिलती ही थीं, साथ में बड़ी संख्‍या में हिन्‍दू व अन्‍य रिलीजन के बच्‍चे भी वहां पढ़ते मिलते।

दरअसल ऐसे में विवाद बढ़ता और कई जगह बाल आयोग पर ही एक विशेष समुदाय (मुसलमानों) के ऊपर अत्‍याचार करने के आरोप लगा दिए जाते, जबकि बाल आयोग का कहना यही रहता कि वह बालकों के हित कार्य करने के लिए संकल्‍पित हैं और 18 वर्ष से एक दिन भी कम उम्र बालक के हित की चिंता करना एवं उसके कार्य संबंध में जिम्‍मेदार अधिकारी, कर्मचारी, शासन, प्रशासन को बताना ही उसका काम है। अब ऐसे में मध्‍य प्रदेश सरकार ने आखिरकार इस बात को स्‍वीकार कर लिया है कि मदरसा में गैर मुस्‍लिमों को शिक्षा नहीं दी जाएगी, क्‍योंकि उन्‍हें दीनी तालीम से कोई लेना-देना नहीं है। इस संबंध में मोहन सरकार ने यह भी माना है कि संविधान के अनुच्छेद 28 (3) का पालन कराना उसका दायित्‍व है, जिसके अनुपालन में जो भी जरूरी निर्णय होंगे वह उसे लेगी और उस पर सभी से अमल भी कराएगी।

यह अनुच्छेद किसी भी शिक्षण संस्थान को बिना माता-पिता की सहमति के बच्चों को धार्मिक उपदेश प्राप्त करने के लिए बाध्य करने से रोकता है। इसके लिए राष्‍ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने 8 दिसम्‍बर 2022 को पत्र भी लिखा था। अध्‍यक्ष प्र‍ियंक कानूनगो ने राज्‍य सरकार के प्रमुख सचिव के नाम लिखे अपने पत्र में साफ कहा था कि आयोग द्वारा विभिन्न स्रोतों से प्राप्त शिकायतों के अवलोकन पर यह नोट किया गया है कि गैर-मुस्लिम समुदाय के बच्चे सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों में पढ़ रहे हैं। यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 28(3) का स्पष्ट उल्लंघन है, जो शैक्षणिक संस्थानों को माता-पिता की सहमति के बिना बच्चों को किसी भी धार्मिक शिक्षा में भाग लेने के लिए बाध्य करने से रोकता है।

आयोग ने प्रमुख सचिव से कहा था कि वे अपने राज्य क्षेत्र में गैर-मुस्लिम बच्चों को प्रवेश देने वाले सभी सरकारी वित्तपोषित/मान्यता प्राप्त मदरसों की विस्तृत जांच करवाएं और जांच के बाद ऐसे सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में प्रवेश दिलाएं। आयोग ने अंत मे सभी अनमैप्ड मदरसों की मैपिंग करने को भी कहा था। इसके बाद से मप्र की सरकार बाल आयोग की अनुशंसाओं को अमलीजामा पहनाने की दिशा में काम कर रही थी। तत्‍पश्‍चात जब सरकार ने प्रदेशभर में चल रहे तीनों ही प्रकार के मदरसों की जानकारी इकट्ठी कर ली, जिसमें कि मान्यता प्राप्त, अमान्यता प्राप्त और अनमैप्ड मदरसे शामिल हैं, उसके बाद अब जाकर इस दिशा में अपना एक अहम आदेश निकाला है ।

जो मदरसा नहीं मानेगा बात, उसकी होगी मान्‍यता रद्द

इस नए आदेश में साफ कहा गया है कि गैर मुस्लिम छात्रों को अब उनके (मत, पंथ, रिलीजन, धर्म ) के अलावा ‘दीनी तालीम’ या परस्‍पर किसी अन्‍य मत, पंथ या मजहब, रिलीजन की शिक्षा नहीं दी जा सकेगी। वहीं, यह भी लिखा गया है कि यदि मदरसों में गैर मुस्लिम बच्‍चों के या किसी भी मुस्लिम बालक का नाम फर्जी पाया जा सकता हैं तो उन पर भी कानूनी कार्रवाई होगी। अनुदान बंद करने के साथ मान्यता भी निरस्त होगी। यह आदेश मप्र स्कूल शिक्षा विभाग ने शुक्रवार को आयुक्‍त शिल्पा गुप्ता के माध्‍यम से जारी किया है। इसमें अनुच्छेद 28 (3) का भी हवाला दिया गया है।

दूसरी ओर शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह के निर्देश पर शिक्षा विभाग प्रदेश में संचालित मदरसों की भौतिक सत्यापन की जांच करा रहा है। इन दिनों जो भी मदरसे नियमानुसार संचालित नहीं हो रहे हैं उनकी मान्यता समाप्त करने की कार्रवाई की जा रही है। जिला श्‍योपुर में हाल ही में हुई कार्रवाई इसकी नजीर है, जिसमें कि एक साथ 56 मदरसे अनियमितताओं के चलते बंद कर दिए गए। शिक्षा मंत्री सिंह कहते हैं कि मध्य प्रदेश में संचालित सभी सरकारी और प्राइवेट शिक्षण संस्थानों और मदरसों की जांच की जा रही है। हमारी सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि अनुदान प्राप्त संस्थान अपने कर्तव्यों का सही ढंग से पालन करें। मदरसा बोर्ड के स्कूल बंद किए जाएं यह हमारी मंशा नहीं, यदि विद्यालय खोला गया है, तो वहां बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिलना है, इसका हनन होगा तो उसे हम बंद करेंगे। विसंगति मिली, इसलिए मदरसा स्कूलों को बंद करने का काम किया गया। हमारे मुख्यमंत्री का निर्देश है, समान रूप से स्कूल संचालित करना है। इसके तहत नियमों को जो तोड़ेगा, उसके खिलाफ हम कार्रवाई करेंगे।

बच्‍चों को ये नहीं पढ़ाया जाना चाहिए कि काफिर और मुश्‍रिक एक ही हैं

मप्र बाल संरक्षण आयोग (एससीपीसीआर) की सदस्य डॉ. निवेदिता शर्मा ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि उन्‍होंने राज्‍य के दतिया, विदिशा, श्‍योपुर, शिवपुरी, दमोह समेत कई जिलों में दी जा रही हिन्‍दू बच्‍चों को ‘दीनी अरबीया तालीम’ को लेकर अपनी आपत्‍त‍ि दर्ज कराई है। वे पूछती हैं कि क्‍या शिक्षा के नाम पर गैर मुसलमान या किसी भी बच्‍चे को ये पढ़ाया जाना चाहिए कि काफिर और मुश्‍रिक एक ही हैं और वे बख्शे नहीं जाएंगे? आज मदरसों में गैर मुस्‍लिम बच्‍चों को भी ‘‘तालीमुल इस्‍लाम”, ‘हिदायतुल कुरआन’ जैसी पुस्‍तके पढ़ाई जा रही हैं, इन पुस्‍तकों में इस्‍लाम की प्रारंभिक जानकारी एवं नियमों के साथ उसकी विशेषताओं के बारे में लिखा हुआ है। जिसमें कि वि‍शेष तौर पर जोर दिया गया है कि ‘पूरी दुनिया में इस्‍लाम से बड़ा कोई मजहब नहीं और अल्‍लाह से बड़ा कोई ईश्‍वर नहीं। जो अल्‍लाह को नहीं मानें वह काफिर और मुश्‍रिक हैं।’

‘दीनी तालीम’ के तहत पढ़ाई जा रही सभी पुस्‍तकों की समीक्षा हो

डॉ. निवेदिता शर्मा कहती हैं कि संविधान में अनुच्छेद 295ए के अंतर्गत विद्वेषपूर्ण कार्य को दंडनीय बनाया गया है जिससे किसी वर्ग के रिलीजन विश्वासों को आघात पहुंचता हो। अनुच्छेद 298 रिलीजन से जुड़ी भावनाओं को ठेस पहुंचाने के आशय से उच्चारित किए जाने वाले शब्दों पर दंड का निर्धारण करती है। अब आप ही विचार करें क्‍या यह सभी कुछ गैर मुस्‍लिम या मैं कहती हूं कि किसी भी बच्‍चे को पढ़ाया जाना चाहिए? वास्‍तव में शिक्षा का मुख्‍य उद्देश्‍य हमें नहीं भूलना चहिए, जोकि ज्ञान की प्राप्‍ति और उस ज्ञान से अपने वर्तमान एवं भविष्‍य को सुखद बना लेना है न कि किसी वर्ग विशेष को नफरत के नजरिए से देखते हुए नन्‍हे बच्‍चों के सुकोमल मन में विद्वेष का बीज बो देना है। उन्‍होंने कहा कि निश्‍चित ही इस दिशा में मध्‍य प्रदेश सरकार का लिया गया यह निर्णय गैर मुस्‍लिम बच्‍चों को मदरसों में नहीं पढ़ाए जाने का बहुत स्‍वागत योग्‍य है। मैं तो यहां तक कहूँगी कि मदरसों में ‘दीनी अरबिया तालीम’ के नाम पर एवं अन्‍य जो किताबें मजहबी शिक्षा के नाम पर पढ़ाई जा रही हैं, उन सभी की समीक्षा हो, और जो भी सामग्री भारतीय समाज के प्रति नकारात्‍मक भावना भरती पाई जाए, उसे सख्‍ती से हटा देना होगा। क्‍योंकि कोई भी मजहबी या पांथि‍क शिक्षा देश से बढ़कर नहीं हो सकती है।

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