15 अगस्त को कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए कहा कि वह भारत में घृणा का विस्तार करना चाहती है। सरकार ने विभाजन विभीषिका दिवस मनाकर घृणा फैलाने का कार्य किया। संघ परिवार ने अंग्रेजों की फूट डालो और शासन करो की नीति का पालन अपने फायदे के लिए किया है।
खड़गे ने यह भी कहा, ‘क्रांतिवीरों के योगदान को याद करने और उनके विजन पर चलने की जगह आज के हुक्मरान विभाजनकारी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। वे केवल नफरत फैलाने की मंशा से “विभाजन विभीषिका दिवस” मनाते हैं। जिन्होंने आज़ादी के आंदोलन में भाग नहीं लिया वो कांग्रेस पार्टी को नसीहत देते हैं। नाखून कटा कर शहीद बनते हैं। ये ऐतिहासिक सच है कि उनकी नफ़रत भरी राजनीति ने ही देश को दो टुकड़े में बाँट दिया। ये विभाजन उनके ही कारण हुआ।’ मगर जब खड़गे यह बात करते हैं, तो वह क्यों भूल जाते हैं कि कांग्रेस का जन्म ही एक अंग्रेज के हाथों 1857 की क्रांति के बाद हुआ था। और यह ऐतिहासिक तथ्य है कि कॉंग्रेस की तमाम गलत नीतियों के कारण भारत का विभाजन हुआ। वर्ष 1906 में बनी जिस मुस्लिम लीग ने धार्मिक आधार पर भारत के विभाजन की नींव डाली, उसी के परिवर्तित रूप इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ केरल में वह सहयोगी है। भारत के दो टुकड़े करने के बाद मुस्लिम लीग के नेताओं ने अपनी पार्टी का नाम इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग रख लिया था और 1 सितंबर 1951 को अपना नया संविधान बनाया था।
कांग्रेस उसी मुस्लिम लीग के साथ केरल में गठबंधन में है, जिसके कारण इस पवित्र भूमि के दो और अंतत: तीन टुकड़े हुए। अब जब कांग्रेस मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन में है तो यह स्वाभाविक है कि वह विभाजन की विभीषिका के उल्लेख से भी डरे। क्योंकि जब भी यह आएगा कि मुस्लिम लीग के नेतृत्व में नोआखाली दंगे हुए, जिनमें हिंदुओं को चुन-चुन कर मारा गया, तो लोगों का ध्यान सहज ही केरल में कांग्रेस की सहयोगी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग पर जाएगा और लोग प्रश्न कर सकते हैं कि आखिर करोड़ों लोगों की हत्या करने वाली और भारत माता के टुकड़े करने वाली मुस्लिम लीग कांग्रेस के साथ क्या कर रही है? और तब कांग्रेस के पास जबाव देने के लिए शायद कुछ रहे नहीं, या फिर अपना झूठ बेचने के लिए कुछ नहीं हो तो वह यह चाहती है कि विभाजन की स्मृतियां ही आम लोगों के दिल से हट जाएं। मगर कांग्रेस ऐसा क्यों चाहती है? कांग्रेस हर विमर्श को बदलना क्यों चाहती है, इस भूमि के साथ हुए अत्याचारों को दबाना क्यों चाहती है? वह क्यों नहीं चाहती कि आने वाली पीढ़ी अपने इतिहास को जाने कि उसकी भूमि का, उसकी संस्कृति का विस्तार कहां तक था?
कांग्रेस की गलत नीतियों ने इस सीमा तक विभाजित कर दिया कि आज एक ही भूमि के नागरिक, एक ही संस्कृति साझा करने वाले नागरिक परस्पर शत्रु देशों के नागरिक हो गए हैं। विभाजन विभीषिका दिवस इसलिए मनाया जाना चाहिए ताकि यह स्मरण रहे कि कैसे उन लाखों हिंदुओं को अपना घर-द्वार और सब कुछ छोड़कर अपनी जान बचाकर हजारों किलोमीटर दूर आना पड़ा था, जिन्होंने विभाजन चाहा ही नहीं था।
लाहौर कभी प्रभु श्रीराम के पुत्र लव के नाम पर था, और इसी आधार पर हिन्दू इस शहर को भारत में लेना चाहते थे, परंतु वह एक बहुत बड़े षड्यन्त्र के कारण भारत में नहीं आ पाया और आज वही लाहौर, एक बड़े वैश्यालय हीरामण्डी के कारण कुख्यात है, क्या नई पीढ़ी को यह जानने का अधिकार नहीं है कि जिस स्थान का नाम ही प्रभु श्रीराम के पुत्र के नाम पर था, वहाँ पर क्या ऐसा हुआ कि हिन्दू धर्म को मानने वाले लोग शेष ही नहीं रहे? रघुवंशी भरत के नाम पर बसा हुआ तक्षशिला नगर और वहाँ पर बना था सबसे प्राचीन विश्वविद्यालयों में से एक तक्षशिला विश्वविद्यालय। मगर विभाजन के बाद वह पाकिस्तान में चला गया और हमारी नई पीढ़ी को यह भी नहीं पता कि अब वहां से तक्ष अर्थात रघुवंश अर्थात प्रभु श्रीराम के प्रतीक मिटाए जा चुके हैं और उसका नाम भी “टैक्सिला” हो गया है। विभाजन विभीषिका दिवस इसलिए मनाया जाना आवश्यक है जिससे लोग यह समझ सकें कि अपनी सांस्कृतिक धरोहरों को बचाए रखना अंतत: कितना आवश्यक है, क्योंकि ये वही धरोहरें हैं, जिनके कारण एक पूरे समाज का अस्तित्व रहता है।
विभाजन भारत के करोड़ों लोगों के लिए ऐसा आघात था और ऐसी पीड़ा था, जिसमें मात्र भूमि से विस्थापन ही नहीं था, बल्कि अपनी परंपराओं से विस्थापन था। हर परंपरा भूमि के इतिहास और उसकी पहचान से जुड़ी होती है। भारत का 1947 का विभाजन तो सबसे नया विभाजन है, मगर उससे पूर्व जब अफगानिस्तान को भी अलग किया गया, तो गांधार का इतिहास वहीं रह गया। जैसे ही गांधार कंधार बना, महाभारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा जैसे समाप्त हो गया। वाल्मीकि रामायण से लेकर महाभारत तक पेशावर, गांधार तक की तमाम कथाएं लोक में और हमारी स्मृति में जीवित हैं। परंतु जब आज मात्र कश्मीर से कन्याकुमारी तक ही भारत दिखता है तो नई पीढ़ी में प्रश्नों का सागर उमड़ता है और वह समझ ही नहीं पाती कि महाभारत काल में गांधार से राजकुमारी आई थीं।
विभाजन विभीषिका दिवस केवल इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि वह दैहिक या भौतिक विस्थापन दिखाता है, या उसका प्रतीक है, बल्कि इसलिए आवश्यक है कि नई पीढ़ी यह जाने कि कैसे सत्ता लोलुपता और मुस्लिमों के प्रति तुष्टीकरण की नीति के चलते भारत के हिंदुओं को उनकी भूमि से ही नहीं बल्कि एक समृद्ध इतिहास से विस्थापित होना पड़ा था और उसके साथ ही जो विरासत, जो धरोहर भारत भूमि की थी, हिंदुओं की थी, वह पाकिस्तान में चली गई थी, जैसे हड़प्पा सभ्यता, जैसे तक्षशिला। तक्षशिला से जुड़ा चाणक्य का इतिहास।
विभाजन विभीषिका इसलिए मनाना महत्वपूर्ण है कि जिससे हमें यह लगातार अहसास होता रहे कि हमारा स्वरूप क्या था, इस भूमि का स्वरूप और इतिहास क्या था, जिसे कांग्रेस की गलत नीतियों ने इस सीमा तक विभाजित कर दिया कि आज एक ही भूमि के नागरिक, एक ही संस्कृति साझा करने वाले नागरिक परस्पर शत्रु देशों के नागरिक हो गए हैं। विभाजन विभीषिका दिवस इसलिए मनाया जाना चाहिए ताकि यह स्मरण रहे कि कैसे उन लाखों हिंदुओं को अपना घर-द्वार और सब कुछ छोड़कर अपनी जान बचाकर हजारों किलोमीटर दूर आना पड़ा था, जिन्होंने विभाजन चाहा ही नहीं था। यह इसलिए आवश्यक है जिससे वे माताएं और बहनें हमारी स्मृति में बनी रहें, जिनके साथ बलात्कार हुए, जिन्होंने अपनी इज्जत बचाने के लिए अपनी जानें दे दीं।
मगर शायद कांग्रेस इसे समझ नहीं पाएगी क्योंकि एक तो जैसे ही यह पता चलेगा कि भारत भूमि के समृद्ध इतिहास के विभाजन के पीछे उसी मुस्लिम लीग का हाथ है, जिसके साथ कांग्रेस केरल में गठबंधन में है तो लोग कांग्रेस से प्रश्न पूछेंगे और दूसरी बात यह कि कांग्रेस की स्थापना एक विदेशी अर्थात ए. ओ. ह्यूम ने इसी कारण की थी कि अंग्रेजी सरकार से तालमेल बना रहे।
जब विभाजन विभीषिका दिवस मनाया जाएगा तो उन हजारों लोगों का भी नाम सामने आएगा जिन्होंने इस देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराने के लिए अपने प्राणों का बलिदान किया, जिन्होंने विभाजन के समय हिंसाग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए अपने प्राण दे दिए, तो लोग प्रश्न करेंगे ही कि आखिर इनका नाम इतिहास में बलिदानियों में क्यों नहीं है?
क्या कांग्रेस इन तमाम प्रश्नों से बचने के लिए विभाजन विभीषिका दिवस का विरोध कर रही है? यदि विभाजन हुआ था, और कोई भी विभाजन स्वत: नहीं होता, वह पीड़ाओं के कंधे पर ही सवार होकर अपना स्वरूप प्राप्त करता है, तथा आने वाली पीढ़ी का यह अधिकार होता है कि वह उस विभाजन को पूरी तरह से जाने जिसने उस जैसे करोड़ों लोगों को एक समृद्ध इतिहास और परंपरा से वंचित कर दिया। जिसने कटासराज मंदिर को इतना दूर कर दिया कि भारत का हिन्दू जा ही नहीं सकता, कटासराज न जा पाने की कसक जीवित रहे, इसलिए विभाजन विभीषिका मनाया जाना आवश्यक है। क्योंकि वह विभाजन नहीं था, वह सांस्कृतिक ध्वंस था, जिसकी स्मृतियाँ जीवित रहनी ही चाहिए।
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