14,15 और 16 सितंबर, 1990 को भोपाल में भारतीय जनता पार्टी के सांसदों और विधायकों का एक सम्मेलन हुआ था। इसमें भाजपा संसदीय दल के तत्कालीन नेता श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने श्री लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा के व्यापक उद्देश्यों पर अपने विचार प्रकट किए थे। उनके भाषण के प्रमुख अंश 21 अक्तूबर, 1990 के ‘पाञ्चजन्य’ में प्रकाशित हुए थे। यहां उन्हीं अंशों को आंशिक रूप से संपादित कर पुन: प्रस्तुत किया जा रहा है
हिटलर के नाजी जर्मनी के अत्याचारों का प्रायश्चित करने और माफी मांगने के लिए जर्मनी के राष्ट्रपति ने पोलैंड जाकर यहूदियों के प्रार्थना-स्थल पर सिर झुकाने की जो उदारता दिखाई, राम जन्मभूमि पर इतिहास की वैसी ही गलतियां सुधारने के लिए उसी तरह की सदाशयता दिखाने की जरूरत है। मुसलमान भाइयों को समझना चाहिए कि वे मुस्लिम शासकों के अत्याचारों से अपने को जोड़कर न देखें। आज इतिहास का अन्याय धोने की जरूरत है। हम ऐसे अन्याय धोते रहे हैं। स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के उस पहले मंत्रिमंडल ने सोमनाथ का अन्याय धो डालने का फैसला किया, जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद शामिल थे। आज हम अयोध्या में राम जन्मभूमि पर किया गया अन्याय धोना चाहते हैं तो शोर क्यों हो रहा है?
हम वोट के लिए अयोध्या नहीं जा रहे हैं। हम अपने देश के स्वाभिमान का ध्वज लहराने जा रहे हैं। लेकिन हम अयोध्या जा रहे हैं, लंका नहीं। वानरी सेना अयोध्या और लंका में फर्क नहीं कर पाती। जब हमारी वानरी सेना चलेगी तो उसे ‘लाल देह लाली लसे, अरुधर लाल लंगूर, वज्रदेह दानव-दलन, जय जय जय कपिसूर’ की मंत्र घोषणा के साथ ही अपनी अयोध्या नगरी का भी ख्याल रखना चाहिए।
राम मन्दिर तोड़कर अयोध्या में बाबरी ढांचे को मीरबाकी ने बनवाया था। उसके कृत्य को कौन स्तुत्य बताना चाह रहा है? अयोध्या किसी नगर का नाम नहीं है। वह किसी मन्दिर-मस्जिद विवाद की भी जगह नहीं है। वह तो हमारे स्वाभिमान का प्रतीक है। वहां तो अब मस्जिद भी नहीं है। नमाज नहीं पढ़ी जाती। वहां तो श्रीरामलला विराजमान हैं। उन्हें वहां से कौन हटा सकता है? जो लोग वोट नापते हैं, ऐसे ही लोग हमें तराजू से तौलते हैं। वोट नापने वाली संस्कृति के लोग ही लालकिले से मोहम्मद पैगम्बर के जन्मदिन की छुट्टी घोषित करते हैं। 15 अगस्त स्वाधीनता दिवस पर लालकिले को राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करने की प्रथा दुर्भाग्यपूर्ण है। हम मोहम्मद पैगम्बर साहब का आदर करते हैं। उन्होंने एक ऐसे महान मजहब की नींव डाली जिसके आज करोड़ों अनुयायी हैं। उस समय उन्होंने दुर्दांत कबीलों को सही राह दिखाई। पर, उनके नाम का राजनीतिक लाभ उठाने की लालसा निंदनीय है। छुट्टी की घोषणा ही करनी थी तो राम और कृष्ण के जन्मदिन पर करनी चाहिए थी, परन्तु की मोहम्मद साहब के जन्मदिन पर। लालकिले से की गई घोषणा से पता चलता है कि चिन्तन की दिशा भ्रष्ट है।
हम वोट के लिए अयोध्या नहीं जा रहे हैं। हम अपने देश के स्वाभिमान का ध्वज लहराने जा रहे हैं। लेकिन हम अयोध्या जा रहे हैं, लंका नहीं। वानरी सेना अयोध्या और लंका में फर्क नहीं कर पाती। जब हमारी वानरी सेना चलेगी तो उसे ‘लाल देह लाली लसे, अरुधर लाल लंगूर, वज्रदेह दानव-दलन, जय जय जय कपिसूर’ की मंत्र घोषणा के साथ ही अपनी अयोध्या नगरी का भी ख्याल रखना चाहिए।
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