भारत अपनी स्वतंत्रता का अमृतकाल मना रहा है और प्रतिवर्ष 15 अगस्त को हम देशवासी स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। किसी भी देश के लिए आजादी की वर्षगांठ खुशी और गर्व का अवसर होता है। हम भी 15 अगस्त 1947 को आजाद हुए थे। लेकिन, भारत को जो स्वतंत्रता मिली थी, उसके साथ-साथ सौगात में हमें विभाजन रूपी विभीषिका का दंश भी मिला था। नए स्वतंत्र भारतीय राष्ट्र का जन्म विभाजन के हिंसक दर्द के साथ हुआ, जिसने लाखों भारतीयों पर पीड़ा के स्थायी निशान छोड़े।
वर्ष 1947 में विभाजन के कारण मानव जाति के इतिहास में सबसे विनाशकारी विस्थापनों में से एक देखा गया। 15 अगस्त 1947 की सुबह ट्रेनों, घोड़े खच्चर और पैदल ही लोग अपनी ही मातृभूमि से विस्थापित होकर अपने अपने देश जा रहे थे। इसी बीच बंटवारे के दौरान भड़के दंगे और हिंसा में लाखों लोगों की जान चली गई। यह विचलित करनेवाली घटना थी, ऐसी भीषण त्रासदी थी, जिसमें करीब बीस लाख लोग मारे गए और डेढ़ करोड़ लोगों का पलायन हुआ था। यह विभाजन मानव इतिहास में सबसे बड़े विस्थापनों में से एक है, जिससे लाखों परिवारों को अपने पैतृक गांवों एवं शहरों को छोड़ना पड़ा और शरणार्थी के रूप में एक नया जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा।
इस विभाजन का सबसे अधिक दंश जिस राज्य ने झेला, वह पंजाब था। पंजाब एक ऐसा प्रांत जो हिंदू, मुस्लिम और सिखों सहित विभिन्न समुदायों की असंख्य और जीवंत आबादी का ठिकाना था। लेकिन विभाजनकारी षडयंत्र ने इसे दो भागों में विभाजित करके इसकी विरासत और विशिष्टता पर गहरा आघाता किया। भारत के हिस्से में आने वाले पंजाब को पूर्वी पंजाब या भारतीय पंजाब और पाकिस्तान में जाने वाले पंजाब को पश्चिमी पंजाब या पाकिस्तानी पंजाब के रूप में विभाजित किया गया।
पांच नदियों की भूमि पुंज-आब ने भी अपने जल स्रोतों को विभाजित होते देखा है, जिनमें से तीन, सतलुज, रावी और ब्यास भारतीय पंजाब में और बाकी दो नदियां, चिनाब और झेलम पाकिस्तानी पंजाब में हैं। इस विभाजन के दर्द को कई जगहों पर बयां किया गया है, जिनमें से एक हैं प्रसिद्ध पंजाबी गायक गुरदास मान का ‘की बनू दुनिया दा’, जिसमें बाद वाले कहते हैं ‘रवि तो चिनाब पूछदा, की हाल ऐ सतलुज दा’ (चिनाब अक्सर रवि से सतलुज के हालचाल पूछती है। भारत के विभाजन कारण विस्थापन और विनाश का संगम देखने को मिला था।
स्वतंत्रता मिलने के साथ ही देश को जो विभाजन रूपी दंश मिला था, उसे देश की किसी भी सरकारों ने नहीं समझा। उसे भारतीय स्मृति पटल से या तो मिटाने का प्रयास किया गया या फिर उसके प्रति जान-बूझकर उदासीनता बरती गई। इस त्रासदी के घाव इतने गहरे हैं कि आज भी देश के बहुत बड़े हिस्से, खासकर पंजाब और बंगाल में बुजुर्ग लोग 15 अगस्त को सिर्फ विभाजन के ही रूप में याद करते हैं। यह राजनीतिक निर्बलता का ही परिचायक है, जो त्रासदी मानव इतिहास में सबसे बड़े पलायन की वजह बनी।
पहली बार किसी सरकार ने विभाजन की विभीषिका को आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय त्रासदी की मान्यता देने का निर्णय लिया तो वह थी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली भाजपा की सरकार। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 14 अगस्त 2021 को घोषणा की थी कि प्रतिवर्ष 14 अगस्त विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिवस के आयोजनों का उद्देश्य विभाजन रूपी विभीषिका की क्रूरता में दिवंगत हुई आत्माओं को श्रद्धांजलि देने के साथ ही उन राजनीतिक शक्तियों एवं वैचारिक प्रेरणाओं के प्रति सजगता बनाए रखना भी होता है, जो समाज के लिए पुनः खतरा बन सकती हैं।
उस समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने द्वीट करते हुए लिखा था “देश के बंटवारे के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। यह दिन हमें भेदभाव, वैमनस्य और दुर्भावना के जहर को खत्म करने के लिए न केवल प्रेरित करेगा, बल्कि इससे एकता, सामाजिक सद्भाव और मानवीय संवेदनाएं भी मजबूत होंगी। देश के विभाजन के दर्द को कभी भुलाया नहीं जा सकता है।
इसलिए 15 अगस्त 2021 को भारत की आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने से एक दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देशवासियों को बताया था कि आज से प्रतिवर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया है। विभाजन के दौरान नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और लाखों लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में प्रतिवर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के तौर पर मनाने का निर्णय लिया गया।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मात्र घटनाओं को याद करने का अवसर नहीं है। यह हिंसक और असहिष्णु विचारधारा को भी कठघरे में खड़ा करता है, जो इन त्रासदियों का कारण बनती हैं। विभीषिकाओं की स्मृति हमें याद दिलाती है कि कैसे देश विरोधी भावनाओं को भड़काकर राष्ट्र को कमजोर किया जा सकता है।
विभाजन जैसी विभीषिका से देश को पर्याप्त सबक मिले। स्मृति दिवस की घोषणा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जताया कि देश अपनी सबसे क्रूर त्रासदी में मारे गए लोगों के प्रति संवेदनशील है और साथ ही ऐसी दुखद घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए कटिबद्ध भी। राष्ट्र के विभाजन के कारण अपनी जान गंवाने वाले और अपनी जड़ों से विस्थापित होने वाले सभी लोगों को उचित श्रद्धांजलि के रूप में सरकार हर साल 14 अगस्त को उनके बलिदान को याद करने के दिवस के रूप में मनाकर देशवासियों की वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों को विभाजन के दौरान लोगों द्वारा झेले गए दर्द और पीड़ा के कारणों से सचेत करना चाहती है।
वर्ष 1947 में भारत का विभाजन भी कोई अनायास हुई घटना नहीं थी। इसके बावजूद विभाजन की विभीषिका की सरकारी उपेक्षा तुष्टिकरण के कारण अलगाववाद से मुंह मोड़ने की कोशिश थी। 77 वर्ष पुराने निर्णय के लिए आज की पीढ़ी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता, परंतु इसे भी झुठलाया नहीं जा सकता कि अलगाववाद और चरमपंथ आज भी कई क्षेत्रों में उफान पर है। चाहे वह कश्मीर से हिंदुओं का पलायन हो या नागरिकता संशोधन कानून जैसे मानवीय कदम का हिंसक विरोध, मजहबी उन्माद आज भी एक सच्चाई है।
यह विभाजन की विभीषिका पर लगातार बनी रही उदासीनता का ही परिणाम है कि वंदे मातरम् का विरोध और मजहबी आधार पर आरक्षण जैसी मांगें स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी मुखर हैं, जो उस समय विभाजन का कारण बनीं थी। राष्ट्र जीवन में सिर्फ हिंदू प्रतीकों का ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय ध्वज और राष्ट्रगान का अपमान भी अब आम हो चला है। इस विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर सभी बलिदानियों को नमन। श्रद्धेय भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेयी की इन दो पंक्तियों को आत्मसात करें:-
उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से कमर कसें बलिदान करें।
जो पाया उसमें खो न जाएं, जो खोया उसका ध्यान करें।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)
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