देहरादून: राज्य में 416 ज्यादा मदरसे पंजीकृत है, लेकिन कितने मदरसे गैर कानूनी रूप से चल रहे हैं? इस बात की जानकारी मदरसा बोर्ड या तो छुपा रहा है या फिर उसे जानकारी नहीं है। ऐसी जानकारी मिली है कि देवभूमि में चार सौ से अधिक मदरसे और भी हैं जो कि बिना पंजीकरण के चल रहे हैं, जिसकी शिक्षा पर राज्य सरकार या मदरसा बोर्ड का कोई नियंत्रण नहीं है, ये मदरसे कहां से फंडिंग ले रहे हैं? क्या पढ़ा रहे हैं? कहां से बच्चे यहां आ कर पढ़ रहे हैं? इनके छात्रावास की क्या व्यवस्था है ? कोई जानकारी नहीं सामने लाई जा रही है।
मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती शमूम कासमी से जब भी ये सवाल पूछा गया तो उन्होंने पंजीकृत मदरसों के बारे में जानकारी तो दी कि 416 मदरसे हैं और यहां इस्लामिक शिक्षा के साथ साथ भारत सरकार द्वारा निर्धारित राष्ट्रीय पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है। किंतु जब उनसे गैर पंजीकृत मदरसों के बारे में सवाल किया जाता है तो वे जवाब नहीं दे पाते।
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पिछले दिनों उत्तराखंड बाल अधिकार संरक्षण आयोग की टीम द्वारा आजाद कॉलोनी स्थित एक गैर मान्यता प्राप्त मदरसे के जांच में खामियां पाई गई, जिसके बाद से राज्य में बिना पंजीकरण चल रहे मदरसों के खिलाफ शासन स्तर से कारवाई किए जाने की आवाजें उठ रही है। देहरादून में ही एक अन्य मदरसे के प्रबंधकों पर विदेशी फंडिंग को लेकर विवाद हुआ है, जिसकी जांच भी शुरू हो गई है।
जानकारी के अनुसार, बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने राज्य के अल्पसंख्यक मामलों के प्रमुख सचिव को इस बारे में पत्र लिख कर अवगत करवाया है कि अवैध रूप से संचालित मदरसों की जांच करवाई जाए। उधर मदरसा बोर्ड के निदेशक ने शासन के दिशा निर्देश पर सभी जिलों के अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारियो से रिपोर्ट तलब की है,हालांकि इस बारे में पहले भी कई बार आदेश हुए है किंतु रिपोर्ट कभी भी सामने नहीं आई कि आखिर राज्य के जिलों में कितने मदरसे बिना मान्यता प्राप्त है?
उल्लेखनीय है कि कट्टरपंथी इस्लामिक संस्थाएं मदरसों का पंजीकरण नहीं होने देती क्योंकि पंजीकरण के बाद उन्हें सरकार को फंडिंग का हिसाब किताब देना जरूरी हो जाता है साथ ही उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पढ़ाने को बाध्य होना पड़ जाता है। उत्तराखंड में गैर मान्यताप्राप्त मदरसों के संचालक सरकार के अगले कदमों से पहले ही सजग होकर सफाई देने लग गए है कि मदरसा बोर्ड में पिछले चार सालों से कोई मान्यता कमेटी नहीं बनाई है हमारे कई मामले लंबित है, सरकार मदरसों को बंद करने की नियत रखती है जैसे आरोप अब लगाए जाने लगे हैं।
जब आजाद कॉलोनी के अवैध मदरसे का मामला सुर्खियों में आया तो मुस्लिम सेवा संगठन सहित अन्य इस्लामिक संस्थाओं ने उल्टा बाल अधिकार संरक्षण आयोग पर बेअदबी के आरोप लगा दिए और अपनी कमियों पर कोई जवाब नहीं दिया। बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में भी मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और असम राज्यों की तरह अवैध मदरसों के खिलाफ कारवाई की जरूरत समझी जा रही है।
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उत्तराखंड की सरकारी जमीनों पर कब्जे कर मदरसे बनाए जाने के मामले भी खुलकर सामने आ रहे है, किंतु इस बारे में अल्पसंख्यक मंत्रालय, नगर विकास मंत्रालय क्यों मौन धारण कर लेता है? ये बड़ा सवाल है। पछुवा देहरादून हरिद्वार जिले में ऐसे बड़े-बड़े मदरसे बिना प्रशासन की अनुमति से आखिर कैसे बनते चले गए ये भी बड़ा सवाल है? खास बात ये है कि शासन स्तर पर इन मदरसों को लेकर जांच पड़ताल की बात शुरू तो होती है। लेकिन, एका-एक इसमें रहस्यमई खामोशी भी छा जाती है। ऐसा प्रतीत होता है कि इन अवैध मदरसों के संचालक ऊंची पहुंच का इस्तेमाल कर जांच पड़ताल को निष्क्रिय कर देते है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी बार बार यही कहते आए हैं कि राज्य में मदरसों की जांच की जा रही है और गैर कानूनी रूप से चलने वाले मदरसों के खिलाफ कारवाई अवश्य की जाएगी।
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