प्राप्त खुफिया जानकारी के अनुसार, कुकुरमुत्ते की तरह देखते ही देखते ‘उग’ आए इन चीनी गांवों में न सिर्फ फौजियों को छुपे रूप में बसाया जा रहा है, बल्कि चीनी नस्ल के आम लोगों को भी इन गांवों में रखा जा रहा है। इसके लिए पूरा खर्च बीजिंग उठा रहा है।
क्या अमेरिका के अखबार में छपी चीन की ताजा रिपोर्ट भारत के लिए किसी खतरे की घंटी के समान है? चीन की बरसों से भारत से सटी सीमा पर क्या कोई नई चाल चल रहा है? आखिर क्या वजह है कि कम्युनिस्ट विस्तारवादी चीन भारत को अपनी सीमा के चारों तरफ से घेर रहा है?
यह रिपोर्ट भारत के लिए सावधान रहने की पर्याप्त वजहें देती है। क्योंकि कम्युनिस्ट ड्रैगन लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक अपनी भारत से सटी सरहद के पास तेजी से गांव बसाता आ रहा है। प्राप्त खुफिया जानकारी के अनुसार, कुकुरमुत्ते की तरह देखते ही देखते ‘उग’ आए इन चीनी गांवों में न सिर्फ फौजियों को छुपे रूप में बसाया जा रहा है, बल्कि चीनी नस्ल के आम लोगों को भी इन गांवों में रखा जा रहा है। इसके लिए पूरा खर्च बीजिंग उठा रहा है। ऐसे गांव दो—चार नहीं हैं बल्कि लद्दाख से अरुणाचल प्रदेश तक, कुछ—कुछ दूरी पर ऐसे संदिग्ध गांव बसाए जा रहे हैं।
अमेरिकी अखबार न्यूयार्क टाइम्स ने बीजिंग की मंशाओं की पोल खोलती यह रिपोर्ट प्रकाशित की है जिसने चीन और भारत के बीच एलएसी पर चीन की आक्रामक हरकतों की पोल खोली है। इससे साफ है कि सीमा पर ‘शांति बनाए रखने’ की दोनों देशों के बीच कमांडर स्तर की अनेक दौर की वार्ता को कम्युनिस्ट चालबाज सिर्फ दिखावा मानते हैं।
लेकिन असल में चीन अपनी भारत विरोध हरकतों से परे नहीं जा रहा है। सीमा पर जिस तरह से चीन तेजी से अपने गांव बसाता गया है, उनकी पोल खोलते कई उपग्रह चित्र इस समय विशेषज्ञों के सामने हैं। इनसे साफ होता है कि सीमा पर सैन्य ढांचे खड़े करने के अलावा भी चीन ने करीब 50 से ज्यादा गांव बसा लिए हैं।
संसाधनों की कमी की पूर्ति के लिए चीन की सरकार यहां के निवासियों को बीजिंग से आर्थिक सहायता भेजती है जिससे वे लोग वहां से कहीं चले न जाएं। बेशक, इसके माध्यम से कम्युनिस्ट बीजिंग चाहता है कि भारत से सटी सीमा पर आबादी बढ़ाई जाए और उसकी आड़ में भारत पर नजर रखी जाए।
बात सिर्फ नए गांव बसाने की ही नहीं है। वहां पहले से मौजूद करीब सौ दूसरे गांवों को भी विस्तार दिया जा रहा है। वहां नए मकान खड़े किए गए हैं। पहले से ज्यादा लोगों को वहां लाकर बसाने का काम चल रहा है।
अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स लिखता है कि, चीन भारत से सटी सीमा पर जैसे एक दीवार तैयार कर रहा हो। इस दीवार की पहरेदारी के लिए ही आसपास आम लोग और छुपे तौर पर फौजी बसाए जा रहे हैं। सीमा के आसपास पुल और संचार टॉवर बनाए जाने की पुष्टि तो काफी पहले हो चुकी है। कई उपग्रह चित्र हैं जो ऐसे टॉवरों और सैन्य ढांचों के अलावा रिहायशी इलाकों का खुलासा कर चुके हैं।
ऐसा ही नया ‘उगा’ गांव है किओंगलिन। हिमालय के ठीक तल के पास ‘उगा’ यह गांव जहां पर बना है वह जगह कभी बहुत वीरान हुआ करती थी। पूरा इलाका जंगली था। अब वहां उक्त गांव बस चुका है, जहां पक्के घर हैं, चौड़ी सड़कें हैं। अन्य स्थानों से पैसे का लालच देकर लोगों को वहां बसाया गया है।
अपने एक भाषण में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग वहां सीमा पर मौजूद गांवों में बसे चीनियों को ‘सीमा के पहरेदार’ कह चुके हैं। किओंगलिन गांव भारत के अरुणाचल प्रदेश के ठीक उस पार बना है। उसी अरुणाचल प्रदेश को जिसे विस्तारवादी चीन ‘दक्षिण तिब्बत’ बताकर अपना दावा ठोंकता आ रहा है।
लद्दाख से सटी सीमा पर भी चीन द्वारा कुछ गांव बसा लेने के संकेत मिले हैं। वहां कई ढांचे देखने में आए हैं, जिनको लोगों को बसाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। जिनपिंग की मंशा सीमा के उस भाग से भारत में घुसपैठ करने की रही ही है, जिसका जीता—जागता उदाहरण 2020 में गलवान घाटी में देखने में आया था।
न्यूयॉर्क टाइम्स ने भारत—चीन सीमा पर नई ‘उगी’ बस्तियों के पूरे खाके पर बारीक नजर डालने के बाद कहा है कि पिछले 8 साल के दौरान ही चीन ने सीमा पर रणनीतिक तौर पर अहम ‘चौकियां’ बना ली हैं।
उपग्रह की तस्वीरें ही बताती हैं कि चीन का इरादा भारत से लगती सीमा पर जहां तक हो हर पहाड़ी दर्रे में एक गांव बसाने का है। चीन ने ठीक इसी तरह नेपाल सीमा के अंदर तक कई ढांचे खड़े करके उन जगह पर अपना दावा ठोंका हुआ है। दिलचस्प बात है कि नए ‘उगे’ ऐसे सभी गांवों में पक्के घर और सड़क ही नहीं है, लाइट और इंटरनेट की सुविधाएं भी दी गई हैं।
भारत के विदेश मंत्री जयशंकर, सेनाध्यक्ष और नीतिकार जानते हैं कि सीमा पर चीन की दुर्भावनापूर्ण हरकतें लगातार जारी हैं। कई अवसरों पर कहा भी गया है कि चीन के काम ‘शांति कायम करने’ की उसकी बातों से उलट दिखते हैं। इसलिए भारत को पूरी सर्तकता से सीमा पर चीन की हर चाल पर नजर रखनी होगी और प्रयास करना होगा कि उसके हर ऐसे काम का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुलासा हो।
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