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सनातन संस्कृति में हरियाली अमावस्या का महत्व, प्रकृति संरक्षण का संदेश देती हरियाली अमावस्या

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श्वेता गोयल

अमावस्या तिथि सनातन धर्म में बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन पूजा तथा जप-तप करने और कुछ विशेष वस्तुओं का दान करने का भी महत्व है। विभिन्न धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अमावस्या तिथि के दिन गंगा स्नान करने से जीवन के सारे पाप कट जाते हैं और भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यही कारण है कि अमावस्या के दिन लोग गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में भी स्नान करते हैं। सनातन धर्म को मानने वाले लोग अमावस्या तिथि पर भगवान विष्णु की पूजा-आराधना करते हैं और गंगा सहित पवित्र नदियों में स्नान करके गरीब तथा जरूरतमंद लोगों को श्रद्धापूर्वक दान भी करते हैं। हर महीने आने वाली अमावस्याओं में ‘हरियाली अमावस्या’ का तो विशेष महत्व माना गया है। कहा जाता है कि हरियाली अमावस्या के दिन दान करने से जीवन में आ रही तमाम तरह की परेशानियों से मुक्ति मिलती है। पितरों की आत्मा की शांति के लिए हवन-पूजा, श्राद्ध, तर्पण आदि करने के लिए तो हरियाली अमावस्या का दिन श्रेष्ठ होता है। इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती की विशेष पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन शिव-पार्वती की पूजा करने से भक्तों को पृथ्वी पर ही स्वर्ग तुल्य फलों की प्राप्ति होती है। भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना का यह दिन श्रेष्ठ समय माना जाता है।

हरियाली अमावस्या, जिसे ‘श्रावणी अमावस्या’ भी कहा जाता है, का हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है। हरियाली अमावस्या पर्व राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश इत्यादि उत्तर भारत के राज्यों में काफी लोकप्रिय है। कई अन्य राज्यों में भी यह पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। इस पर्व को महाराष्ट्र में ‘गतारी अमावस्या’, आंध्र प्रदेश में ‘चुक्कल अमावस्या’, उड़ीसा में ‘चितलगी अमावस्या’ के नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व इस वर्ष हिंदू पंचांग के अनुसार 4 अगस्त को मनाया जा रहा है। पंचांग के अनुसार सावन माह की अमावस्या तिथि 3 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 50 मिनट पर शुरू हो रही है, जिसका समापन 4 अगस्त को दोपहर 4 बजकर 42 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार सावन की हरियाली अमावस्या 4 अगस्त को ही मनाई जाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस बार हरियाली अमावस्या के दिन कई दशकों के बाद रवि पुष्य व दुर्लभ शिववास योग सहित कई मंगलकारी योगों का संयोग बन रहा है, जिनके कारण इस वर्ष इस दिन का महत्व कई गुना बढ़ गया है। इन संयोगों में हरियाली अमावस्या पर पूजन अति शुभकारी माना जा रहा है।
हरियाली अमावस्या के दिन 4 अगस्त की सुबह से ही ‘शिववास’ योग बन रहा है। इस योग के दौरान भगवान शिव माता गौरी के साथ रहते हैं। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक इस योग में शिव-पार्वती की पूजा करने से अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसी दिन हरियाली अमावस्या होने के कारण रवि पुष्य योग का निर्माण भी हो रहा है क्योंकि इस दिन पुष्य नक्षत्र रहेगा। ज्योतिर्विदों का कहना है कि हरियाली अमावस्या पर 30 साल बाद एक साथ सिद्धि योग, रवि पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। सिद्धि योग 4 अगस्त को प्रातःकाल से लेकर सुबह 10 बजकर 38 मिनट तक तथा रवि पुष्य योग, सर्वार्थ सिद्धि योग और पुष्य नक्षत्र प्रातः 5 बजकर 44 मिनट से दोपहर 1 बजकर 26 मिनट तक रहेंगे। उसके बाद से अश्लेषा नक्षत्र है। इन शुभ योगों के चलते इस दिन पूजा-पाठ, दान और तर्पण करना बेहद शुभ माना जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि हरियाली अमावस्या के दिन शिव-पार्वती की पूजा करने वाली कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है, सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि किसी की कुंडली में कालसर्प दोष, पितृदोष अथवा शनि का प्रकोप है तो उसे इस दिन शिवलिंग पर जल चढ़ाने अथवा पंचामृत से अभिषेक करने से इन दोषों से लाभ मिलता है।

हरियाली अमावस्या सनातन संस्कृति में आस्था रखने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक पर्व है। कई पुराणों, हिंदू धर्म ग्रंथों और शास्त्रों में हरियाली अमावस्या के धार्मिक महत्व का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है। अग्नि पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति इस दिन मंदिर या नदियों के किनारे दीपदान करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि आती है। नारद पुराण के अनुसार श्रावण मास की अमावस्या को पितृ श्राद्ध, दान, हवन और देव पूजा तथा वृक्षारोपण आदि शुभ कार्य करने से अक्षय फल की प्राप्ति होती है। लोग इस दिन पूजा पाठ, पितृ तर्पण और दान आदि करने के साथ ही पेड़-पौधे भी लगाते हैं तथा पर्यावरण की रक्षा का संकल्प लेते हैं। ‘हरियाली अमावस्या’ पर्व मनाने का मुख्य उद्देश्य इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करना तो है ही, साथ ही इस दिन वृक्षारोपण और प्रकृति संरक्षण को भी विशेष रूप से प्रोत्साहित किया जाता है। इसीलिए इस पर्व को पर्यावरण संरक्षण और हरियाली के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है। चूंकि यह अमावस्या हर साल सावन के महीने में आती है और यह ऐसा समय होता है, जब चारों ओर बारिश हो रही होती है। ऐसे में बारिश होने से हर तरफ हरियाली छा जाती है, जिससे प्रकृति की सुंदरता में चार चांद लग जाते हैं। चारों तरफ छाई हरियाली इतनी ख़ूबसूरत और मनोहारी लगने लगती है कि हर कोई इसे देखकर मोहित हो जाता है। यही कारण है कि सावन की इस अमावस्या को ‘हरियाली अमावस्या’ कहा जाता है।

गौरवशाली हिंदू परंपरा में वैसे भी पेड़-पौधों को भगवान के रूप में भी दर्शाया गया है। पर्यावरण को संरक्षित करने के निमित्त ही प्राचीन काल में हमारे ऋषि-मुनियों ने पेड़-पौधों में ईश्वरीय रूपों को प्रतिबिंबित करते हुए उनकी पूजा आदि का विधान बनाया था। सनातन संस्कृति में पीपल के पेड़ की पूजा करने की प्रथा भी इसी का ही एक रूप है। लोग हरियाली अमावस्या के अलावा अन्य शुभ अवसरों पर भी पीपल की पूजा करते हैं। पीपल लगाने से पितृदोष दूर होता है तथा लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। भारतीय संस्कृति में पीपल के अलावा तुलसी, केला, नीम, बरगद, अशोक, आंवला, अर्जुन, नारियल इत्यादि पौधों का भी कोई न कोई धार्मिक अवश्य महत्व माना गया है। तुलसी के पौधे से घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि आती है, केले के पौधे का पूजन संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है, अच्छा स्वास्थ्य पाने के किए नीम का पौधा लगाने का महत्व तो सर्वविदित है ही, बरगद का पौधा लगाने से मोक्ष प्राप्त होता है, अशोक के पौधे लगाने से व्यक्ति का जीवन शोकमुक्त होता है, आंवले का पौधा लगाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है, अर्जुन और नारियल के पौधे लगाने से जीवन में सुख-समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

पेड़-पौधे लगाने से न केवल पर्यावरण को लाभ होता है बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी इसे पुण्य फलदायी कार्य माना जाता है। पेड़-पौधे लगाकर हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को प्राकृतिक सुंदरता एवं स्वास्थ्य सेहत का दान देते हैं। भविष्य पुराण में कहा गया है कि जिन लोगों के संतान नहीं होती, वृक्ष ही उनकी संतान के समान होते हैं। इसलिए यदि वे पेड़-पौधे लगाते हैं तो उनके लौकिक-पारलौकिक कार्य वे पेड़-पौधे ही करते हैं। हिंदू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हरियाली अमावस्या के दिन पौधे लगाना बेहद शुभ माना गया है। कहा जाता है कि इस दिन पेड़-पौधे लगाने से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ धार्मिक पुण्य की प्राप्ति होती है, ऐसा करने से जीवन में खुशियां आती हैं और देवी-देवता भी प्रसन्न होते हैं। इस दिन पौधे लगाने एवं उनका पूजन, वंदन करने की परंपरा प्राचीन काल से ही रही है। हरियाली अमावस्या पर आप केला, तुलसी, पीपल, बरगद, नीम जैसे पौधों को अपने घर में या घर के आसपास लगाकर पर्यावरण संरक्षण में अपना अमूल्य योगदान दे सकते हैं।

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