गंगा नगरी हरिद्वार में श्रावण मास आस्था और विश्वास का समय होता है। लाखों नहीं बल्कि करोड़ों शिव भक्त कांवड़िए के रूप में गंगा जल लेने आ रहे हैं जो अपने कलशों में जल भरकर अपनी आस्था के शिववालयों की तरफ जा रहे हैं।
मानसून के दौरान सुस्त पड़े बाजार में कांवड़ कारोबार ने कई राज्यों की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी है। हर साल फसल पकने के बाद बैसाखी, होली, दिवाली, बसंत पंचमी के त्योहारों पर बाजार में रौनक रहती है। इसी तरह अब श्रावण मास आने से पहले ही कांवड़ यात्रा या मेलों को लेकर देश के सात राज्यो में हर साल कई हजार करोड़ का आर्थिक चक्र घूम जाता है, एक अनुमान के अनुसार इस बार अकेले उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में ही करीब दस हजार करोड़ का कारोबार कांवड़ यात्रा के दौरान हो जाएगा।
देश में कांवड़ यात्रा सिर्फ हरिद्वार से ही शुरू नहीं होती, बल्कि सावन के महीने में बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, झारखंड आदि राज्यों के शिव मंदिरों में भी जल चढ़ाने की परंपरा है।
एक कांवड़ यात्रा, बिहार में सुल्तानगंज के गंगा घाट से शुरू होकर झारखंड के देवघर स्तिथ बैद्यनाथ ज्योर्तिलिंग तक जाती है। कांवरिए मध्य प्रदेश के उज्जैन से नर्मदा जल लेकर ओंकारेश्वर और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाते हैं। श्रावण मास में हरिद्वार से मुख्य कांवड़ यात्रा 14 जुलाई से 30 जुलाई तक चलती है। जबकि बिहार और मध्य प्रदेश में पूरे श्रावण माह में विशेष रूप से सोमवार को शिव मंदिरों में जलाभिषेक होता है। हरिद्वार के पवित्र गंगा घाटों से शुरू होने वाली कांवड़ यात्रा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल, पंजाब, जम्मू और कश्मीर तक जाती है।
एक अनुमान के अनुसार जहां अकेले हरिद्वार से ही इस बार कांवड़ियों की संख्या चार करोड़ के आसपास पहुंच जाने का अनुमान है, पिछले साल भी इससे अधिक कांवड़िए हरिद्वार आए जिन्होने गंगा घाटों से अमृत जल लिया था। आस्था विश्वास के केसरिया जन सैलाब को इन सात राज्यों की सड़को पर हिंदू समरसता का अद्भुत नजारा पैदा किया।
सामाजिक समरसता
शिव के प्रति आस्था और विश्वास प्रकट करने गंगा जल लेने पहुंचे कांवड़ियों के बीच कोई ऊंच-नीच, अगड़ा-पिछड़ा जाति का कोई भेद भाव नहीं रह जाता। कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति सभी वर्गों के हिंदुओं की सामाजिक सद्भावना का प्रतीक बन गई है। हिंदुत्व के भगवा ध्वज लिए और केसरिया परिधान पहने कांवडियों में एकता की मिसाल दिखाई देती है। मध्य प्रदेश में कांवरिए उज्जैन के त्रिवेणी घाट से नर्मदा जल लेकर इंदौर, देवास, शुजालपुर आते हैं। यहां लाखों शिव भक्तों ने बम बम भोले का जयकारा लगाते हुए ओंकेश्वर महादेव और महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाया। समाज के हर वर्ग, अमीर-गरीब के लोगों ने कांवड़ यात्रा में हिस्सा लिया और सामाजिक समरसता का परिचय दिया।
बिहार में सुल्तानगंज गंगा घाट और सोनपुर के पहलेजा घाट से लाखों की संख्या में कांवरिये बाबा गरीब नाथ, बाबा दूध नाथ, बाबा मुक्तिनाथ, खगेश्वर, बाबा भैरव मंदिरों में जाकर जलाभिषेक करते हैं. सुलतानगंज गंगा घाट के बारे में कहा जाता है कि भगवान राम ने यहीं से गंगाजल लेकर शिव का जलाभिषेक किया था। यहां से कांवड़िये जल लेकर 108 किलोमीटर का सफर तय कर झारखंड के देवघर जाकर बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग और बासुकीनाथ धाम में गंगा जल चढ़ाते हैं। यहां युवा वर्ग 24 घंटे बिना रुके डाक बम कांवड़ लाने में खासा उत्साह दिखाते हैं। बिहार में ही सोनपुर के हरिहरनाथ मंदिर, बक्सर के ब्रह्मपुरनाथ मंदिर, लखीसराय के अशोक धाम में हजारों शिवभक्त जलाभिषेक करते हैं।
उत्तराखंड में दस हजार करोड़ का कांवड़ कारोबार
हरिद्वार में गंगाजल लेने आए शिव भक्त कांवड़ियों के लिए टी शर्ट, लोवर, शॉट्स कपड़े,अंगोछे आदि का थोक का बाजार कई सौ करोड़ का हो चुका है। कांवड़ के लिए बांस लकड़ी की टोकरियों को बनाने बहुत बड़ा कारोबार हरिद्वार के आसपास होता है।
हरिद्वार के पंडा पुरोहित समाज के महासचिव अविक्षित रमन बताते हैं कि पिछले साल कांवड़ यात्रा भव्य और उत्साह के साथ चली इस बार भी वही उत्साह है। उन्होंने बताया कि यूपी हरियाणा राजस्थान दिल्ली हिमाचल राज्यो से बड़ी संख्या में कांवड़ यात्री आए किसी ने पैसे की परवाह नही की और जमकर खरीदारी कर अपनी कांवड़ को भव्य रूप में संवारा।
कांवड़िए सबसे पहले भगवे तिरंगे झंडे लेते है जिसका का करोड़ों का कारोबार हो रहा है। हरिद्वार और आसपास के इलाकों में लंगरों और रेस्टोरेंटों में राशन का कारोबार भी करीब एक हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। कांवड़ यात्रा मार्ग पर लगने वाले एक एक भंडारे में राशन तेल गैस पानी जूस और लेबर आदि का खर्च का जोड़ लाखो में आता है। यात्रा मार्ग पर हजारों शिविर और भंडारे दानदाताओं की मदद से चलाए जाते हैं।
डीजे ,संगीत, वाहन , डीजल, पेट्रोल, सी एन जी का खर्च भी करोड़ों का में हुआ है। पिछली बार बागपत से हरिद्वार आए और फिर वापिस गए तीन सौ कांवड़ दल के साथ एक म्यूजिक सिस्टम भी था जिसे तीन करोड़ का बताया गया। शिव भक्ति संगीत में डूबे इन कांवड़ियों ने हर जगह रुक रुक कर माहौल को भोला मय बना दिया। हर पांचवीं कांवड़ दल के साथ भक्ति संगीत का साउंड सिस्टम लगा हुआ देखा गया। जहां जहां भंडारे लगे थे वहां भी डीजे सिस्टम लगा हुआ था। यानि करोड़ों का कारोबार संगीत साउंड सिस्टम का भी हुआ करता है।
झांकियां, मूर्तियों को बनाने वाले सैकड़ो मूर्तिकारों को भी कांवड़ यात्रा में रोजगार मिल रहा है। कहीं शिव तो कहीं भारत माता तो कहीं बुल्डोजर बाबा तो कहीं किसे और देव की प्रतिमाओं को बना कर झांकियों के रूप में पेश किया जाता है । वाहनों पर, ठेलो पर रिक्शा पर देव दरबार को झांकियां एक कार्निवाल की तरह सड़को पर बढ़ती दिखाई देती है। बताया गया कि एक एक मूर्ति पर पांच से एक लाख रु तक का खर्चा कांवड़ दल करते रहे है। ऐसी सैकड़ो झांकियां कांवड़ यात्रा में दिखलाई देती है।
इन्हें ट्रकों और जीपों में भरकर हरिद्वार लाया जाता है और फिर इन्हें सजाकर वापस शिव मंदिरों में ले जाया जाता है।
चार्टेड अकाउंटेंट प्राची डावर बताती है एक शिवभक्त कांवड़ हरिद्वार में गंगा जल लेने जा आता है तो वो करीब दो से तीन हजार रु खर्च करता है उसे कलश भी चाहिए,टी शर्ट नेकर बांस माला आदि चाहिए। उसे भोजन भी करना है, ऐसे में जब चार करोड़ कांवड़िए हरिद्वार आते है तो उनका खर्च जोड़ा जाए तो ये दस हजार करोड़ से कम नहीं होता। जिन शहरो और कस्बों के शिवालयों में कांवड़िए पहुंच कर जलाभिषेक करते है उन स्थानों के आसपास दो से तीन हफ्तों तक मेला लगता है। जहां दुकानें सजती है और कांवड़ लेकर आए शिव भक्तो के परिजन उनका स्वागत करने पहुंचते है। यहां पर भी जमकर कारोबार करते है।
सरकार का खर्च
एक अनुमान के मुताबिक पुलिस प्रशासन के आठ से दस हजार पुलिस कर्मी हर राज्य में कांवड़ ड्यूटी पर रहते है जिनपर सरकार का खर्च भी करोड़ों में पहुंचता है। इस बार तो कई राज्यो के मुख्यमंत्रियों ने स्वयं कांवड़ियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाए, उनका चरण धोकर सम्मान भी किया। उच्च पुलिस अधिकारियों और प्रशासन के अधिकारियों को सड़को पर कांवड़ियों की सेवा करते देखा गया, कोई जूस पिला रहा था तो कोई पानी पिला रहा था।
कुल मिलाकर कांवड़ यात्रा ने हर साल हजारों करोड़ों के कारोबार ने हर वर्ग को फायदा मिलता है, हालंकि जब कांवड़ चलती है तो यातायात प्रभावित होने से कुछ शहरो में माल की सप्लाई पहुंचने में भी देरी होने से नुकसान भी होता है लेकिन जिन्हे पता होता है कि श्रावण मास में इन इन मार्गो से कांवड़ गुजरती है वो पहले से अब वैकल्पिक व्यवस्था बना कर चलते है।
टिप्पणियाँ