उत्तर प्रदेश की गोला गोकर्णनाथ नगरी इन दिनों शिवभक्त कांवरियों के ‘हर हर महादेव’ और ‘बम बम भोले के श्रद्धासिक्त जयघोषों से सतत गुंजायमान हो रही है। हो भी क्यों न! आखिर भोलेनाथ का प्रिय श्रावण मास जो चल रहा है। जानना दिलचस्प हो कि लखीमपुर-खीरी जिले की यह पुरायुगीन नगरी श्रद्धालुओं के मध्य सूबे की ‘छोटी काशी’ के नाम से विख्यात है। यहां के पौराणिक शिव मंदिर के प्रति श्रद्धालुओं की गहन आस्था है। यही वजह है कि महादेव के इस युग प्राचीन मंदिर में स्थापित अद्भुत शिवलिंग का जलाभिषेक करने प्रति वर्ष श्रावण मास में लाखों शिवभक्त व कांवरिये यहां आते हैं।
गोला गोकर्णनाथ शिव मंदिर में देवाधिदेव की श्रंगार पूजा कराने वाले मुख्य पुरोहित पंडित दिनेश मिश्र के मुताबिक यह सिद्ध शिव मंदिर त्रेता युग का माना जाता है। इसके पौराणिक महात्म्य का वर्णन शिव पुराण, वामन पुराण, कूर्म पुराण, पद्म पुराण और स्कंद पुराण जैसे ग्रंथों में मिलता है। वैद्यनाथ धाम की भांति इस युग प्राचीन शिव मंदिर में स्थापित शिवलिंग की कथा भी शिवभक्त राक्षसराज रावण के देवाधिदेव को पार्थिव लिंग स्वरूप में कैलाश से लंका ले जाने से जुड़ी है।
कथा है कि महादेव इस शर्त पर उसके साथ जाने को तैयार हुए कि मध्य मार्ग में यदि उसने कहीं पर भी उनके शिवलिंग को कंधे से उतारा तो वे वहीं स्थापित हो जाएंगे। कैलाश को अपने हाथों से उठा लेने के अहंकार से भरा रावण इस शर्त पर सहर्ष तैयार हो गया। कहते हैं कि गंतव्य की ओर चलते समय रावण जब इस गोकर्ण क्षेत्र से होकर गुजरा तो इस क्षेत्र की दिव्य ऊर्जा ने महादेव के मन में यहीं स्थापित हो जाने की इच्छा जगा दी। फलस्वरूप उनकी माया से रावण को लघुशंका की तीव्र आवश्कता प्रतीत होने लगी और वेग को नियंत्रित करने में असफल रावण कोई और युक्ति न देख पास में गायें चरा रहे एक ग्वाले को कुछ देर के लिये उस शिवलिंग को थमाकर लघुशंका से निवृत होने चला गया।
उधर अचानक उस शिवलिंग का भार अप्रत्याशित रूप से बढ़ने से उसे सँभालने में असफल ग्वाले ने उसे वहीं भूमि पर रख दिया। वापस लौट जब रावण ने शिवलिंग को भूमि पर रखा देखा तो वह अत्यधिक क्रोधित हुआ और उसने उस शिवलिंग उठाने का अथक प्रयास किया; लेकिन पूरी तरह असफल रहा। तब रावण उस ग्वाले को मारने दौड़ा किन्तु जान बचाने के लिए भागते समय वह ग्वाला एक कुएं में गिरकर मर गया। तब थका हारा क्रोधित रावण अपने अंगूठे के दबाब से उस शिवलिंग को वहीं भूमि में दबाकर रीते हाथ लंका लौट गया। इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग पर रावण के अंगूठे का निशाना आज भी विद्यमान है। सरायन नदी और उल्ल नदी के बीच गाय के कान के समान आकृति के कारण इस पुण्य क्षेत्र का गोकर्ण तीर्थ के नाम से उल्लेख पुराणों में भी मिलता है।
यही नहीं, मध्ययुग की एक ऐतिहासिक किवदंती भी इस प्राचीन शिवतीर्थ की महिमा का यशोगान करती है। मंदिर समिति के अध्यक्ष जनार्दन गिरि बताते हैं कि मुगलों के शासनकाल में क्रूर, आतातायी व धर्मान्ध बादशाह औरंगजेब ने इस मंदिर पर आक्रमण किया था; मगर जैसे ही औरंगजेब ने अपनी सेना के साथ गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग को नष्ट करने का प्रयास किया कि अचानक मंदिर के समीप के एक विशाल वृक्ष के पीछे से भगवान शिव के रौद्र अवतार भैरव बाबा की एक बड़ी सेना ने निकलकर मुगल सेना पर इतना जोरदार हमला बोला कि औरंगजेब को मैदान छोड़ जान बचाकर भागना पड़ा। उक्त घटना के बाद श्रद्धालुओं शिव मंदिर के पीछे भैरव बाबा का मंदिर बनवा दिया। आज भी यहां आने वाले भक्त शिव मंदिर में पूजन के बाद भैरो बाबा को शीश अवश्य नवाते हैं। जानकार बताते हैं कि लगभग 150 वर्ष पहले जूना अखाड़ा के नागा साधु इस शिव मंदिर की देखरेख करते थे।
गौरतलब हो कि गोला गोकर्णनाथ के इस प्राचीन शिव मंदिर के सामने चबूतरे पर कई शिवलिंगों के बीच एक पारद शिवलिंग भी स्थापित है जो अत्यंत ही दुर्लभ माना गया है। धर्मग्रंथों में पारद शिवलिंग की पूजा अर्चना को अक्षय फल प्रदान करने वाला बताया गया है। एक लोकप्रिय दैनिक से संबद्ध गोला क्षेत्र के स्थानीय पत्रकार रहे सुधीर सक्सेना की मानें तो इस पारद शिवलिंग की स्थापना वर्ष 2001 में की गयी थी। वर्तमान मंदिर का क्षेत्रफल करीब 5000 वर्ग मीटर का है। इस शिवमंदिर के तीन द्वार हैं तथा धरातल से गर्भ गृह की गहराई नौ फीट है। मंदिर के अष्टकोणीय गर्भगृह में शिवलिंग डेढ़ फीट गहराई में स्थापित है।
इसी तरह गोला नगर के स्थानीय निवासी अभिनव सक्सेना इस गोकर्ण तीर्थ से जुड़ी एक अन्य रोचक जानकारी देते हुए बताते हैं कि वह कुआं जिसमें गिरकर शिवलिंग को थामने वाला ग्वाले की जान गयी थी, आज भूतनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। किवदंती है कि रावण के जाने के बाद भगवान शिव ने उस ग्वाले की आत्मा को बुलाकर कहा था कि आज के बाद संसार तुम्हें भूतनाथ के नाम से जानेगा तथा मेरे दर्शनों के उपरांत तुम्हारे दर्शन करने वाले भक्तों को विशेष पुण्यलाभ होगा। तभी से यहां हर साल चैत्र और सावन मास में विशाल मेला लगता है और गोला गोकर्ण नाथ तीर्थ में भगवान शिव के दर्शनों को आने वाले लाखों भक्त शिवलिंग के दर्शनों के बाद बाबा भूतनाथ के दर्शन भी अवश्य करते हैं।
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