कारगिल युद्ध को याद कर वीर भूमि महोबा के सेना में पैरामिलेट्री फोर्स के कमांडो रविंद्र सिंह आज भी रोमांचित हो जाते हैं। उन्होंने टाइगर हिल पर तिरंगा फहराया था। रविंद्र ने बताया कि वह 12-12 कमांडो की टुकड़ी में आगे बढ़ रहे थे। जनपद के ही कमांडो जगदीश यादव और बालेंद्र सिंह मातृभूमि की रक्षा के खातिर दुश्मन को जवाब देते हुए देश के लिए बलिदान हो गए थे ।
देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले अमर बलदानियों की शौर्य गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। कारगिल युद्ध के विजेता रविंद्र सिंह का पांच फरवरी 1996 में राजपुताना रायफल में चयन हुआ था। जनपद मुख्यालय स्थित मुहाल आलमपुरा में पिता ज्ञान सिंह, मां अवध कुंवर, पत्नी आशा, एक बेटा दो बेटियों के साथ रह रहे रविंद्र सिंह फरवरी 2012 में सेना से सेवानिवृत्त हो गए हैं।
रविंद्र सिंह बताते हैं कि हम लोग असम जोराहट में तैनात थे। निर्देश मिला कि ढाई सौ कमांडो को कारगिल जाना है। अप्रैल 1999 में विमान से श्रीनगर, फिर कारगिल और वहां से द्रास सेक्टर पहुंचे। जहां ऊँची पहाड़ी पर उन्हीं की बटालियन के कमांडो महोबा के जगदीश यादव दुश्मन को जवाब देते हुए चल रहे थे अचानक उनकी पीठ पर गोला गिरा और वह बलिदान हो गए। वीर भूमि के गंज गांव निवासी वीर सपूत बालेंद्र सिंह जम्मू कश्मीर के आरएस पुरा सेक्टर में दुश्मन से लोहा लेते हुए देश के लिए अपने प्राणों का उत्सर्ग किया।
12-12 कमांडो की टुकड़ी में बढ़ रहे थे आगे
निर्देश दिया गया था कि 12-12 कमांडो की टुकड़ी में आगे बढ़ें। इसमें भी छह आगे जाते, छह कमांडो उनके थकने पर फिर आगे का मोर्चा संभालते थे। दुश्मन को हमारी हर गतिविधि का पता चल रहा था। हम लोग पहाड़ियों से चिपक कर चल रहे थे। असावधानी से सिर उठ जाता तो तुरंत गोली का निशाना बन जाते।
जुलाई में टाइगर हिल किया फतह
जानकारी मिली कि दुश्मन टाइगर हिल पर कब्जा जमाए है। ऊपर पहुंचने में ढाई दिन लगे। दिन में पत्थरों के बीच छिप जाते, रात को मैप के अनुसार बढ़ते। इस बीच कई साथी बलिदान हो गए। हम 24 कमांडो ऊपर पहुंचे थे। जुलाई माह में मिशन कंपलीट कर लिया था। टाइगर हिल पर झंडा फहराने के दौरान कमांडो सत्ते सिंह विष्ट, सुरेंद्र सिंह, ओमवीर सिंह, महावीर व अन्य शामिल रहे थे।
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