पेरिस ओलंपिक के शुरू होने से पहले भारतीय दावेदारी के बारे में पूछे जाने पर महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर ने एक गाने की पंक्ति के साथ जवाब दिया – ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती…. ।’ गौर करके देखा जाए तो इन दिनों इस पंक्ति के हर शब्द को चरितार्थ कर रहा है भारतीय खेल जगत। 1996 अटलांटा ओलंपिक में लिएंडर पेस ने जो कांस्य पदक जीत भारतीय खेल को एक राह दिखायी थी, हर ओलंपिक खेलों में कोई न कोई पदक जीत उस परंपरा को आज तक भारतीय खिलाड़ियों ने कायम रखा है।
नयी सदी में तो ओलंपिक खेलों में इतिहास रचने का क्रम सा चल गया है भारतीय खिलाड़ियों के बीच। यह एक सुखद संयोग है…. अब भारतीय खिलाड़ी ओलंपिक खेलों में महज भागीदारी नहीं, बल्कि कड़ी चुनौती पेश करते हुए पदक की दावेदारी पेश करने को मैदान में उतरते हैं। 2000 सिडनी ओलंपिक में कर्णम मल्लेश्वरी ने भारतीय सफलता का जो भार अपने कंधों पर उठाया था, उस परंपरा को आगे बढ़ाते हुए सायना नेहवाल, एम सी मैरीकॉम, पी वी सिंधू (2016 रियो व 2020 टोक्यो ओलंपिक), साक्षी मलिक, मीराबाई चानू और लवलीना बोर्गोहेन ने नारी शक्ति का जयघोष गुंजायमान रखा। कमोबेश इसी तरह 2004 एथेंस ओलंपिक में राज्यवर्धन सिंह राठौर ने रजत पदक पर निशाना साध जो इतिहास रचा, अगले ही ओलंपिक में शूटर अभिनव बिंद्रा (2008 बीजिंग ओलंपिक) ने देश के लिए पहला व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक जीत भारतीय परचम को शिखर पर लहरा दिया। इस दौरान भारतीय खिलाड़ियों ने विभिन्न खेल स्पर्धाओं जैसे शूटिंग, कुश्ती, मुक्केबाजी, बैडमिंटन, भारोत्तोलन, हॉकी में पदक जीतते हुए देश को एक सशक्त खेल राष्ट्र बनाने की ओर अग्रसर किया। पिछले टोक्यो ओलंपिक में तो नीरज चोपड़ा ने भाला फेंक स्पर्धा जीत देश के लिए पहला एथलेटिक्स ओलंपिक पदक (स्वर्ण) जीत शान के साथ तिरंगा का मान और ऊंचा उठा दिया। इस क्रम में टोक्यो में कुल सात पदक जीत भारत ने ओलंपिक खेलों में अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया था। …. अब पेरिस में अगले ओलंपिक खेलों का मंच सज चुका है। करोड़ों खेल प्रशंसकों को एक बार फिर ओलंपिक खेलों में भारतीय दल से बड़ी उम्मीदें हैं। और भारतीय खिलाड़ियों के हौसले व आशातीत सफलताएं कह रही हैं – हैं तैयार हम।
सकारात्मक सोच की जरूरत
कई खेल विशेषज्ञों को आपत्ति है कि महज सात पदकों के आधार पर देश को खेल महाशक्ति के रूप में कैसे परिभाषित किया जा सकता है ? उन्हें यह समझना बेहद जरूरी है कि यह समय नकारात्मकता फैलाने की नहीं, बल्कि जिस तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व्यक्तिगत तौर पर भारतीय खेल व खिलाड़ियों की सफलता पर प्रोत्साहित करते हैं उसी तरह सकारात्मक के साथ भारतीय खिलाड़ियों की सफलताओं के आधार पर उन्हें भारतीय परचम लहराने को प्रेरित करने का समय है। खेलप्रेमियों को याद होगा जब महान एथलीट स्व. मिल्खा सिंह सहित देश के शीर्ष एथलीटों ने 1992 बार्सिलोना ओलंपिक से खाली हाथ लौटने के बाद भारतीय दल की ओलंपिक भागीदारी पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए थे। कई शीर्ष देशों के बहिष्कार के बीच 1980 मास्को ओलंपिक में जीते एकमात्र (हॉकी का स्वर्ण) पदक के बाद देश एक अदद पदक के लिए तरस रहा था। क्रिकेट व थोड़ा-बहुत टेनिस को छोड़ भारतीय खेल जगत खस्ता हाल में था। स्वतंत्र भारत में 1952 में के डी सिंह जाधव के बाद देश को अगला व्यक्तिगत ओलंपिक पदक जीतने में 44 साल लग गए। उससे पहले सिर्फ भारतीय हॉकी टीम ओलंपिक पदक जीतती आ रही थी। अब स्थिति यह है कि हॉकी टीम ने मास्को 1980 के बाद 2021 (टोक्यो) में अगला ओलंपिक पदक जीता, जबकि हर बार व्यक्तिगत स्पर्धाओं में भारतीय खिलाड़ी ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल कर देश को नई राह पर ले जाने की भरसक कोशिश कर रहे हैं। यह समय उन्हें प्रोत्साहन देने का है न कि महज आलोचना करने के लिए उन खिलाड़ियों पर सवाल उठाने का है।
विश्व खेल पटल पर धमक
पिछले टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण जीतने के बाद नीरज चोपड़ा विश्व खेल जगत में ‘गोल्डन ब्वॉय’ के रूप में सफलताएं अर्जित कर रहे हैं। देश के सबसे युवा व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता नीरज की सफलताओं को सूचीबद्ध करने से बेहतर यह जान लेना काफी है कि गत ओलंपिक से लेकर एशियाई खेल, राष्ट्रकुल खेल, विश्व चैंपियनशिप और गोल्डन लीग एथलेटिक्स सभी के चैंपियन एथलीट हैं नीरज। इसके अलावा नीरज ने अपने दमदार प्रदर्शन से देश के इतने युवा एथलीटों को बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित किया है कि पिछले विश्व एथलेटिक्स चैंपियनशिप की भाला फेंक स्पर्धा के 8 फाइनलिस्ट में नीरज सहित तीन भारतीय थे। नीरज ने स्वर्ण जीता, जबकि पेरिस ओलंपिक में भाग ले रहे किशोर जीना ने हुंकार भरी कि देश से और भी चैंपियन खिलाड़ी निकलने को तैयार हैं। अपने पहले ही ओलंपिक में धमाकेदार शुरुआत करने वाले नीरज ने प्रेरित होकर अगर 2-3 पदक एथलेटिक्स से आ जाएं तो विश्वास मानें, आश्चर्य की बात नहीं होगी।
रोचक होगी बैडमिंटन स्पर्धा
पेरिस ओलंपिक में हालांकि भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ियों को कठिन ड्रॉ मिले हैं। इसके बावजूद उनसे पदक की उम्मीद जरूर है। खेलों के महाकुंभ में पदक जीतना कभी भी आसान नहीं होता है और उन्हीं बाधाओं को पार करते हुए तो पी वी सिंधू पिछले दो ओलंपिक खेलों में पदक जीतती आ रही हैं। इस बार उनसे लगातार तीसरी बार ओलंपिक पदक जीत इतिहास रचने की उम्मीद की जा रही है। इसी तरह पिछले वर्ष विश्व बैडमिंटन चैंपियनशिप में भारत के एच एस प्रणॉय ने टोक्यो ओलंपिक के स्वर्ण पदक विजेता विक्टर एक्सेलसन को हराकर सेमीफाइनल में प्रवेश किया था। जब आप बड़े मंच पर ओलंपिक चैंपियन को हराने की क्षमता रखते हैं तो कोई भी प्रतिद्वंद्वी भारतीय खिलाड़ियों को हल्के तौर पर लेने की चूक कर ही नहीं सकता है। पुरुष एक वर्ग में प्रणॉय के साथ युवा सनसनी लक्ष्य सेन देश की दावेदारी पेश करेंगे जिन्होंने पिछले 2-3 वर्षों में अलग-अलग मंच पर विश्व चैंपियन लोह कीन यू (2022 इंडियन ओपन फाइनल) सहित विश्व के शीर्षस्थ 1-5 नंबर के खिलाड़ियों को मात दी है। यही नहीं, विश्व बैडमिंटन में तेजी से उभरी सात्विक साईंराज व चिराग शेट्टी की जोड़ी बेहतरीन फॉर्म में चल रही है और उनके साथ कोई बड़ा उलटफेर नहीं हुआ तो क्वार्टर फाइनल तक का सफर बड़ी आसानी से वे तय करने में सफल रहेंगे। ग्रुप स्टेज में इस जोड़ी की फॉर्म व लय उन्हें पदक विजेता मंच तक पहुंचाने का माद्दा रखती है।
और भी है बाजुओं में दम
पेरिस ओलंपिक में भारत की ओर से अन्य खेलों जैसे भारोत्तोलन, शूटिंग, कुश्ती, मुक्केबाजी, तीरंदाजी और पुरुष हॉकी टीम से भी काफी उम्मीदें हैं। ओलंपिक खेलों में चूंकि विश्व के तमाम धुरंधर सिर्फ जीत के लक्ष्य के साथ मुकाबले में उतरते हैं तो इतना तय है कि भारतीय खिलाड़ियों को मिले ड्रॉ और मुकाबले के समय की लय सही रही तो फिर पदक भारत की झोली से दूर नहीं होंगे। सुशील कुमार (2008 बीजिंग व 2012 लंदन ओलंपिक पदक विजेता) ने दोहरा ओलंपिक पदक जीत भारतीय पहलवानों में जो एक अलख जगायी कि योगेश्वर, साक्षी मलिक, बजरंग पूनिया और रवि दहिया ओलंपिक खेलों में लगातार भारतीय झंडा बुलंद करते रहे। इस बार भी अनुभवी विनेश फोगाट सहित अंतिम पंघाल (53 किग्रा) और पेरिस में भाग ले रहे एकमात्र भारतीय पुरुष पहलवान अमन सहरावत (57 किग्रा) में कुश्ती मैट से पदक निकालने की क्षमता है। कमोबेश यही स्थिति मुक्केबाजी में है। विजेंदर सिंह और मैरीकॉम की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए गत टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना बोर्गोहेन (75 किग्रा) और दो बार की विश्व चैंपियन निकहत जरीन (50 किग्रा) तैयार दिख रही हैं। ये दोनों पदक के प्रबल दावेदारों में शामिल हैं और विपक्षी के जबड़े से जीत निकालने की इनमें क्षमता है। निकहत का तो यह हाल है कि अंतरराष्ट्रीय खेल में पदार्पण के बाद 2022 से लेकर अब तक वह मात्र दो मुकाबलों में परास्त हुई हैं। पावर गेम भारोत्तोलन में भी टोक्यो ओलंपिक रजत पदक विजेता मीराबाई चानू से भी काफी उम्मीदें रहेंगी। पूर्व विश्व चैंपियन मीराबाई का अनुभव देश को पदक दिला सकता है। हालांकि लंबे समय से अमेरिका में प्रशिक्षण ले रहीं मीराबाई कमर, जांघ और कलाई के चोटों से बची रहीं तो भारत को महिला भारोत्तोलन में पदक मिलना लगभग तय है।
लक्ष्य पर रहेंगी निगाहें
दूसरी ओर, पुरुष हॉकी टीम ने टोक्यो में कांस्य पदक जीत एक बार फिर से आगाह कर दिया है कि एक जमाने में हॉकी पर राज करने वाली भारतीय टीम को हल्के तौर पर नहीं लिया जा सकता है। उसके अलावा गत विजेता बेल्जियम व ऑस्ट्रेलिया जैसी सशक्त टीमों के साथ ग्रुप मुकाबले से नॉकआउट दौर में क्वालीफाई करने के बाद भारतीय टीम पदक की दहलीज पर पहुंचने में सफल हो सकती है। अंत में मनु भाकर की अगुआई में शूटिंग टीम से भारत को काफी उम्मीदें होंगी। महिलाओं की 10 मी. एयर पिस्टल और 25 मी. पिस्टल स्पर्धाओं में वह देश का प्रतिनिधित्व करेंगी और ऐन मौके पर उनका ध्यान पूरी तरह से केन्द्रित रहा तो उनका स्वर्ण पदक जीतना तय है। इसी तरह गोल्फ में भी भारतीय खिलाड़ी पर नजरें रहेंगी।
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