विज्ञान और तकनीक

कहां से चलकर कहां तक पहुंचा यूट्यूब

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बालेन्दु शर्मा दाधीच

पिछले कुछ अंकों में ब्लॉगिंग की बात करने के बाद अब हम यूट्यूब के बारे में व्यावहारिक लेखों की एक शृंखला शुरू कर रहे हैं। जिस अंदाज में आज इंटरनेट पर क्रिएटर इकॉनमी (रचनाकर्म की अर्थव्यवस्था) का बोलबाला है, उसे देखते हुए हममें से प्रत्येक व्यक्ति के पास यह अवसर है कि वह अपनी प्रतिभा, अनुभव, कौशल, रचनात्मकता आदि को सोशल मंचों के जरिए दुनिया के सामने लाए और लाभ उठाए। यह लाभ सामाजिक मान्यता के रूप में भी हो सकता है, प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि के रूप में भी, लोकप्रियता के रूप में भी तथा आर्थिक दृष्टि से भी। अनेक लोग यूट्यूब पर नाम के साथ-साथ धन भी कमा रहे हैं। आप भी ऐसा कर सकते हैं।

यूट्यूब गूगल की सहायक कंपनी है, जिसने दुनिया में वीडियो सामग्री को हमारे दैनिक जीवन की आवश्यकता के रूप में स्थापित कर दिया है। उसने वीडियो कन्टेन्ट क्षेत्र में क्रांति ला दी है। दो दशक पहले यूट्यूब की शुरुआत एक स्वतंत्र कंपनी के रूप में हुई थी जिसका गूगल से कोई संबंध नहीं था। इसे ‘पेपल’ (PayPal) नामक कंपनी के तीन पूर्व कर्मचारियों स्टीव चेन, चैड हर्ले और जावेद करीम ने फरवरी 2005 में शुरू किया था। उनका लक्ष्य एक ऐसा मंच बनाना था जहां उपयोगकर्ता आसानी से आनलाइन वीडियो सामग्री को साझा कर सकें और देख सकें।उस समय जब दुनिया में ब्लॉग लोकप्रिय हो रहे थे जो मुख्य रूप से टेक्स्ट (पाठ) आधारित कन्टेन्ट पर केंद्रित थे। टेक्स्ट के साथ-साथ चित्र, ध्वनि और वीडियो जैसे कन्टेन्ट स्वरूपों को भी इसी तरह से आगे बढ़ाए जाने की संभावना देखी जा रही थी। यूट्यूब इसी का परिणाम था।

गूगल, बिंग, याहू (तत्कालीन) आदि सर्च इंजनों के जरिए तुरंत टेक्स्ट आधारित वेबसाइटों की सामग्री को खोजा जा सकता था, लेकिन यह सहजता और सुविधा वीडियो सामग्री के मामले में उपलब्ध नहीं थी। वीडियो बनाना, उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करना, खोजना और सरलता से देखना-चारों ही मुश्किल काम थे। यूट्यूब ने इन समस्याओं का समाधान करने में योगदान दिया। पहले अगर किसी वेबसाइट पर कोई वीडियो पोस्ट किया जाता था तो पहले वह पूरा का पूरा डाउनलोड होता था और तब आप उसे देख पाते थे। अर्थ यह कि वीडियो को देखने के लिए पहले कुछ मिनट तक उसके डाउनलोड होने की प्रतीक्षा करना।

यह बहुत अरुचिकर और बोझिल काम था, इसलिए उस दौर में वीडियो कन्टेन्ट लोकप्रिय नहीं था। लेकिन यूट्यूब ने ‘स्ट्रीमिंग प्रौद्योगिकी’ का प्रयोग किया जिसके तहत वीडियो को पूरा डाउनलोड किए बिना ही देखा जा सकता था। जैसे ही आप वीडियो के प्ले बटन को क्लिक करते थे, वीडियो का प्रोग्रेसिव डाउनलोड शुरू हो जाता था और साथ ही साथ स्ट्रीमिंग शुरू हो जाती थी। इसका मतलब यह कि आप वीडियो का उतना हिस्सा देख सकते थे, जितना डाउनलोड हो चुका है। शेष हिस्सा पृष्ठभूमि में डाउनलोड होता रहता था और आपको उसका पता नहीं चलता था, क्योंकि आप तो वीडियो देखना शुरू कर चुके होते थे।

इसी तरह के नवाचार ने न सिर्फ वीडियो कन्टेन्ट को लोकप्रिय बना दिया, बल्कि स्वयं यूट्यूब को भी। उसकी लोकप्रियता को देखते हुए गूगल ने लगभग डेढ़ साल बाद, नवंबर 2006 में 1.65 अरब डॉलर में यूट्यूब का अधिग्रहण कर लिया। गूगल पहले ही इंटरनेट खोज और आनलाइन विज्ञापनों के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी थी और यह मंच उसकी सेवाओं का पूरक हो सकता था। आज यूट्यूब का बाजार मूल्य 400-500 अरब डॉलर माना जाता है। गूगल की कमाई में उसकी हिस्सेदारी 10 प्रतिशत से अधिक है। 2023 के आंकड़ों के अनुसार उसने उस वित्त वर्ष में लगभग 31.5 अरब डॉलर की कमाई की है। कहने का तात्पर्य यह कि यह प्लेटफॉर्म तकनीकी दुनिया में ठोस रूप में प्रतिष्ठित हो चुका है।
(लेखक माइक्रोसॉफ़्ट में डेवलपर मार्केटिंग के प्रमुख हैं) 

 

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