आज से 25 साल पहले (26 जुलाई 1999 ) भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तानी फौज को धूल चटा दी थी। भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल में हुआ वह युद्ध 60 दिनों तक चला था। पाकिस्तान पर भारत की इस जीत को याद करते हुए 26 जुलाई को ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। पाकिस्तानी सैनिकों और भाड़े के आतंकियों को खदेड़कर भारतीय सेना ने कारगिल की चोटियों पर जीत का परचम लहराया था। इस ऑपरेशन विजय में देश ने कई रणबांकुरों को खो दिया। उस युद्ध में भारत को विजय दिलाने में भारतीय सेना के सैकड़ों जवान बलिदान हुए थे।
कारगिल विजय दिवस सही मायनों में भारतीय सैनिकों के साहस और बलिदान को स्मरण करने तथा उनके बलिदान को सम्मान देने का दिन है और 26 जुलाई का दिन विशेष रूप से देश के इन्हीं वीर सपूतों को समर्पित है। देश के जन-जन तक कारगिल युद्ध के इन्हीं नायकों के शौर्य और पराक्रम की गाथा पहुंचाने के लिए ही यह दिवस मनाया जाता है। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद कारगिल में दोनों देश सीधे तौर पर सैन्य संघर्ष में शामिल हुए थे। कारगिल युद्ध भारतीय सीमा क्षेत्र में पाकिस्तानी सैनिकों और कश्मीरी आतंकवादियों की घुसपैठ का परिणाम था। उस भीषण युद्ध में वायु शक्ति, तोपखाने और पैदल सेना के संचालन का व्यापक उपयोग किया गया था।
वह युद्ध काफी ऊंचाई पर लड़ा गया था, जिसमें कुछ सैन्य चौकियां तो 18 हजार फुट से भी ज्यादा ऊंचाई पर स्थित थी। ऐसे में भारतीय सैनिकों के लिए वह लड़ाई बेहद चुनौतीपूर्ण थी लेकिन हमारे जांबाजों ने देश की आन-बान और शान के लिए अपने प्राणों की आहुति देकर न केवल पाकिस्तान को उसकी असली औकात दिखाई । दुश्मन को रणनीतिक स्थानों से हटाने के लिए महत्वपूर्ण हवाई हमले करते हुए भारतीय वायुसेना ने उस युद्ध के दौरान बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। भारतीय सेना ने युद्ध के दौरान तोलोलिंग, टाइगर हिल, प्वाइंट 4875 सहित अन्य रणनीतिक चोटियों पर फिर से कब्जा कर लिया था।
कारगिल युद्ध की शुरुआत 26 मई 1999 को भारतीय सेना के हवाई हमले के साथ हुई थी। दरअसल भारतीय सेना को 3 मई 1999 को कारगिल में स्थानीय चरवाहों द्वारा पाकिस्तानी सैनिकों और आतंकियों के बारे में सतर्क किया गया था और उसके दो ही दिन बाद 5 मई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के कम से कम 5 जवानों की धोखे से हत्या की थी। उसके बाद 10 मई 1999 को भारतीय सेना द्वारा ‘ऑपरेशन विजय’ की शुरुआत की गई। उस दौरान कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने भारतीय सेना के गोला-बारूद भंडार को निशाना बनाया।
26 मई को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों पर हवाई हमला किया। 27 मई को भारतीय वायुसेना का एक मिग-27 गिर गया, जिसमें चार क्रू सदस्य बलिदान हुए। विमान से बाहर निकलने वाले पायलट को पाकिस्तानी सैनिकों ने युद्धबंदी के रूप में पकड़ लिया। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 31 मई 1999 को घोषणा की कि कारगिल में युद्ध जैसी स्थिति है, जिसके बाद अमेरिका, फ्रांस सहित कुछ देशों ने अगले ही दिन भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया। भारतीय सेना ने 5 जून 1999 को कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किए, जिनसे पूरी दुनिया के समक्ष पाकिस्तान की करतूत का खुलासा हुआ।
भारतीय सेना ने 9 जून 1999 को कारगिल के बटालिक सेक्टर में दो महत्वपूर्ण ठिकानों पर कब्जा कर लिया। अगले ही दिन पाकिस्तान ने जाट रेजिमेंट के 6 सैनिकों के शव क्षत-विक्षत हालत में भारत को लौटाए। 13 जून 1999 को भारत ने युद्ध की दिशा बदलते हुए महत्वपूर्ण तोलोलिंग चोटी पर भी कब्जा कर लिया और प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कारगिल का दौरा किया। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 15 जून 1999 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से पाकिस्तानी सैनिकों को पीछे हटाने का आग्रह किया लेकिन पाकिस्तान ने उस अपील को अनसुना कर दिया।
11 घंटे के भीषण संघर्ष के बाद भारतीय सेना ने 20 जून 1999 को टाइगर हिल के पास प्वाइंट 5060 और प्वाइंट 5100 पर भी पुनः कब्जा कर लिया। अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने 5 जुलाई 1999 को नवाज शरीफ से मुलाकात की, जिसके बाद पाकिस्तान ने कारगिल से पाकिस्तानी सैनिकों को हटाने की घोषणा की। 11 जुलाई 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों ने पीछे हटना शुरू किया और भारतीय सेना ने बटालिक की प्रमुख चोटियों पर कब्जा कर लिया। भारतीय सेना ने 14 जुलाई 1999 को ‘ऑपरेशन विजय’ की सफलता की घोषणा की और 26 जुलाई 1999 को वीर 527 सैनिकों के बलिदान के बाद कारगिल युद्ध समाप्त हुआ।
बहुत ऊंचाई पर लड़े गए उस भीषण युद्ध के दौरान बहादुरी और साहसिक कार्यों के लिए सेना के जांबाजों को देश ने सलाम किया। कारगिल युद्ध में शौर्य और पराक्रम के लिए ग्रेनेडियर योगेन्द्र सिंह यादव तथा लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय को परमवीर चक्र (मरणोपरांत)और लेफ्टिनेंट बलवान सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। कैप्टन एन केंगुरुसे को मरणोपरांत महावीर चक्र और कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान कर उनके बलिदान का सम्मान किया गया। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन विक्रम बत्रा के शब्द, ‘ये दिल मांगे मोर’ तो अब भी लोगों के कानों में गूंजते हैं। कारगिल युद्ध के ऐसे ही वीर नायकों की बहादुरी, साहस और जुनून की कहानियां आज भी देश के प्रत्येक नागरिक के दिलोदिमाग में जोश भर देती हैं।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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