एक फिल्म आई थी इश्किया और उसमें गुलज़ार ने एक गाना लिखा था “इब्नबतूता बगल में जूता, पहने तो करता है चुर्रर” और इस पर अरशद वारसी, नसीरुद्दीन शाह और विद्या बालन का शराब पीकर “बजरंगी ढाबे” पर डांस दिखाया था, जिसमें कुछ लोग शराब पीकर नाच रहे हैं। उस समय काफी विवाद हुआ और यह कहा गया कि इब्नबतूता के जूते की कल्पना सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता “इब्नबतूता पहन के जूता” से ली गई है। और फिर तमाम बहसें हुईं। मगर एक जो सबसे महत्वपूर्ण बिंदू इस बहस से छूटा कि आखिर ऐसा क्या किया था या फिर ऐसा क्या विशेष था इब्नबतूता में, जो उसके नाम पर कविता या फिल्मी गाने बन गए?
आखिर कौन था वह? इब्नबतूता मोरक्को का एक मुस्लिम यात्री था, जिसने 14वीं शताब्दी में पूरी दुनिया का सफर किया था। भारत में वह तब आया था, जब मुहम्मद बिन तुगलक (1325-51) का शासन था और यहाँ वह उसके दरबार में मालिकी काजी के रूप में आठ वर्ष तक रहा था। वहाँ पर उसने कई निकाह किये थे और उसके पास अनगिनत रखैलें भी थीं। जब दिल्ली की राजनीति में उथल-पुथल होने लगी तो वह वहाँ से गया और जाते समय उसने अपनी बीवियों को तलाक दे दिया था।
ये रखैलें उसे “तोहफे” में मिली थीं।
इब्नबतूता मुसाफिर बनकर एक जगह से दूसरी जगह जाता था और फिर अपने सफर की कहानियाँ उसने लिखीं। भारत में भी वह कई स्थानों पर गया। जब वह मालाबार (केरल) पहुंचा तो वह बहुत प्रभावित हुआ था और वहाँ पर मुस्लिमों की संख्या काफी है, इससे भी वह काफी खुश हुआ था। वह जब कालीकट पहुंचा तो वहाँ पर चीन जाने के लिए तीन महीने तक रुकना पड़ा। चीन के समुद्र की यात्रा केवल चीन के ही जहाजों से की जा सकती थी। बड़े जहाजों को जंक, बीच के जहाजों को जौज (zaws) और सबसे छोटे जहाज को कंकम कहा जाता था।
जहाजों का उल्लेख इसलिए क्योंकि यह बताया जा सके कि इब्नबतूता को बड़ा जहाज चाहिए था, क्योंकि बिना सेक्स स्लेव के उसे सफर करने की आदत नहीं थी। उसकी असंख्य सेक्स स्लेव होती थीं और उनका क्या हश्र हुआ करता था, यह आज तक पता नहीं चला है। हालांकि कई यौन कनीजें रास्ते में मारी भी जाती होंगी, कई जहाजों में जल जाती होंगी, कई दुर्घटनाओं मे मारी जाती होंगी, मगर उनके साथ क्या होता था यह आज तक किसी को नहीं पता है। हालांकि उसने अपने यात्रा वृतांत में अपनी इस आदत को छिपाने का तनिक भी प्रयास नहीं किया है। क्योंकि जिस समय वह भारत में आया था, उस समय इस्लाम तेजी से कई माध्यमों से पूरी दुनिया में विस्तारित हो रहा था, फिर चाहे व्यापार हो, या फिर युद्ध या फिर जबरन निकाह आदि। भारत का इतिहास इन तमाम घटनाओं का गवाह है।
इब्नबतूता जब कालीकट से चलने लगा तो उसने कालीकट के हिन्दू राजा से कहा कि उसे भी एक “जंक” अपने लिए चाहिए, क्योंकि उसके पास सेक्स स्लेव्स हैं और उसकी आदत उनके बिना सफर करने की नहीं है। और फिर उसने अपने लिए सेक्स स्लेव्स की व्यवस्था की। यह नहीं पता चला है इस यात्रा वृतांत से कि ये लड़कियां उसके साथ पहले से थीं, या नई लाई गईं? यदि पुरानी होतीं तो इतने दिनों तक वे कहाँ रहतीं और यदि नई थीं, तो कहाँ से थीं यह सब पता नहीं चलता है और जब वह यह कहता है कि उसकी आदत है सेक्स स्लेव के साथ सफर करने की, तो यह भी सच है कि उसके हर सफर में ऐसी लड़कियां रही होंगी?
अब प्रश्न उठता है कि आखिर वे कहाँ गईं? Concubines and Courtesans, Women and Slavery in Islamic History में Marina A. Tolmacheva, Concubines on the Road: Ibn Battuta’s Slave Women में उन महिलाओं के विषय में प्रश्न करती हैं, कि आखिर ये लड़कियां कौन थीं और उनके साथ क्या हुआ? इस लेख का शीर्षक ही अपने आप में भारत में फैले उस छद्म रोमांटिसिज़्म की पोल खोलता है, जो हमारे बच्चों के मन में “बतूता का जूता” और युवाओं के मन में गुलज़ार के गाने के माध्यम से डाला जा रहा है।
शीर्षक है “सड़क पर रखैलें: इब्नबतूता की स्लेव महिलाएं”। क्या वास्तव में ये सड़क पर चलती हुई महिलाएं ही होंगी या फिर कौन होंगी ये? इस लेख में लिखा है कि उसने मिस्र पहुँचने से पहले अपने पहले ही सफर में दो शादियाँ की थीं और उसके बाद उसने कई कनीजो और बीवियों को अपने हर सफर के दौरान खरीदा था।
इब्नबतूता के जो भी यात्रा वृतांत हैं, उनमें मजहबी तालीम के प्रति गौरव भाव, मजहबी विस्तार के प्रति खुशी और मजहबी कानून से परे कुछ भी नहीं है। जब वह मालाबार के विषय में लिख रहा था, वहाँ पर भी उसने अपनी इसी सोच के साथ ही विवरणों को लिखा था।
सेक्स स्लेव अर्थात माले गनीमत अक्सर उन महिलाओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जिन्हें लड़ाई में जीता गया हो। आदमियों को मार डाला गया या फिर उन्हें कैद कर लिया गया और लड़कियों और महिलाओं को इस उद्देश्य के लिए प्रयोग किया गया। मगर जब वह मालाबार में आया था, तो वहाँ पर मुस्लिम आक्रमणकारी के रूप में नहीं थे, बल्कि व्यापारियों के रूप में थे। शासक हिन्दू ही थे। उस समय उसके लिए सेक्स स्लेव की व्यवस्था, अपने आप में हैरान करने वाली बात है। मगर इससे भी कहीं अधिक हैरान करने वाली बात है कि ऐसे आदमी, जिसकी अय्याशी के कारण सैकड़ों लड़कियों और महिलाओं की जिंदगी का ही कुछ पता नहीं है, उसके जूते को लेकर हमारे यहाँ बच्चों के दिमाग में कविताएं डाली जा रही हैं?
जब लेखकों, कवियों और गीतकारों की कलम को उन अज्ञात लड़कियों के लिए उठना चाहिए था, जिन्हें इब्नबतूता ने अपनी हवस का शिकार बनाया, उस समय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना बच्चों के लिए लिख रहे हैं कि
“इब्न-बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफ़ान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में”
वे इब्नबतूता के जूते को जापान पहुंचा रहे है अपनी कविता में, मगर वे बच्चों के कोमल मन में उस अय्याश और क्रूर आदमी के प्रति कोमलता और आदर्श की भावना भी डाल रहे हैं, जो सैकड़ों लड़कियों का गुनाहगार है। प्रश्न यही है कि ऐसे लोगों पर गाने और कविता लिखने से खलनायक के प्रति रोमांस की भावना क्यों भरी जाती है? क्यों लेखकों और कवियों की कलम उन लड़कियों पर नहीं चलती, जिन्हें घास-पात की तरह खरीदा बेचा जा रहा था?
टिप्पणियाँ