गुरु जम्भेश्वर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, हिसार (गुजविप्रौवि) के डा. भीमराव अम्बेडकर पुस्तकालय में महान अर्थशास्त्री श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी के निमित प्रेरणास्रोत पीठ (चेयर) की स्थापना की गई है। यह शोध पीठ श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के नाम पर देश के किसी भी विश्वविद्यालय में स्थापित होने वाली प्रथम शोध पीठ है। इस अवसर पर महान अर्थशास्त्री ‘श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी और विकसित भारत @ 2047’ विषय पर व्याख्यान का आयोजन भी किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा. इंद्रेश कुमार इस आयोजन में मुख्य अतिथि व मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित रहे। अध्यक्षता भारतीय मजदूर संघ के क्षेत्रीय संगठन सचिव पवन कुमार व कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने की। कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर भी मंच पर उपस्थित रहे। पीठ की स्थापना कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई की सोच के चलते हुई है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के केंद्रीय कार्यकारिणी सदस्य डा. इंद्रेश कुमार ने अपने सम्बोधन में कहा कि नए भारत, समृद्ध भारत और कल्याणकारी भारत के निर्माण में श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के सिद्धांतों की महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी। इस चेयर के माध्यम से गुजविप्रौवि भी राष्ट्र निर्माण में अग्रणी भूमिका निभाएगा। उन्होंने कहा कि श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ‘देश ही प्रथम, देश ही अंत में तथा देश ही सदैव’ के सिद्धांत को मानते थे। श्री ठेंगड़ी जी ने जनसाधारण को जागृत किया तथा संगठित किया। जनसाधारण में यह विश्वास पैदा किया कि संकल्प कड़ा हो तो परिणाम अवश्य आएगा। उन्होंने श्री राम जी के सिद्धांतों तथा योजनाओं का उदाहरण देते हुए बताया कि बड़े उद्देश्यों को पाने के लिए उच्च शिक्षा, उच्च धनवान तथा उच्च शक्तिमान होना ही आवश्यक नहीं है।
डा. इंद्रेश कुमार ने कहा कि श्री ठेंगड़ी जी का मानना था कि वर्ग संघर्ष की बजाय वर्ग सौहार्द आवश्यक है। शोषणयुक्त व्यवस्था की बजाय शोषणमुक्त करेंसी की स्थापना जरूरी है तभी शोषणमुक्त समाज का निर्माण किया जाएगा तथा समतामूलक समाज की स्थापना की जाएगी। राम राज्य के स्वपन को साकार करने के लिए अमीर और गरीब के बीच की खाई को समाप्त करना होगा। मजदूर और मालिक की आय के बीच 1:10 से ज्यादा का अंतर नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि काम कोई भी छोटा या बड़ा नहीं होता।
डा. इंद्रेश कुमार ने कहा कि 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का स्वपन श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के सिद्धांतों को अपनाकर ही पूरा किया जा सकेगा। विश्वविद्यालय में स्थापित पीठ कदाचित देश में अपनी तरह की पहली पीठ है। इस पीठ के माध्यम से शोधार्थी श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के आर्थिक, सामाजिक व पर्यावरणीय सिद्धांतों का मूल्यांकन, विश्लेषण तथा उन पर शोध करके राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देंगे। उन्होंने इस पीठ के उद्देश्यों की सफलता के लिए विश्वविद्यालय को शुभकामनाएं दी।
क्षेत्रीय संगठन सचिव पवन कुमार ने भारतीय मजदूर संघ के बारे में विस्तार से बताया तथा कहा कि आज ही के दिन 23 जुलाई 1955 को श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने भारतीय मजदूर संघ की स्थापना की थी। यह गैर-पंजीकृत लेकिन मान्यता प्राप्त संगठन है। जिससे छह हजार से ज्यादा यूनियन जुड़ी हुई हैं। उन्होंने बताया कि भारत में कुल लगभग 50 करोड़ मजदूर व कर्मचारी हैं। इसमें से केवल सात प्रतिशत ही संगठित क्षेत्र में काम कर रहे हैं। अन्य क्षेत्रों में मजदूरों का शोषण होता है। श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के सिद्धांतों पर चलकर इस शोषण को रोका जा सकता है। श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का मानना था राष्ट्र का औद्योगिकरण, उद्योगों का श्रमीकरण तथा श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण होना चाहिए। मजदूर खड़ा है तो वह देश को नहीं गिरने देगा।
कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने अपने सम्बोधन में कहा कि संयोग से लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक व चंद्रशेखर आजाद के जन्मदिवस तथा भारतीय मजदूर संघ की स्थापना दिवस पर स्थापित महान अर्थशास्त्री श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी पीठ विश्वविद्यालय के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। इस शोध पीठ में शोधार्थी श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के मानव, समाज व राष्ट्र उपयोगी सिद्धांतों पर नए शोध करेंगे। उन्होंने बताया कि श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के विचार उनकी पुस्तकों में झलकते हैं, जिससे पता चलता है कि राष्ट्र उनके सिद्धांतों को अपनाते हुए आगे बढ़ रहा है। श्री ठेंगड़ी जी के सिद्धांत, उनके विचार व उनका दृष्टिकोण आज और भी अधिक प्रासांगिक है। उनके सिद्धांत हमारे देश के आर्थिक व सामाजिक निर्णयों को प्रभावित कर रहे हैं।
कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने कहा कि सबका साथ सबका विकास तथा वोकल फोर लोकल जैसे अभियान श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के सिद्धांतों की ही देन हैं। राष्ट्रवाद को प्राथमिकता देने वाले श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का विनिवेश योजना का सिद्धांत अत्यंत प्रभावशाली है। श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना भी की थी। कुलपति ने इस अवसर पर विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय रैंकिंग तथा अन्य उपलब्धियों के बारे में भी बताया।
धन्यवाद प्रस्ताव कुलसचिव प्रो. विनोद छोकर ने प्रस्तुत किया। उन्होंने भी कहा कि यह शोध पीठ शोधार्थियों, विश्वविद्यालय व समाज के लिए अत्यंत उपयोगी होगी।
डा. गीतू धवन ने कार्यक्रम का संचालन किया। डा. इंद्रेश कुमार ने विश्वविद्यालय के गुरु जम्भेश्वर जी महाराज धार्मिक अध्ययन संस्थान परिसर में पौधारोपण भी किया। इस उपलक्ष्य पर विश्वविद्यालय के डा. भीमराव अम्बेडकर पुस्तकालय में एक पुस्तक प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया। विश्वविद्यालय के शिक्षक व गैरशिक्षक सदस्यों (अनुसूचित जाति वर्ग) द्वारा भी डा. इंद्रेश कुमार को सम्मानित किया गया।
10 नवंबर, 1920 को महाराष्ट्र के अरवी में जन्मे श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी एक प्रमुख आर एस एस प्रचारक थे, जिन्होंने पहले केरल और बाद में बंगाल में काम किया। उन्होंने एकनाथ रानाडे, एच.वी. शेषाद्रि, भाऊराव देवरस, नाना पालकर और नानाजी देशमुख के साथ मिलकर संघ के दर्शन को आकार दिया। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के लिए भी काम किया और आदिम जाति संघ का गठन किया। वे दो कार्यकाल 1964-1976 तक राज्य सभा के सदस्य रहे।
द्वंद्धात्मक भौतिकवाद पर महारत हासिल करने वाले दुर्लभ विद्वानों में से एक श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी अनासक्त योग के जीवंत अवतार थे। उन्होंने 1975 में जयप्रकाश नारायण द्वारा बनाई गई लोकसंघर्ष समिति की कमान संभाली और 1977 के आम चुनाव में इंदिरा गांधी की हार होने तक उनके आपातकालीन शासन के खिलाफ आंदोलन चलाया। उन्होंने मोरारजी देसाई की सरकार में कोई पद स्वीकार नहीं किया। हालाँकि उनकी सलाह पर ‘जनसंघ’ का ‘जनता पार्टी’ में विलय कर दिया गया। तदोपरांत उन्होंने पद्मविभूषण की उपाधि लेने से इनकार कर दिया। वे निष्काम कार्यकर्ता थे।
उनका अवलोकन था कि रूस में साम्यवाद (कम्युनिज्म) रिवर्स गियर में है। स्टॉक एक्सचेंज, डेरिवेटिव व्यापार (डेरिवेटिव ट्रेड), मुद्रा बाजार (करेंसी मार्केट) आदि सट्टा व्यापार जैसी प्रथाओं का उन्होंने पुरजोर विरोध किया और वेतन रोजगार के मुकाबले स्व-रोजगार को प्राथमिकता दी।
दत्तोपंत ठेंगड़ी ने विभिन्न विषयों पर सौ से अधिक पुस्तकों का लेखन किया। उनमें से कुछ प्रेरणादायक और विचारोत्तेजक शीर्षक जैसे ‘कार्यकर्ता’, ‘थर्ड वे’, ‘क्रांति पर’ और ‘हिंदू अर्थशास्त्र में प्रस्तावना’ आदि बेहद लोकप्रिय हैं।
श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी द्वारा लिखित ‘थर्ड वेव’ पुस्तक में इस बात पर जोर दिया गया है कि आने वाली पीढ़ी को किसी भी राष्ट्र की सफलता के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है। इसके अलावा उन्होंने प्राचीन पारंपरिक ज्ञान और प्राकृतिक और वैज्ञानिक पहलुओं पर आधारित हिंदू जीवन शैली का पालन करने की आवश्यकता बताई, जिससे बड़े पैमाने पर समाज को लाभ होगा।
अपने कार्यों में, श्री ठेंगड़ी जी ने कभी भी निजी निवेश का विरोध नहीं किया, बल्कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) के लिए एक बड़ी भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने घोर पूंजीवाद (क्रॉनी केपिटलिज्म) के साथ-साथ सरकार के व्यवसायों में शामिल होने का भी कड़ा विरोध किया। वे हमेशा कहते से कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है। (गर्वनमैंट हैज नो बिजनेस टू डू बिजनेस)।
संघ परिवार के आर्थिक विश्व-दृष्टिकोण को श्री ठेंगड़ी ने तीसरा रास्ता कहा था, जो पश्चिम के पूंजीवाद के साथ-साथ साम्यवादी आर्थिक सिद्धांतों से अलग था।
श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी ने कभी भी गांव बनाम शहर दृष्टिकोण का समर्थन नहीं किया। उन्होंने कभी भी वर्गों के बीच या अमीर और गरीब के बीच संघर्ष में विश्वास नहीं किया, बल्कि सामूहिक राष्ट्रीय हितों के लिए खड़े रहे। इस प्रकार, उन्होंने वर्ग घृणा और वर्ग संघर्ष पर राष्ट्रवाद को प्राथमिकता दी। उन्होंने जीवन के सभी आयामों में राष्ट्र हित सर्वोपरि के विमर्श पर बल दिया और उसे अपने सार्वजनिक जीवन के जीवन दर्शन के रूप स्वीकार किया।
1990 के दशक में, जब देश ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोलने का फैसला किया, तो उन्होंने राष्ट्रवादी आर्थिक दर्शन को लगातार प्रासंगिक बनाए रखने के लिए स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की। 2021 में, केंद्रीय दूरसंचार, आईटी और रेलवे मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस महान अर्थशास्त्री, राष्ट्रऋषि, विचारक पर एक डाक टिकट जारी किया।
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