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महाप्रभु के रत्न!

46 साल पहले 1978 में पहली बार महाप्रभु का रत्नभंडार खोला गया था। उस समय रत्नों की गिनती कर उनकी सूची तैयार की गई थी। इस बार सिर्फ रत्नभंडार खोला गया, रत्नों की गिनती बाद में होगी

by डॉ. समन्वय नंद
Jul 25, 2024, 05:48 pm IST
in भारत, विश्लेषण, ओडिशा, धर्म-संस्कृति
प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक द्वारा पुरी सागरतट पर रेत से बनाई गई श्री जगन्नाथ भगवान के रत्नभंडार की कलाकृति

प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक द्वारा पुरी सागरतट पर रेत से बनाई गई श्री जगन्नाथ भगवान के रत्नभंडार की कलाकृति

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गत 13 जुलाई को पुरी में श्रीजगन्नाथ मंदिर का रत्नभंडार 46 वर्ष बाद आखिरकार खोल दिया गया। पिछले कई साल से इसे खोलने की मांग की जा रही थी। रत्नभंडार खोलने के लिए पहले मुहूर्त तय किया गया। रत्नभंडार को दोपहर 1:28 बजे शुभ मुहूर्त पर खोला गया और सरकार द्वारा अधिकृत 11 सदस्यीय टीम ने उसमें प्रवेश किया। बाहर का रत्नभंडार चाबी से खुल गया। लेकिन अंदर का रत्नभंडार चाबी से नहीं खुला। इस कारण ताला तोड़ना पड़ा।

रत्नभंडार कमेटी के संयोजक तथा श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रबंधन के मुख्य प्रशासक डॉ. अरविंद पाधी व कमेटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति विश्वनाथ रथ ने रत्नभंडार से बाहर आकर बताया, ‘‘बाहर के रत्नभंडार के रत्न-आभूषणों को मंदिर के जगमोहन स्थित अस्थाई ‘स्ट्रांगरूम’ में स्थानांतरित किया गया। भीतर के रत्नभंडार के आभूषणों को भी स्थानांतरित किए जाने के बाद अब एएसआई द्वारा रत्नभंडार की मरम्मत का कार्य किया जाएगा। मरम्मत के बाद अंदर व भीतर के रत्नभंडारों के आभूषणों की सूची तैयार की जाएगी। इसके बाद इन आभूषणों को पुन: रत्नभंडार में निर्धारित स्थान पर रखा जाएगा।’’उन्होंने बताया, ‘‘रत्नभंडार को खोलने के दौरान इसकी वीडियोग्राफी भी की गई है। इसमें महाप्रभु के दैनिक व्यवहार में प्रयुक्त होने वाले आभूषण होने के कारण इसकी चाबियों को तीन अधिकृत लोगों को दिया गया है। आभूषणों को स्थानांतरित करने में तीन घंटे का समय लगा।’’

रत्नभंडार खोले जाने के समय पुरी के जिलाधिकारी चाबी लेकर वहां पर मौजूद थे, लेकिन उस चाबी से ताला नहीं खुला। यहां लगे तीन तालों में से एक सील था, जबकि दो ताले सील नहीं थे। इसलिए सभी तीन तालों को तोड़ा गया। रत्नभंडार के लिए गठित कमेटी के 11 सदस्यों में से 8 सदस्य श्रीजगन्नाथ जी की बाहुडा (वापसी) यात्रा में होने वाली व्यवस्था में लगे हुए थे। उनके पास अधिक समय न होने के कारण यह निर्णय लिया गया कि एक अन्य तिथि निर्धारित कर भीतरी भंडार के आभूषणों व संदूकों को स्थानांतरित किया जाएगा। रत्नभंडार के तीन तालों को तोड़ा गया, इसलिए नए ताले लगाकर इनको सील किया गया और इनकी चाबियों को सील कर ‘ट्रेजरी’ में रखने के लिए जिलाधिकारी को दिया गया है। रथ ने बताया, ‘‘रत्नभंडार की मरम्मत किए जाने की आवश्यकता है। रत्नभंडार के कमरों के छोटे होने के कारण वहां से आभूषणों को स्थानांतरित किए बिना इसकी मरम्मत का कार्य संभव नहीं होता।’’

पूजा हुई, फिर खोला गया भंडार

बाबा लोकनाथ पुरी के श्रीमंदिर (जगन्नाथ मंदिर) के भंडार के रक्षक माने जाते हैं। इसलिए पहले बाबा लोकनाथ से इसके लिए आज्ञा ली गई। रत्नभंडार के अंदर प्रवेश करने वाली कमेटी के सदस्यों ने श्रीगुंडिचा मंदिर में जाकर महाप्रभु श्रीजगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के दर्शन कर पूजा-अर्चना की तथा रत्नभंडार खोलने के लिए अनुमति व आशीर्वाद मांगा। इसी तरह महालक्ष्मी को रत्नभंडार की मालकिन व मां विमला को श्रीमंदिर की मालकिन माना जाता है। कमेटी के सदस्यों ने मंदिर में महालक्ष्मी व मां विमला की पूजा- अर्चना की और उनसे अनुमति मांगी और मंदिर परिसर में स्थित सभी पार्श्वदेवताओं का आशीर्वाद भी लिया।

बहुड़ा यात्रा का विहंगम दृश्य

वापस लौटे महाप्रभु

पवित्र बाहुड़ा (वापसी ) यात्रा के अवसर पर ‘जय जगन्नाथ’ के जयघोष और झांझ-मृदंग व घंटा की ध्वनि के बीच महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा अपने-अपने रथों पर सवार होकर c से श्रीमंदिर लौट आए हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तिथि तक भगवान अपनी मौसी के यहां गुंडिचा मंदिर में ठहरते हैं। इस साल तिथियां घटने से आषाढ़ कृष्ण पक्ष में 15 नहीं, 13 ही दिन थे। 7 जुलाई को यात्रा शुरू हुई और 8 जुलाई को भगवान के तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचे। हर साल ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद वे ‘बीमार’ हो जाते हैं और आषाढ़ कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक बीमार रहते हैं, इस दौरान वे दर्शन नहीं देते। 16वें दिन भगवान का शृंगार किया जाता है और नवयौवन के दर्शन होते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से रथ यात्रा शुरू होती है। 15 जुलाई की दोपहर पुरी के गुंडिचा मंदिर से बहुड़ा यात्रा शुरू हुई थी। प्रशासन ने बाहुडा यात्रा को सुचारू रूप से संपन्न कराने के लिए व्यापक इंतजाम और सुरक्षा उपाय किए गए थे।

नए संदूकों में रखा गया खजाना

महाप्रभु के रत्नभंडार को खोले जाने के बाद आभूषणों को रखने के लिए छह नए संदूक लाए गए। सभी संदूक सागौन की लकड़ी से बने हैं। इनकी ऊंचाई ढाई फुट, लंबाई साढ़े चार फुट व चौड़ाई साढ़े तीन फुट है। संदूक के ऊपर और अंदर पीतल की चादर लगाई गई है। प्रशासन को ऐसे15 संदूक बनाने के लिए कहा गया है। पहले चरण में छह संदूक पहुंचाए गए हैं। शेष 9 संदूक दूसरे चरण में यहां लाए जाएंगे।

सुरक्षा का रखा गया ध्यान

रत्नभंडार को खोले जाने के समय आस-पास सुरक्षा के कड़े प्रबंध किए गए थे। मंदिर के भीतर व बाहर अर्धसैनिक बलों की 8 पलटनें तैनात की गई थीं। इसके साथ साथ ‘रैपिड एक्शन फोर्स’ की तीन टुकड़ियां श्रीमंदिर में सिंह द्वार पर उपस्थित थीं। इस दौरान श्रीमंदिर के चारों द्वार भक्तों के लिए बंद कर दिए गए थे। इस टीम ने ताला तोडेÞ जाने के समय उपस्थित रह कर आवश्यक जांच कार्य किया।

तैयार थे सर्प विशेषज्ञ

रत्नभंडार के अंदर सांपों के होने के भय को देखते हुए स्नेक हेल्पलाइन के सदस्यों को पहले से तैयार रखा गया था। मंदिर के अंदर मुक्तिमंडप के पास 12 सदस्दीय सर्प विशेषज्ञ टीम खड़ी थी। सांप न निकलने के कारण उनकी आवश्यकता नहीं पड़ी।

180 प्रकार के आभूषण

ओडिशा सरकार ने 1960 में श्रीमंदिर के प्रशासन का जिम्मा अपने हाथ में लिया था। इससे पूर्व विशेष अधिकारी लक्ष्मण पंडा ने 1952 के श्रीमंदिर प्रशासन अधिनियम के तहत180 प्रकार के आभूषणों के साथ साथ हीरा, नीलम, मोती, माणिक आदि दुर्लभ रत्नों के रत्नभंडार में होने की बात का उल्लेख किया था।

1978 में तैयार की गई थी सूची

रत्नभंडार की सूची तैयार करने के लिए 1978 में कमेटी गठित की गई थी। कमेटी के अध्यक्ष थे तत्कालीन राज्यपाल भगवत दयाल शर्मा। रत्नभंडार की सूची बनाने का कार्य13 मई,1978 से लेकर 23 जुलाई,1978 तक चला था।

Topics: Sri Jagannath TempleRatna Bhandar CommitteeAdministration of SrimandirBaba Loknath Puriपाञ्चजन्य विशेषश्रीजगन्नाथ मंदिररत्नभंडार कमेटीश्रीमंदिर के प्रशासनबाबा लोकनाथ पुरी
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