अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब तमिलनाडु से सनातन धर्म को नष्ट करने की आवाजें आई थीं और किसी भी निजी संगठन से नहीं बल्कि उदयनिधि स्टालिन ने यह कहा था कि सनातन धर्म का विरोध ही नहीं करना चाहिए, बल्कि उसे नष्ट कर देना चाहिए। और उसे लेकर अभी तक चर्चाएं होती हैं। उसी के बाद तमिलनाडु, में डीएमके के ही ए राजा ने कहा था कि सनातन धर्म डेंगू मच्छर है और उसके बाद डी राजा ने प्रभु श्रीराम पर भी आपत्तिजनक बयान देते हुए कहा था कि उन्हें रामायण और भगवान राम पर विश्वास नहीं है। और हम सब राम के शत्रु हैं।
मगर यह बहुत ही हैरानी की बात है कि अब उसी डीएमके और उसी तमिलनाडु की सरकार के कानून मंत्री एस रघुपति ने प्रभु श्रीराम को सामाजिक समरसता का सबसे बड़ा उदाहरण बताते हुए उन्हें द्रविड मॉडल अपनाने वाला बताया है।
महान कवि कंबन की रामायण के प्रचार-प्रसार को समर्पित एक संस्था कंबन कझगम द्वारा आयोजित वार्षिक आयोजन के समापन पर रविवार को डीएमके नेता एवं तमिलनाडु के कानून मंत्री एस रघुपति ने प्रभु श्रीराम की प्रशंसा करते हुए कहा कि पेरियार, अन्नादूराई, मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और पूर्व मुख्यमंत्री एम करुणानिधि से पहले भगवान राम ही सामाजिक न्याय के रक्षक थे और उन्होंने द्रविड़ मॉडल को आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि राम वे नायक थे जिन्होंने सेक्युलरिज्म और सामाजिक न्याय को दुनिया भर में फैलाया और कहा कि सभी लोग बराबर हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार उन्होंने यहां तक कहा कि यदि उन्हें समय मिला तो वे अयोध्या के राम मंदिर में दर्शन करने के लिए अवश्य जाएंगे। भारतीय जनता पार्टी ने इस पर पलटवार किया है। तमिलनाडु भाजपा ने कहा कि डीएमके का द्रविड मॉडल राम राज्य की भांति नहीं बल्कि रावण राज्य की भांति है।
गौरतलब है कि तमिलनाडु की राजनीतिक सोच में कितना भी प्रभु श्रीराम का विरोध हो, या कितने भी नकारने की ललक हो, तमिल साहित्य में प्रभु श्रीराम का विमर्श सदा से रहा है। यह आयोजन ही कंबन कझगम नामक संस्था द्वारा आयोजित किया गया था। इस संस्था का उद्देश्य ही कंब रामायण के प्रचार प्रसार के लिए कार्य करना है। प्रभु श्रीराम की जीवन गाथा पर लिखी गई कंब रामायण महान कवि कंबन की कृति है। यद्यपि यह कई प्रसंगों पर श्रीवाल्मीकि रामायण से भिन्न है, परंतु इस रामायण में प्रभु श्रीराम के चरित्र का अद्भुत वर्णन है। यह ग्रंथ भक्ति से परिपूर्ण है। कंबन ने बालकाण्ड से लेकर युद्धकाण्ड तक छह कांडों की रचना की है।
कंब रामायण का हिन्दी में अनुवाद करने वाले न0 वी0 राजगोपाल ने कंब रामायण की प्रशंसा की है। उन्होंने लिखा है कि राम के दैवीय तत्वों का साहित्यिक प्रभाव उत्पन्न करना, पूरे काव्य में नव प्रसंगों के मध्य उन दैवी तत्व का निर्वाह करना एवं साथ ही मानव जीवन की विविध सुख:दुखात्मक परिस्थितियों के साथ उन दैवी तत्वों की संगति बैठाना – यह एक अनन्यसुलभ प्रतिभावान महाकवि का ही कार्य है। कंबन ऐसे ही कवि थे।
कंब रामायण में प्रभु श्रीराम एवं माता सीता के सौन्दर्य का अद्भुत वर्णन किया है। जब राजनीतिक कारणों से कंब रामायण का विमर्श में इस कारण विरोध आरंभ हुआ था कि इस रामायण में भी रावण को ही खलनायक बताया गया है, तो विकीपीडिया पर उपलब्ध विवरण के अनुसार उस समय इस कंब रामायण को लोक में पुन: प्रचारित करने के लिए तमिल कार्यकरता, लेखक, इतिहासकार सॉ गणेशन ने कंबन कझगम नामक संस्था का गठन किया था।
कंबन कझगम के आयोजन में डीएमके नेता तो प्रभु श्रीराम को पूर्व सीएम करुणानिधि आदि के समान समरसता के मूल्य वाला बता रहे हैं, मगर ये यह नहीं बता रहे हैं कि करुणानिधि के विचार प्रभु श्रीराम के विषय में क्या थे? प्रभु श्रीराम ने अन्याय के जिस प्रतीक रावण का वध करके अपनी पत्नी माता सीता को मुक्त कराया था, उस रावण के विषय में करुणानिधि क्या सोचते थे? करुणानिधि ने हमेशा ही प्रभु श्रीराम का अपमान किया था। उन्होंने रावण काव्यम पर लगा हुआ प्रतिबंध भी हटाया था। और यह भी उन्होंने इस बात पर भी आपत्ति जताई थी कि प्राचीन काल के कवियों और लेखकों ने “तमिल राजा” रावण को एक शैतानी ताकत के रूप में दिखाया है, जो अधर्म और विनाश का नेतृत्व करती है। और ऐसा भी मीडिया में कई रिपोर्ट्स हैं जिनमें यह कहा गया था कि उन्होंने गुस्से में यह भी कहा था कि “यदि आप रावण का अपमान कर रहे हैं तो आप मेरा अपमान कर रहे हैं!” करुणानिधि से लेकर उनके पोते उदयनिधि करुणानिधि और डीएमके के नेता डी राजा तक प्रभु श्रीराम और सनातन धर्म का अपमान नई बात नहीं है।
पूर्व मुख्यमंत्री एवं डीएमके के दिवंगत नेता एम करुणानिधि ने तो जब रामसेतु को लेकर बहस चल रही थी तो यहाँ तक कहा था कि “क्या राम इंजीनियर थे जो उन्होनें पुल बनाया था?” और उन्होनें कई बार प्रभु श्रीराम को शराबी आदि भी कहा था।
डीएमके की प्रभु श्रीराम के अपमान से लेकर प्रभु श्रीराम द्रविड मॉडल के प्रतीक हैं तक की यात्रा बहुत हैरान करने वाली है। यदि डीएमके नेता और कानून मंत्री प्रभु श्रीराम को द्रविड मॉडल अपनाने वाला मानते हैं तो क्या यह माना जाए कि वे अपने ही नेता एम करुणानिधि को खारिज कर रहे हैं? क्योंकि एक तरफ आदर्श बताना और दूसरी तरफ उन्हें शराबी बताना, दोनों एक साथ नहीं चल सकते हैं।
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