मुस्लिम मुल्क तुर्किए में इन दिनों कई प्रांतों में असंतोष फैला हुआ है और छुटपुट हिंसा के भी समाचार हैं। तुर्किए में बसे सीरियाई शरणार्थियों के समुदाय को निशाना बनाकर 30 जून को कायसेरी प्रांत में हिंसक विरोध भी हुए थे। मगर तुर्किए भी मुस्लिम देश है और सीरियाई शरणार्थी भी मुस्लिम ही हैं, फिर ऐसा क्यों हो रहा है कि एक मुस्लिम देश के लोग ही मुस्लिम देशों के शरणार्थियों का विरोध कर रहे हैं? हालांकि, ये विरोध पिछले वर्ष भी हुए थे, मगर अब इनकी आवाज अधिक मुखर है।
अल जजीरा ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पिछले महीने से सीरियाई शरणार्थियों का विरोध हो रहा है। और लोग अब सड़कों पर उतरकर अपना विरोध व्यक्त कर रहे हैं और हिंसा भी कर रहे हैं। अल जजीरा के अनुसार यह हिंसा तब आरंभ हुई जब एक सीरियाई पुरुष पर एक बच्चे का उत्पीड़न करने का आरोप लगा और फिर सीरियाई शरणार्थियों की दुकानों आदि पर हमला कर दिया गया। इसके अनुसार यहाँ पर दस वर्षों से अधिक से बसे हुए सीरियाई शरणार्थियों के लिए अब वापस जाना भी सरल नहीं है क्योंकि उनके बच्चे भी यहीं पढ़ रहे हैं।
तुर्किए में बढ़ती महंगाई और राष्ट्रवादी पार्टी के उदय के कारण ये घटनाएं हो रही हैं, ऐसा अलजजीरा की इस रिपोर्ट में कहा गया है। इस वीडियो में एक आदमी को यह कहते हुए सुन जा सकता है कि सीरियाई शरणार्थियों के कारण उसे कोई नौकरी नहीं मिल पा रही है।
इस हिंसा के फैलने के पीछे जो कारण बताया जा रहा था, उसमें भी जिस लड़की को लेकर यह कहा जा रहा था, वह कथित रूप से उत्पीड़न करने वाली की रिश्तेदार है। मीडिया के अनुसार कायसेरी के गवर्नर के कार्यालय ने इस घटना की पुष्टि की और कहा कि एक सीरियाई लड़के को गिरफ्तार किया गया है, जिसने कथित रूप से एक छोटी सीरियाई लड़की के साथ गलत हरकत की। मंत्री ने एक लिखित वक्तव्य में कहा, “बाद में हमारे ही कुछ नागरिक इकट्ठा हुए और हमारे मानवीय मूल्यों के विपरीत उन्होनें सीरियाई नागरिकों के अवैध रूप से संपत्तियों, व्यापारों और वाहनों को नष्ट कर दिया।“
मंत्री ने यह भी अपने वक्तव्य में कहा कि “हम जेनोफोबिया अर्थात शरणार्थियों के प्रति घृणा को नहीं फैलने दे सकते हैं क्योंकि यह हमारी तजहीब के विरुद्ध है। वहीं इस बात को लेकर राष्ट्रपति रेकेप तैय्यब एरदोगन ने विपक्ष को जिम्मेदार ठहराया है। उनके अनुसार विपक्षी दल शरणार्थियों के विरुद्ध जहरीला माहौल बना रहे हैं और इसी कारण कायसेरी में यह घटना हुई।”
मगर यह घटना कोई नई नहीं है। पिछले वर्ष से ही तुर्किए में शरणार्थियों को लेकर समस्याएं हैं। ऐसा भी नहीं है कि पहली बर सीरियाई शरणार्थियों के साथ इस प्रकार की हिंसा हो रही है। तुर्किए में सीरियाई शरणार्थी हालांकि, लाखों की संख्या में हैं, मगर अब उनके प्रति लोगों के मन में आक्रोश बढ़ रहा है। तुर्किए एन तमाम तरह के आर्थिक और सामाजिक मुद्दों के कारण सीरियाई शरणार्थियों को निशाना बनाया जा रहा है।
जब इन घटनाओं को और खंगालते हैं तो पाते हैं कि ऐसी तमाम घटनाएं होती तो हैं, परंतु वे प्रकाश में नहीं आती हैं और भारत तथा यूरोप के कई गैर-मुस्लिम देशों पर ही शरणार्थियों को लेकर भेदभाव की नीति अपनाने का आरोप लगता है। वर्ष 2014 में दो सीरियाई कृषि श्रमिकों की चाकू मारकर हत्या कर दी थी। उसके बाद वर्ष 2019 में इसतांबूल के पड़ोसी Küçükçekmece जिले मे भी अज्ञात व्यक्ति द्वारा एक बच्चे के यौन उत्पीड़न का शोर मचाकर सीरियाई नागरिकों की लिन्चिंग का असफल प्रयास किया था। इसके साथ ही और भी छिटपुट घटनाएं सामने आती रही हैं। अनाधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, तुर्किए में लगभग छ मिलियन शरणार्थी हैं, जिनमें 4 मिलियन सेरिया के हैं।
दरअसल यूरोप में सीरिया से हो रहे पलायन को रोकने के लिए यूरोपीय यूनियन ने तुर्किए के साथ मिलकर यह संधि की है कि तुर्किए लगभग उन सभी शरणार्थियों को वापस लेगा, जो यूरोप पहुँच चुके हैं और इसके बदले में तुर्किए शरणार्थियों के लिए एक खुली जेल बन गया है। मगर इसके लिए उसे यूरोपीय यूनियन से लगभग 4 या 5 बिलियन यूरो भी प्राप्त हुए हैं।
सितंबर 2023 में भी मीडिया में यह समाचार आए थे कि तुर्किए में रह रहे सीरियाई नागरिकों को दबाव अनुभव होता है। राएटर्स ने 22 सितंबर 2023 को अपनी एक रिपोर्ट में लिखा था कि 3.3 मिलियन से अधिक सीरियाई शरणार्थी तुर्किए में खुद को असुरक्षित अनुभव करते हैं और वे या तो सीरिया वापस लौटने की योजना बना रहे हैं या फिर यूरोप जाने की।
शरणार्थियों के लिए कार्य करने वाले अधिकार समूहों का पिछले वर्ष ही यह कहना था कि सीरियाई नागरिकों के खिलाफ हिंसा बढ़ रही है और अधिकारी भी एक सख्त नीति लेकर आ रहे हैं।
यह बहुत हैरान करने वाली बात है कि गैर-मुस्लिम देशों में से यदि कोई देश मुस्लिम शरणार्थियों को शरण देने से इस कारण इनकार करता है कि इनके आने से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ेगा तो उसे इसलामोफोबिक कहकर कोसा जाता है, मगर जब सीरियाई मुस्लिम शरणार्थियों को लेकर मुस्लिम देश तुर्किए में असंतोष के स्वर जनता के बीच उठ रहे हैं तो ऐसा कहा जा रहा है कि इसे इसलामोफोबिया का नाम न दिया जाए, क्योंकि यह आर्थिक है और वहाँ के लोगों को चूंकि नौकरी नहीं मिल रही है, इसलिए विरोध आर्थिक कारणों को लेकर ही हो रहा है।
मई 2022 में राष्ट्रपति एरदोगन ने लगभग एक मिलियन सीरियाई शरणार्थियों को अपने नियंत्रण वाले उत्तरी सीरिया के प्रांत मे भेज दिया था। हालांकि पहले राष्ट्रपति का यह कहना था कि वे एक भी शरणार्थी वापस नहीं भेजेंगे, मगर फिर भी शायद चुनावों को ध्यान में रखते हुए उन्होनें ऐसा निर्णय लिया होगा।
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