उत्तर प्रदेश

बुरे फंसे पिता-पुत्री!’बिना तलाक शादी’ मामले में स्वामी प्रसाद मौर्य और बेटी संघमित्रा को कोर्ट ने भगोड़ा घोषित किया

Published by
Kuldeep singh

उत्तर प्रदेश के पूर्व मंत्री और सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य बुरी तरह से फंस गए हैं। अब एमपी एमएलए कोर्ट ने दोनों पिता-पुत्री को भगोड़ा घोषित कर दिया है। भगोड़ा घोषित करने से पहले कोर्ट ने उन्हें तीन बार समन, दो बार ज़मानती वारंट, एक बार गैर ज़मानती वारंट जारी किया था। लेकिन, फिर भी ये कोर्ट में पूछताछ के लिए हाजिर नहीं हुए। इसके बाद उनके खिलाफ ये एक्शन लिया गया।

समझते हैं पूरा मामला

ये पूरा दरअसल, स्वामी प्रसाद मौर्य की पूर्व सांसद बेटी संघमित्रा से जुड़ा है। बदायूं से सांसद रही संघमित्रा पहले से शादीशुदा थीं। बावजूद इसके उन्होंने झूठ बोलकर नोएडा के गोल्फ सिटी के रहने वाले दीपक कुमार स्वर्णकार से संपर्क किया। दीपक का कहना है कि वर्ष 2016 में वो संघमित्रा के साथ ‘लिव इन रिलेशनशिप’ में भी रहे। स्वामी प्रसाद मौर्य और संघमित्रा ने दीपक से बताया कि संघमित्रा की पहले शादी हुई थी और झूठ बोला कि अब तलाक हो चुका है। दीपक को भी पिता-पुत्री के इस झूठ पर यकीन हो गया।

दीपक और संघमित्रा मौर्य

इसी यकीन पर दीपक ने 3 जनवरी 2019 को संघमित्रा से उसी के घर में शादी कर ली। लेकिन, फिर एक दिन अचानक से दीपक को पता चलता है कि संघमित्रा ने अपने पहले पति को तलाक दिए बिना ही धोखाधड़ी करके उससे शादी की है। जब वादी (दीपक) ने इस मामले को संघमित्रा और उसके पिता के समक्ष उठाया तो इसको लेकर पहले काफी विवाद हुआ और फिर बात बाहर न जाए, इसके लिए दीपक पर जानलेवा हमला कराया।

इसी के बाद दीपक ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। दीपक ने स्वामी प्रसाद मौर्य, उनकी बेटी संघमित्रा समेत पांच लोगों पर मारपीट, गाली-गलौच, जान से मारने की धमकी और साजिश रचने का केस दर्ज कराया था। दीपक कुमार स्वर्णकार के अनुसार, संघमित्रा मौर्य से उनकी शादी हुई है, जिसे वो नकार रही है। इस मामले की सुनवाई कर रही इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने पूछताछ के लिए पिता-पुत्री को हाजिर होने का कई बार आदेश दिया, लेकिन दोनों पेश ही नहीं हुए। इस पर अब उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया है।

अब क्या होगा

गौरतलब है कि भगोड़ा घोषित होने के बाद अब स्वामी प्रसाद मौर्य और उनकी बेटी की चल और अचल संपत्तियों को कोर्ट जब्त कर सकता है। हालांकि, अगर वो 30 दिन के अंदर आत्मसमर्पण कर देते हैं तो कोर्ट अपने आदेश को रद्द कर सकता है।

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