गत दिनों बीकानेर में ‘भारतीय इतिहास परंपरा और पर्यावरण’ विषय पर एक गोष्ठी आयोजित हुई। यह गोष्ठी अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना (नई दिल्ली) एवं इतिहास विभाग, महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय (बीकानेर) के संयुक्त तत्वावधान में और इतिहास संकलन समिति मरु क्षेत्र, बीकानेर के सहयोग व नेतृत्व में संपन्न हुई।
संगोष्ठी को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति एवं कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो. मनोज दीक्षित ने कहा कि मनुष्य प्रकृति से निंरतर दूर होता जा रहा है जिसके फलस्वरूप भौतिक विकास की दौड़ में पर्यावरण नष्ट होता जा रहा है। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि एवं वक्ता डॉ. बालमुकुंद पांडे ने कहा कि वर्तमान में हमारी जीवन प्रणाली देवत्व से दूर होकर राक्षसत्व की तरफ उन्मुख है।
इसकी पृष्ठभूमि में हम पर्यावरण का दोहन न करके शोषण कर रहे हैं। इस कारण आज संपूर्ण विश्व दैहिक, दैविक एवं भौतिक ताप से संतप्त है। उपभोगवादी संस्कृति प्रकृति को लील रही है। उन्होंने शोधार्थियों से अपील करते हुए कहा कि वे प्राचीन भारतीय धार्मिक ग्रंथों में निहित पर्यावरण संबंधी धारणाओं पर नवीन शोध कर समाज के बीच में लाएं, ताकि समाज में पर्यावरण संरक्षण के प्रति उत्तरदायित्व जाग्रत हो सके। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि और विधायक जेठानंद व्यास ने कहा कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति को एक पेड़ लगाकर उसके संरक्षण का संकल्प लेना चाहिए।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के क्षेत्र सह संपर्क प्रमुख योगेंद्र कुमार ने प्लास्टिक मुक्त समाज की आवश्यकता जताई। संगोष्ठी के सारस्वत अतिथि प्रो. धर्मचंद चौबे ने कहा कि पर्यावरण के प्रति समाज को संवेदनशील होना ही होगा। संगोष्ठी के समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए श्री ओंकार सिंह लाखावत ने कहा कि राजस्थान तो प्राचीन काल से ही पर्यावरण के प्रति जागरूक रहा है।
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