पाञ्चजन्य सुशासन संवाद छत्तीसगढ़: नक्सलवादियों से 'बिना शर्त' बातचीत के लिए तैयार: गृह मंत्री विजय शर्मा
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पाञ्चजन्य सुशासन संवाद छत्तीसगढ़: नक्सलवादियों से ‘बिना शर्त’ बातचीत के लिए तैयार: गृह मंत्री विजय शर्मा

गृह मंत्री शर्मा ने कहा कि मैं आपसे निसंदेह कहना चाहता हूं कि नक्सलवाद केवल बंदूक से खत्म नहीं हो सकता है।

by Kuldeep Singh
Jul 18, 2024, 06:41 pm IST
in छत्तीसगढ़
Panchjanya sushashan samvad Vijay Sharma on naxalim

मंच पर बोलते छत्तीसगढ़ के गृह मंत्री विजय शर्मा

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पाञ्चजन्य के “सुशासन संवाद: छत्तीसगढ़” कार्यक्रम में ‘मानवता का मोर्चा’ विषय पर प्रदेश के गृह मंत्री विजय शर्मा ने वरिष्ठ पत्रकार अनुराग पुनेठा के साथ विभिन्न मुद्दों पर बात की। उन्होंने दो टूक कहा कि हम नक्सलवादियों से बिना शर्त बात करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने ये भी कहा कि नक्सलवाद केवल बंदूक से ठीक नहीं हो सकता है।

सवाल: पिछले कुछ सालों में राज्य की जो छवि है उससे गृह मंत्री के तौर पर आप क्या विजन रखते हैं और किस तरह से नक्सल की समस्या से निपटेंगे? क्योंकि नक्सल की समस्या सिर्फ एक लॉ एंड ऑर्डर की समस्या नहीं है या इसे केवल फोर्स के जरिए नहीं सुलझाया जा सकता है? एक गृह मंत्री के तौर पर किस विजन के साथ अगले पांच साल को देखते हैं?

जवाब: अगले पांच साल, ये कुछ ज्यादा ही लंबा समय हो जा रहा है। मैं केवल तीन साल की बात करूंगा। हमारे देश के गृहमंत्री अमित शाह का संकल्प बड़ा है। 370 का हटना और पूर्वोत्तर में शांति का लागू हो जाना इसका प्रमाण है। हमारे प्रदेश में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का नेतृत्व काफी बड़ा है। काम करने की उनकी शैली बहुत गजब है। मैं आपसे निसंदेह कहना चाहता हूं कि नक्सलवाद केवल बंदूक से खत्म नहीं हो सकता है। इस बात को हम सब बेहतर तरीके से समझते हैं और इसलिए सारे बिन्दुओं पर जिन्होंने सरेंडर कर रखा है और जो सरेंडर करने वाले हैं, जो नक्सल पीड़ित हैं और जो नौजवान नक्सल बन जाते हैं और जो फोर्स काम कर रही है, इन सारी चीजों पर एक साथ काम हो रहा है। आप न्यूज पेपर में पढ़ते हैं कि इतने मारे गए। ये इसका एक हिस्सा है। असल में इसके कई पहलू हैं और इस पर हम मिलकर काम कर रहे हैं। परिणाम अच्छा आएगा, इसका मुझे पूर्ण विश्वास है।

सवाल: तीन साल का समय आपने निर्धारित किया है। क्या ये जो आत्मसमर्पण नीति है या फिर कुछ वन-टू-वन मिलकर बात करना या बल के परे क्या नीति रहेगी? क्या ये समय काम करने के लिए संभव है?

जवाब: हम बिना शर्त बातचीत के लिए तैयार हैं। पहले इस तरह की बात होती थी कि वे हथियार छोड़ें या पहले ये हथियार छोड़ें, लेकिन जब युद्ध होता है तो या तो दोनों हथियार छोड़ें या कोई न छोड़ें। अब इन सारी बातों के बीच बात नहीं हो पाती थी तो कैसे भी करके चर्चा होनी चाहिए। इस बात के लिए हम सब तैयार हुए हैं, लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि नॉर्मल कॉल या फिर वीडियो कॉल पर भी बात हो सकती है। मैंने हाल ही में एक गूगल फॉर्म भी जारी किया और कहा कि इस लिंक पर अपना सुझाव भेज दीजिए। इन सब के जरिए बात हो सकती है, लेकिन ये आप जो बंदूक लेकर जंगलों में घूम रहे हैं, इसका क्या औचित्य है। आखिर लड़ किससे रहे हैं? कोई राजा या जमींदार है नहीं। कल्याणकारी सरकारें होती हैं। अगर सरकारें काम न करें तो जनता उखाड़ कर फेंक देती है।

नक्सलियों का एजेंडा क्या है ये वही जानें। मेरी नजर में कुछ नहीं है। मैं आपसे ये बात तब कह रहा हूं जब मैंने सात महीने इस विषय पर काम कर लिया है। टेकगुड़ा, पुअर्ती और सिलगेर ये कुछ गांव ऐसे हैं, जहां सात माह पहले आर्म्ड फोर्सेज के जवान तक नहीं जाते थे। लेकिन, जब वहां के लोगों को हम निकाल कर लाए और रायपुर में वहां के 25 वर्षीय युवक से हमने पूछा कि टीवी कब देखे हो, तो उसने कहा कि पहली बार वो टीवी देख रहा है।

नक्सलियों से सवाल करते हुए गृह मंत्री ने कहा कि अब बताओ इसमें क्या रखा है? गांव में पहले जहां, स्कूल,आंगनवाड़ी, अस्पताल, बिजली-पानी और सड़क थी, उसे तो आपने उड़ृा दिया। स्कूल बम से उड़ा दिया। आंगनवाड़ी खत्म। अगर किसी बड़े ग्रुप को घेरकर रख लिया जाता है तो ये आतंकवाद माना जाएगा। ये वही स्थिति है। गृह मंत्री शर्मा ने बताया कि उनके गूगल लिंक पर फीडबैक आए हैं कि टीचर से उनकी सैलरी से हफ्ता वसूली की जाती है। तेंदू पत्ता व्यापारियों से जबरन वसूली की जा रही है। इस बार व्यापारियों से प्रति मानक 600 रुपए की दर से करोड़ों रुपए ले भी लिए गए हैं। इसे कोई सही नहीं ठहराएगा।

सवाल: आपकी बात से पूरी तरह से सहमत हूं। एक होता है इंटेंशन और एक होता क्रियान्वयन, क्या आपको लगता है कि आपके गूगल फॉर्म को भरने के बाद जिन लोगों को पता चलेगा कि हम आपके गूगल फॉर्म को भर रहे हैं, उनके ऊपर कार्रवाई नहीं करेंगे या फिर उन लोगों के खिलाफ वो लोग कोई एक्शन नहीं लेंगे इससे आप किस तरह से निपटेंगे?

जवाब: देखिए, मैंने पहले ही कहा है कि मैं केवल एक कार्यकर्ता हूं। हमारे नेता माननीय अमित शाह हैं और हमारे मुखिया हैं विष्णुदेव साय। उन्हीं के नेतृत्व में हम काम कर रहे हैं। इन सब कामों को करते हुए एक बात समझ में आती है कि छत्तीसगढ़ और जम्मू-कश्मीर में एक बड़ा फर्क है। जम्मू कश्मीर में अगर कोई सरेंडर करता है तो 10 साल बाद भी आप उसके हाथ में बंदूक देकर उसे अपना बॉडीगार्ड नहीं बनाएंगे। क्योंकि आपको उस पर भरोसा ही नहीं होगा। लेकिन छत्तीसगढ़ में कोई सरेंडर करता है तो एक सप्ताह के बाद आप उसे अपना बॉडीगार्ड बना सकते हैं। वह खुद भी आपको इतना आश्वस्त कर सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जम्मू कश्मीर का व्यक्ति ट्रैप हो गया है। ऐसा कहा जाता है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों को एक परिवार से एक व्यक्ति चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि किसके लिए? अगर उन्नति के लिए कर रहे हो तो सरकार इसके लिए तैयार है।

नक्सलवादी जल, जंगल और जमीन कहकर लड़ते हैं। जबकि, हम तो खुद ही कहते हैं कि पूरा बस्तरवासियों का है तो इसमें क्या विषय है। डीएमएफ के जरिए पीएम मोदी इतनी अच्छी योजना लेकर आए हैं कि जो खुदाई होगी, उसकी आधी राशि वहीं पर खर्च होनी है। केरल से बड़ा बस्तर पूरे भारत में सबसे अधिक लघुवनोपज देने वाला है। गृह मंत्री शर्मा कहते हैं कि जमीन के अंदर खोदने की जरूर ही नहीं है क्योंकि ऊपर ही इतना है कि लोग धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाएं।

सवाल: कन्वर्जन भी एक बड़ी समस्या है। चुनौतियों के तौर पर आपके सामने अभी और कोई एजेंडे हैं या फिर अभी नक्सल पर ही फोकस है?

जबाव: चुनौतियां तो हर वक्त रहती हैं। इस विभाग में रहते हुए मुझे इस बात का अहसास होता है कि ये तो 24 घंटे का विभाग है। ये कोई 8 या 12 घंटे का काम नहीं है। हालांकि, पूरी फोर्स है पूरा सिस्टम है जो काम करता है। लेकिन आपको भी हर वक्त चौकन्ना रहना है और विषय को ध्यान में रखना है। कई सारे सुधार करने हैं, लेकिन मुख्य फोकस नक्सलवाद पर है और जल्द ही नक्सलवाद छत्तीसगढ़ से समाप्त होगा। मैं आपसे ये कहने आया हूं कि तीन साल के बाद इंद्रावती नदी के किनारे शाम को बैठकर आप आराम से आनंद ले सकेंगे। बस्तर में ये जरूर होगा और जल्द होगा।

सवाल: क्या पिछली सरकारों ने इस रोग को बनाए रखनी की कोशिशें की? जिस पॉजिटिविटी के साथ आप बात कर रहे है, क्या वो पहले नहीं हो सकती थी?

जवाब: पिछली सरकारों में केंद्र में अमित शाह गृहमंत्री नहीं थे। पिछली सरकार में जब अमित शाह केंद्र में गृह मंत्री थे तो विष्णु साय मुख्यमंत्री नहीं थे। लेकिन इस बार दोनों कॉम्बिनेशन है और इसलिए पूरी संभावनाएं इस बार हैं। बस्तर के हालात पर बात करते हुए शर्मा ने कहा कि उनके पास एक गाना है, जिसमें बच्चे एसपी और कलेक्टर बनने की बात कर रहे हैं। बस्तर के गांव में अगर लाइट आ जाए तो वो आपके लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हैं। कुछ लोग बस्तर के मूल निवासियों के साथ अन्याय कर रहे हैं। उनके खिलाफ षड्यंत्र कर रहे हैं।

सवाल: मैं आपसे उसी षड्यंत्र के बारे में जानने की कोशिशें कर रहा हूं? इतने सालों में एक छवि इतनी मजबूत हुई है। पिछले कुछ सालों में हमने अर्बन नक्सल सुना है और ये इकोसिस्टम तोड़ना तो राज्य सरकार के लिए बड़ी चुनौती है?

जवाब: मैं ये नहीं कहता कि ये केवल राज्य सरकार का मामला है। ये हम सब का मामला है, समाज का मामला है और समाज को इसे समझना होगा। मैं आपसे ये कहना चाहता हूं कि मैं एक काम करूंगा कि 50 ऐसे लोगों को लेकर आऊंगा, जिनका आईईडी ब्लास्ट से पैर उड़ गया है। वो यहां बैठकर पूछेंगे कि आप किसकी पैरवी करने के लिए वहां जाते हैं। इनका क्या कसूर है। बस्तर के गांवों के विकास के मार्ग पर नक्सलियों ने आईईडी बिछा रखा है। आखिर ये लोग चाहते क्या हैं? क्या आईईडी, आम लोगों को पहचानता है, क्या ये जानवर को पहचानता है या फिर ये आर्म्ड फोर्सेज को पहचानता है। वहां जाकर इनकी पैरवी करने वालों से ये पूछने की जरूरत है कि इन आम लोगों के क्या दोष हैं।

दुनिया के युद्धों में इतने लोगों की मौतें नहीं हुई होंगी, जितनों को नक्सलियों ने जन अदालत लगाकर मार डाला। ये जन अदालतें दबावों के जरिए करवाई जाती हैं। गृह मंत्री शर्मा ने नक्सलियों से सवाल किया कि आखिर क्या चाहते हैं ये लोग। अगर उन्नति चाहते हैं तो ये तो सरकार भी चाहती है।

सवाल: आपकी ‘रीच आउट पॉलिसी’ की अब तक की क्या प्रतक्रिया रही, जो लोग मुख्य धारा में आना चाहते हैं?

जवाब: कुछ वर्षों में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण भी किया है, करीब सबा पांच सौ नक्सलियों ने सरेंडर किया है। लेकिन, 600 नक्सली जेल में भी हैं। उस दिन की प्रतीक्षा है कि गिरफ्तार होने वालों से ज्यादा आत्मसमर्पण करने वाले हों।

इसी दौरान कुछ लोगों ने भी गृह मंत्री से सवाल किए हैं। इसी क्रम में हर्षवर्धन त्रिपाठी ने सवाल किया कि नक्सल और अर्बन नक्सल के बीच लिंक को तोड़ने के लिए सरकार क्या कर रही है? इसके जबाव में गृह मंत्री ने कहा कि सरकार से ज्यादा विश्वसनीयता समाज की होती है। इस नेक्सस को तोड़ना होगा, हमको आपको मिलकर इसे तोड़ना होगा। किसी ने उन लोंगो को ये नहीं बताया होगा कि जिनके पैर आईईडी ब्लास्ट में उड़ गए हैं उनकी जिंदगी कैसी है? किसी से ने ये नहीं बताया कि नक्सल पीड़ित परिवार जो हजारों लाखों लोग भटक रहे हैं उनकी जिंदगी का क्या होगा। मैं आपको बताता हूं कि आज बस्तर में कैंप लग रहे हैं, इसे लोग गलवाना चाहते हैं। ये कैंप आर्म्ड फोर्सेज के नहीं, बल्कि विकास के कैंप हैं, उसके साथ विकास आगे बढ़ रहा है।

गृह मंत्री ने अर्बन नक्सल के मुद्दे को दिमाग का फितूर करार दिया। हम सबको मिलकर उनसे पूछना चाहिए कि माओवाद चीन में तो है ना? इससे चीन में क्या बदला, क्या लोगों की सुनवाई हो रही है। चीन की अपनी खुद की उन्नति महल और अट्टालिकाओं से नहीं हो सकती है। हम तो ये मानते हैं कि वैचारिक स्वतंत्रता ही उन्नति है। गृह मंत्री ने नक्सलियों से सवाल किया कि क्या हमें थियानमन चौक याद नहीं है। थियानमन चौक पर चीन के ही लोगों ने लोकतंत्र की बहाली के लिए अभियान छेड़ा था और चीन की लाल सेना ने उन्हें तोप और टैंकों से कुचल दिया था। ऐसा माओवाद चाहिए क्या किसी को देशभर में। न ही हमें राजतंत्र चाहिए और न ही माओवाद चाहिए। हमें चाहिए लोकतंत्र।

लोकतंत्र पूरी दुनिया में माना जाता है और हमें बस्तर और भारत में वही लोकतंत्र चाहिए। अर्बन नक्सल समाज को दिग्भ्रमित करने का काम कर रहे हैं। सख्ती से निपटना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने UCCके मुद्दे पर कहा कि इसे छत्तीसगढ़ में जरूर लागू होना चाहिए।

सवाल: आपका आत्मविश्वास है कि तीन साल में चीजें बदल देंगे। क्या आपके पास कोई आंतरिक रिपोर्ट है?

जवाब: ये मेरा कॉन्फिडेंस नहीं है। ये केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह का आत्मविश्वास है।

वहीं नक्सलियों के पूरी तरह से खात्मे के सवाल पर गृह मंत्री विजय शर्मा कहते हैं कि नक्सलवाद को खत्म करना है न कि नक्सली को। उन लोगों से हमारा ये कहना है कि आप मुख्यधारा में आइए, शांति का जीवन जिएं इस बात को समझें कि बंदूक की नली से स्कूल और अस्पताल नहीं निकल सकते हैं।

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