गत 5 जुलाई को लुधियाना के भीड़भाड़ वाले इलाके में तीन निहंगों ने महान क्रान्तिकारी सुखदेव के परिवार से जुड़े शिवसेना के नेता संदीप थापर पर जानलेवा हमला कर उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। हमले के दौरान संदीप थापर का सुरक्षाकर्मी चुपचाप खड़ा रहा। थापर के साथ दिनदहाड़े जो हुआ, उससे स्पष्ट है कि पंजाब में फिर से कट्टरपंथी सिर उठा रहे हैं। वहीं पुलिस व्यवस्था और जनसाधारण अपने आप को असहाय महसूस कर रहे हैं।
हाल ही में सम्पन्न आम चुनाव में खडूर साहिब से कट्टरपन्थी खालिस्तानी अमृतपाल सिंह व फरीदकोट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअन्त सिंह के बेटे सरबजीत सिंह खालसा ने भारी मतों से जीत हासिल की है। तभी से यह प्रश्न उठ रहा है कि क्या कट्टरपन्थ के बढ़ने से ये अलगाववादी चुनाव जीते या इनके चुनाव जीतने से राज्य में अलगाववाद व कट्टरपन्थ को बढ़ावा मिला? इन प्रश्नों का उत्तर यह है कि दोनों ही बातें सही हैं। इन उम्मीदवारों की जीत के पीछे कट्टरपन्थ का उभार माना जा रहा है तो वहीं इनकी जीत से राज्य में खालिस्तानी तत्वों के हौसले भी बढ़े दिखाई दे रहे हैं।
राज्य में निहंग वेशधारियों की उग्रता का यह कोई पहला मामला नहीं है बल्कि इसकी एक लंबी शृंखला है। गुरु गोबिंद सिंह जी ने निहंग परम्परा खालसा पन्थ की स्थापना के रूप में शुरू की थी। निहंगों की परम्परा बड़ी गौरवशाली रही है जिसने समय-समय पर विदेशी हमलावरों को मुंहतोड़ जवाब दिया।
पंजाब में एक कहावत प्रसिद्ध है कि ‘आ गए निहंग-बूहे खोल दयो निसंग’ अर्थात निहंग आ गए हैं, अपने-अपने घरों के दरवाजे खोल दो। यह कहावत उस समय प्रसिद्ध हुई थी जब देश में मुगलों का अत्याचारी शासन था और आम लोग भयभीत रहते थे। लेकिन कट्टरपन्थ व अलगाववाद के उभार के कारण निहंगों में भी बहुत से इसकी चपेट में आ गए हैं।
कोरोनाकाल में देशवासियों ने देखा होगा कि किस तरह पटियाला में निहंगों ने एक पुलिस वाले का हाथ काट दिया था। गायों को चराने को लेकर 4 सितम्बर, 2023 को राधास्वामी सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं व निहंगों के बीच खूनी झड़प हुई। इसी महीने की 6 तारीख को अमृतसर में एक निहंग ने एक युवक की केवल इसलिए हत्या कर दी क्योंकि वह तम्बाकू खा रहा था। 15 अक्तूबर, 2021 को सिंघू बार्डर पर किसान आन्दोलन के दौरान निहंगों ने बेअदबी के नाम पर एक दलित युवक को बर्बरता से काट—काट कर मारा था और उस तड़पते युवक को मरणासन्न अवस्था में लटकाकर रखा था।
मई 2023 में कुछ कट्टरपन्थी निहंगों ने पटियाला के विश्व प्रसिद्ध काली माता मन्दिर पर हमले का प्रयास किया। 6 जनवरी, 2024 को कपूरथला में नशे में धुत्त एक निहंग ने बेअदबी के नाम पर गुरुद्वारा साहिब में एक युवक की हत्या कर दी।
इसी साल 6 जून को जालन्धर में निहंगों ने पुलिस पार्टी पर हमला कर एक पुलिस अधिकारी को घायल कर दिया। उक्त अधिकारी अपनी टीम के साथ निहंगोंं द्वारा शराब के ठेके के बाहर लगाया गया भड़काऊ बोर्ड हटाने गए थे। तीन महीने पहले जालन्धर में ही निहंगों ने बीड़ी/सिगरेट वाले खोखों को यह कहते हुए तोड़ डाला था कि ये गुरुद्वारे के मार्ग में पड़ते हैं। इस तरह की घटनाओं की लम्बी-चौड़ी फेरहिस्त है जो राज्य में बढ़ते कट्टरपंथ और अलगाववाद के बढ़ने के संकेत हैं।
पंजाब में भाजपा नेताओं को खालिस्तानियों की धमकी
पंजाब में राज्य भाजपा के चार बड़े नेताओं को जान से मारने की धमकी दी गई है। एक प्लास्टिक थैली में धमकी भरी चिट्ठी चंडीगढ़ स्थित पंजाब भाजपा कार्यालय में पहुंची है। इस चिट्ठी में भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव मनजिंदर सिंह सिरसा, भाजपा सिख समन्वय समिति व राष्ट्रीय रेलवे कमेटी के सदस्य तेजिंदर सिंह सरां और भाजपा महासचिव परमिंदर बराड़ को जान से मारने की धमकी दी गई है। इसके अलावा इसमें भाजपा के प्रदेश संगठन महासचिव श्रीनिवासुलु का भी नाम है। दूसरी ओर अमृतसर में भी पूर्व भाजपा अध्यक्ष व पूर्व राज्यसभा सदस्य श्वेत मलिक को भी धमकियां मिली हैं। इस मामले में पंजाब भाजपा अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने पंजाब के डीजीपी गौरव यादव से बातचीत कर मामले की जांच करने की मांग की है।
पंजाब में हिंदू और सिखों के बीच खटास पैदा करने का काम दरअसल अंग्रेजों ने शुरू किया था। 1882 में ब्रिटिश काल में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईसीएस) के अधिकारी मैक्स आर्थर मैक्यालिफ ने हिन्दू और सिख समाज में अलगाव के बीज बोए और सारा जोर यह साबित करने पर लगा दिया कि सिख और हिन्दू एक नहीं हैं। उसने जो किया, कुछ ऐसा ही कट्टरपंथी संगठन और अलगाववादी फिर से पंजाब में कर रहे हैं।
वैसे यह बात अलग है कि आज भी गुरुद्वारों में जाने वाले श्रद्धालुओं में सिखों से भी अधिक संख्या हिन्दुओं की होती है। दरअसल समाज में दरार डालने का जो काम विदेशी अंग्रेज नहीं कर पाए उसे राजनीति की आड़ में पंजाब में किया गया। पंजाब में अकालियों की ताकत बढ़ी तो कांग्रेस को दिक्कत हुई। लिहाजा उसने अकालियों की ताकत घटाने के लिए तरह-तरह के षड्यन्त्र रचने शुरू कर दिए। इन्हीं षड्यन्त्रों में से एक था राज्य में कट्टरपन्थी नेता जरनैल सिंह भिण्डरांवाले का उदय।
साल 1978 में सिखों व निरंकारी सम्प्रदाय के श्रद्धालुओं के बीच हुए टकराव में 17 सिख मारे गए और 100 के करीब जख्मी हो गए। इस घटना का लाभ उठाया जरनैल सिंह भिण्डरांवाले व उसके साथियों ने। भिण्डरांवाले ने अपने जहरीले भाषणों से राज्य के युवाओं का दिमाग भटकाकर कर उसमें अलगाववाद व कट्टरपन्थ के बीज बोए और राज्य में दो दशकों तक खालिस्तानी आतंकवाद की काली आंधी चलती रही।
1971 के युद्ध में भारत के हाथों पराजित होकर व बांग्लादेश के रूप में विभाजन की चोट खाए बैठे पाकिस्तान ने भी पंंजाब में पलीता लगाना शुरू कर दिया। पाकिस्तान ने खालिस्तानी आतंकवाद का न केवल वित्तपोषण किया बल्कि आतंकियों को शरण व हथियार भी उपलब्ध करवाए। बाद में आॅपरेशन ब्लू स्टार में भिंडरांवाले और उसके साथी मारे गए। इसी का बदला लेने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की गई। इसके बाद कहने को तो पंजाब में आतंकवाद की आग बुझा दी गई, लेकिन उसे हवा-पानी देकर लगातार सुलगाया जाता रहा। अब फिर से ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं।
विदेशी साठगांठ
आज पंजाब में आम आदमी पार्टी (आआपा) की सरकार है। इसके मुखिया अरविंद केजरीवाल दिल्ली शराब घोटाले में जेल में बंद हैं। पंजाब में उनके खास भगवंत सिंह मान मुख्यमंत्री हैं। विदित हो कि केजरीवाल पर खालिस्तानियों का सहयोग लेने के आरोप लगते रहे हैं। पंजाब में कट्टरपंथ लगातार पैर पसार रहा है। अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह जैसे लोगों का लोकसभा चुनाव में जीतना इसी तरफ इशारा करता है।
जब हम पंजाब में आतंकवाद व अलगाववाद की समस्या का जिक्र करते हैं तो हम विदेशों में बैठे उन कट्टरपंथियों की अनदेखी नहीं कर सकते जो राज्य में आतंकी आग बुझने नहीं देते। सोशल मीडिया ने उनके इस काम को और भी आसान बना दिया है। आज पंजाब में पनपा रहे गैंगस्टर, फिरौती के धंधे, नशे के व्यापार आदि कई तरह की आपराधिक गतिविधियों के लिए यह अलगाववादी, कट्टरपन्थी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिम्मेदार हैं। आज पंजाब भले ऊपर से शान्त दिखाई दे, लेकिन अलगाववादी और कट्टरपंथी तत्व एक बार फिर से राज्य को आतंकवाद की तरफ ले जाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे।
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