अमेरिका स्थित प्रमुख शोध कंपनी और शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने 25 जनवरी, 2023 को भ्रामक रिपोर्ट जारी कर भारत के प्रमुख औद्योगिक घराने अडाणी समूह को निशाना बनाया था। पूरे प्रकरण में हिंडनबर्ग अकेली नहीं था। इसमें अमेरिकी व्यवसायी मार्क एलियट किंग्डन, जॉर्ज सोरोस के साथ चीन की भूमिका के संकेत भी मिले हैं। इको सिस्टम का यह समेकित हमला अडाणी समूह के बहाने भारत को कमजोर करने के लिए था। इसका कारण है, वैश्विक बंदरगाह व्यवसाय में भारत तेजी से अपनी स्थिति मजबूत कर रहा है, जिसमें अडाणी पोट्स की भूमिका महत्वपूर्ण है।
हिंडनबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि तीन वर्ष में अडाणी समूह की 7 कंपनियों के शेयर 819 प्रतिशत बढ़े, जिससे गौतम अडाणी और उनके परिवार की संपत्ति 100 अरब डॉलर बढ़कर 120 अरब डॉलर हो गई है। रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि मॉरिशस से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक ‘टैक्स हेवन’ देशों में अडाणी परिवार की कई मुखौटा कंपनियां हैं। इनका उपयोग भ्रष्टाचार, मनी लांड्रिंग के लिए किया गया। यानी मुखौटा कंपनियों के जरिए भारत से पैसे बाहर भेजे जाते थे, जो विदेशी निवेश के रूप में वापस आते थे। दावा है कि इन मुखौटा कंपनियों के जरिए फंड की हेराफेरी भी की गई। इस रिपोर्ट से भारतीय शेयर बाजार में भूचाल आ गया, जिसका अडाणी समूह की कंपनियों पर व्यापक प्रभाव पड़ा। अडाणी की संपत्ति एक महीने के भीतर 80 अरब डॉलर से कम हो गई और एक समय समूह का बाजार मूल्य 150 अरब डॉलर से अधिक नीचे चला गया था।
हालांकि अडाणी समूह ने रिपोर्ट को निराधार और बदनाम करने वाला बताया था। समूह के मुख्य वित्तीय अधिकारी (सीएफओ) जुगेशिंदर सिंह ने कहा था, रिपोर्ट में तथ्यात्मक आंकड़ों के लिए समूह से संपर्क नहीं किया गया। चुनिंदा गलत व बासी सूचनाओं के साथ निराधार और बदनाम करने की मंशा से रिपोर्ट तैयार की गई। अडाणी समूह के विधि प्रमुख जतिन जलुंढ़वाला ने उस समय कहा था कि अडाणी समूह के शेयरों में होने वाली गिरावट से हिंडनबर्ग को फायदा होगा। उनका आरोप सच साबित हुआ। हिंडनबर्ग ने शॉर्ट और मिड सेलिंग से अडाणी से 40 अरब डॉलर यानी 33 करोड़ रुपये कमाए।
सेबी की जांच
भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने मामले की जांच के बाद हिंडनबर्ग रिसर्च पर कई तरह के उल्लंघन के आरोप लगाते हुए कारण बताओ नोटिस जारी किया। इसमें सेबी ने कहा कि हिंडनबर्ग ने झूठा दावा कर बाजार को गुमराह किया कि भारत में सूचीबद्ध अडाणी समूह के शेयरों में उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष निवेश नहीं है। हालांकि हिंडनबर्ग का कहना है कि अडाणी समूह की प्रतिभूतियों में उसका निवेश केवल अमेरिकी-व्यापारिक बॉण्ड और गैर-भारतीय व्युत्पन्न उपकरणों तक सीमित था। हिंडनबर्ग के ये कथन रिपोर्ट के ‘डिक्लेमर’, ‘प्रारंभिक प्रकटीकरण’, और ‘प्रकटीकरण’ अनुभागों में दिखे। नोटिस से पता चलता है कि सेबी में पंजीकृत विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक के-इंडिया अपॉर्च्युनिटीज फंड लिमिटेड (केआईओएफ)-क्लास एफ ने रिपोर्ट प्रकाशित होने से ठीक पहले अडाणी इंटरप्राइजेज के शेयरों में कारोबार किया और तुरंत बाद अपनी शॉर्ट पोजीशन को बेचकर 183.24 करोड़ रुपये (22.25 मिलियन डॉलर) का लाभ कमाया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि सेबी की जांच में एक अन्य अमेरिकी मार्क एलियट किंग्डन की भूमिका भी सामने आई है। वह हेज फंड किंग्डन कैपिटल मैनेजमेंट का संस्थापक है। सेबी का आरोप है कि रिपोर्ट जारी करने से पहले हिंडनबर्ग और मार्क किंग्डम के बीच लाभ में हिस्सेदारी के लिए एक समझौता हुआ था। इसके अनुसार, रिपोर्ट जारी करने से दो माह पहले हिंडनबर्ग ने किंग्डन को इसकी जानकारी दी थी। यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था। सेबी के अनुसार, हिंडनबर्ग अपना हिस्सा 30 से घटाकर 25 प्रतिशत करने को भी तैयार हो गई थी, क्योंकि इस सौदे के लिए महंगे विदेशी ढांचे स्थापित करने की जरूरत थी। हिंडनबर्ग के क्लाइंट किंग्डन कैपिटल और केआईओएफ मार्क किंग्डन के माध्यम से जुड़े हुए हैं, जिसकी किंग्डन कैपिटल में 99 प्रतिशत हिस्सेदारी है। यह संबंध हिंडनबर्ग के उस दावे को कमजोर करता है कि भारत में अडाणी समूह के शेयरों में कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष जोखिम नहीं है।
चीन का प्रोपेगेंडा युद्ध
भारत के साथ चीन सीधे सैन्य युद्ध तो नहीं कर रहा है, पर उसने भारत के विरुद्ध व्यापक स्तर पर ‘प्रोपेगेंडा वार’ छेड़ रखा है। झूठ फैलाने के लिए वह एक्स, फेसबुक, इंस्टाग्राम, यूट्यूब जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा ले रहा है। वह भारत को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा। उसने भारतीय सैन्य प्रतिष्ठानों के बारे में भी झूठ फैलाने की कोशिश की, पर उसे मुंह की खानी पड़ी। उसने भारत की जी-20 की अध्यक्षता से लेकर मणिपुर हिंसा और खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को लेकर भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ाने के लिए भी झूठ फैलाया। चीन की प्रोपेगेंडा फैक्टरी हर तरह की फर्जी खबरें गढ़ रही है, जिससे भारत को नुकसान पहुंचाया जा सके। उसने बौद्ध धर्म और दलाई लामा के विरुद्ध भी फर्जी खबरों का अभियान चलाया।
भारतीय खुफिया और सुरक्षा अधिकारियों की मानें तो चीन ने वैश्विक मंच पर भारत को बदनाम करने के लिए एक समन्वित प्रचार अभियान के तहत इंटरनेट पर हर तरह की फर्जी खबरों और विचारों की बाढ़ ला दी है। सूचना युद्ध चीन की वाणिज्यिक और सैन्य रणनीति का प्रमुख हिस्सा रहा है। भारत की अध्यक्षता में जी-20 को विफल बनाने के लिए उसके यह झूठ फैलाया कि यूक्रेन के हालात का उल्लेख करने के लिए भारत ‘युद्ध’ शब्द का प्रयोग नहीं करना चाहता था। सच यह है कि जी-20 विदेश मंत्रियों की बैठक से जुड़े दस्तावेज में कई बार इस शब्द का प्रयोग किया गया। इससे पूर्व उसने यह प्रोपेगेंडा फैलाया कि भारत इतना गरीब है कि जी-20 की मेजबानी भी नहीं कर सकता, आयोजन किया तो सफल नहीं होगा, बुरी तरह विफल होगा। जी-20 में मोदी कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं वगैरह-वगैरह।
इसी तरह, उसने मणिपुर के बारे में 7 मई, 2023 को साउथ वेस्ट यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर चेंग शीझोंग के हवाले से कहा कि मणिपुर में संघर्ष वहां के पांथिक और जातीय अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोदी की कार्रवाई का परिणाम था। मणिपुर पर भले ही चीन खुले तौर पर दावा न करे, लेकिन सोशल मीडिया सहित चीनी मीडिया में उसे ‘लघु चीन’ बताया जाता है। भारतीय अधिकारियों का कहना है कि चीन की मंशा राज्य मशीनरी की कथित विफलता को उजागर कर मणिपुर में सांप्रदायिक हिंसा भड़काना है।
सोरोस की मंशा
इस षड्यंत्र में अमेरिकी पूंजीपति जॉर्ज सोरोस की भी भूमिका थी। उसने यह भविष्यवाणी की थी कि अडाणी समस्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को कमजोर कर देगी। 2023 में सोरोस ने अडाणी के खिलाफ स्टॉक हेरफेर के दावों का हवाला देते हुए मोदी और अडाणी को ‘घनिष्ठ सहयोगी’ बताया था। सोरोस का यह बयान भारत की चुनी हुई सरकार और उसके आर्थिक तंत्र को तबाह करने की मंशा को दर्शाता है।
सोरोस ने इसी तरह 16 सितंबर, 1992 में ब्रिटिश पाउंड पर मोटा दांव लगाकर बैंक आफ इंग्लैंड को तबाह कर दिया था। इस मुद्रा संकट के बाद सट्टेबाजों ने ब्रिटिश सरकार को यूरोपीय विनिमय दर तंत्र (ईआरएम) से हटने और अपनी मुद्रा पाउंड स्टर्लिंग निकालने के लिए मजबूर किया था। नतीजा, पाउंड का तेजी से अवमूल्यन हुआ, जिससे सोरोस और उसके क्वांटम फंड को लगभग एक अरब डॉलर का लाभ हुआ। ब्रिटेन में इस घटना को ‘ब्लैक वेडनसडे’ के नाम से, जबकि सोरोस ‘बैंक आफ इंग्लैंड को तोड़ने वाले व्यक्ति’ के तौर पर कुख्यात है।
कोटक महिंद्रा बैंक की भूमिका
अडाणी शेयरों की शॉर्ट सेल के लिए हिंडनबर्ग को एक आफशोर फंड पर निर्भर रहना पड़ा। शॉर्ट सेलिंग में शेयर उधार लेना, उन्हें मौजूदा कीमत पर बेचना, फिर कम कीमत पर उन्हें खरीदना और मुनाफा का अंतर अपने पास रखते हुए शेयर वापस करना शामिल है। इसके लिए ही हिंडनबर्ग ने अमेरिकी हेज फंड किंग्डन कैपिटल मैनेजमेंट के साथ साझेदारी की थी। भारतीय नियामकों के साथ विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) के तौर पर पंजीकरण की लंबी प्रक्रिया है, जिसमें एक महीना लग सकता है।
इससे बचने के लिए किंग्डन ने शॉर्टकट रास्ता चुना। इसके लिए उसने महिंद्रा बैंक की सहायक कंपनी कोटक महिंद्रा इंटरनेशनल (केएमआईएल) का सहारा लिया, जो मॉरीशस स्थित केआईओएफ के फंड का प्रबंधन करती है। किंग्डन ने केआईओएफ के उप-फंड का अधिग्रहण किया। मतलब हिंडनबर्ग की रिपोर्ट जारी होने से पहले किंग्डन ने केआईओएफ के शेयर लिए। इससे केआईओएफ को अडाणी समूह के शेयरों को कम कीमत पर बेचने में मदद मिली, जिससे किंग्डन को 22 मिलियन डॉलर का लाभ हुआ। कोटक महिंद्रा बैंक ने किंग्डन फंड्स के लिए अडाणी के शेयरों की लेन-देन की बात स्वीकार की है, लेकिन यह भी कहा कि उसे हिंडनबर्ग और किंग्डन के संबंध की कोई जानकारी नहीं थी।
चीन की भूमिका
बहरहाल, हिंडनबर्ग-अडाणी प्रकरण में चीन की संलिप्तता भी सामने आई है। दावा किया जा रहा है कि चीनी जासूस अनला चेंग और उसके पति किंग्डन ने ही हिंडनबर्ग को अडाणी के खिलाफ रिपोर्ट तैयार करने के लिए काम पर लगाया था। किंग्डन ने केएमआईएल का इस्तेमाल अडाणी समूह के शेयरों की शॉर्ट सेलिंग के लिए एक ट्रेडिंग खाता खोलने, लाखों का मुनाफा कमाने और भारतीय खुदरा निवेशकों को आर्थिक रूप से बर्बाद करने के लिए किया था। अनला चेंग एक व्यवसायी है, जो जापान में पली-बढ़ी है। कहने को तो वह SupChina की संस्थापक और सीईओ है, जो एक डिजिटल चीन समाचार, सोशल मीडिया और इवेंट प्लेटफॉर्म है। लेकिन वास्तविकता यह है कि वह अमेरिका में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हितों का प्रतिनिधित्व करती है। हिंडनबर्ग रिसर्च और अमेरिकी गुप्तचर एजेंसी सीआईए के बीच संबंध की अफवाह कहानी को और जटिल बना रही है। जानकारों का अनुमान है कि सीआईए ने अमेरिका के आर्थिक हितों के लिए खतरा मानी जाने वाली वित्तीय प्रणालियों को अस्थिर करने के बड़े षड्यंत्र के हिस्से के रूप में अडाणी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग को परोक्ष समर्थन दिया है।
इसलिए अडाणी समूह निशाने पर
दरअसल, 2014 के बाद से अडाणी समूह ने आश्चर्यजनक तरीके से अपनी वैश्विक उपस्थिति दर्ज की है, खासतौर से बंदरगाह क्षेत्र में। समूह दुनिया भर के कई प्रमुख बंदरगाहों में रुचि ले रहा है। विशेष रूप चाबहार बंदरगाह, हाइफा बंदरगाह और स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र में इसने भारी-भरकम निवेश किया है। अडाणी पोट्स भारत का निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा बंदरगाह आॅपरेटर है, जिसकी बाजार में 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी है और अपनी वैश्विक उपस्थिति बढ़ाने के लिए वह वियतनाम में एक केंद्र बनाने की योजना बना रहा है। इन निवेशों के कारण वैश्विक बंदरगाह और कार्गो परिवहन कारोबार में अडाणी समूह एक प्रमुख भागीदार के रूप में उभरा है।
कोलंबो स्थित सिव पोर्ट और संभावित रूप से आस्ट्रेलिया के बंदरगाह के कारण भी अडाणी का कद तेजी से बढ़ा है। यह विस्तार सिर्फ व्यापार नहीं, बल्कि उससे कहीं अधिक है। यह वैश्विक बंदरगाह व्यवसाय भारत को प्रतिस्पर्धी ही नहीं, बल्कि वैश्विक परिदृश्य में उसकी स्थिति को भी मजबूत बनाता है। आज अडाणी पोटर््स प्रमुख वैश्विक बंदरगाह निगमों के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहा है, जो इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते महत्व को दर्शाता है। इसमें महत्वपूर्ण है भारत मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी)। इसे चीन की बीआरआई के विकल्प के तौर पर विकसित किया जा रहा है। दरअसल, हाइफा पर चीन की निगाह थी, जिसे अडाणी समूह विकसित कर रहा है। इसके जरिए भारत ने वैश्विक समुद्री परिदृश्य में रणनीतिक दृष्टि से खुद को स्थापित करने की अपनी क्षमता साबित कर दी है। अडाणी की दिलचस्पी फ्रांस, ग्रीस, इटली और ओमान में तो है ही, इंडोनेशिया, फिलीपींस, बांग्लादेश, म्यांमार, केन्या और तंजानिया से भी उसकी बातचीत चल रही है।
वहीं, घरेलू स्तर पर देखें तो अडाणी समूह केरल के विझिंगम में एक ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल विकसित कर रहा है। परियोजना का दूसरा और तीसरा चरण 2028 में पूरा करने की योजना है। यह देश का सबसे बड़ा और दुनिया का छठा या सातवां बड़ा बंदरगाह होने के साथ दुनिया के सबसे हरित बंदरगाहों में से एक और देश का पहला अर्ध-स्वचालित कंटेनर टर्मिनल होगा। यह बंदरगाह कई लिहाज से महत्वपूर्ण है। इससे कोलंबो बंदरगाह जैसे विदेशी ट्रांसशिपमेंट हब पर भारत की निर्भरता कम होगी। कोलंबो बंदरगाह में चीनी कंपनियों की अहम भूमिका है। दूसरे, विझिंजम भारत का पहला ट्रांसशिप बंदरगाह है, जो 18 मीटर से अधिक गहरा है, जो बड़े जहाजों को किनारे तक लाने के लिए जरूरी है। इस पर 2015 में काम शुरू हुआ था।
यह बंदरगाह रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यूरोप, फारस की खाड़ी और सुदूर पूर्व को जोड़ने वाला अंतररराष्ट्रीय शिपिंग मार्ग इससे मात्र 10 समुद्री मील की दूरी पर है। स्वेज नहर और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच रणनीतिक रूप से स्थित यह बंदरगाह भारत को वैश्विक समुद्री व्यापार के मानचित्र पर लाएगा। यह हाइड्रोजन और अमोनिया जैसे स्वच्छ और हरित ईंधन की आपूर्ति करने वाला वैश्विक हब भी होगा। कोवलम समुद्र तट के पास स्थित इस बंदरगाह को 12 जुलाई, 2024 को पहली मदर शिप मिली। केरल के गहरे पानी में जहाजों को पड़ाव सेवाएं देकर भारत चीन के हांगकांग बंदरगाह के साथ प्रतिस्पर्धा करने का इरादा रखता है, जबकि निकोबार द्वीप समूह को दुबई या सिंगापुर के तर्ज पर विकसित करना चाहता है।
राजनीतिक आयाम
कांग्रेस और माकपा में विझिंजम परियोजना का श्रेय लेने की होड़ है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का कहना है कि इस बंदरगाह से राज्य में विकास की जो संभावनाएं पैदा होंगी, वे कल्पना से परे हैं। इस परियोजना का श्रेय कांग्रेस अपने दिवंगत नेता और पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी को दे रही है। उसका कहना है कि चांडी की पहल की बदौलत ही ‘ठप’ परियोजना आगे बढ़ी। कांग्रेस और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के बीच संबंध जगजाहिर है। 2008 में कांग्रेस ने सीपीसी के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए थे, जिसका उद्देश्य ‘द्विपक्षीय आदान-प्रदान और सहयोग’ को बढ़ावा देना था। हिंडनबर्ग रिपोर्ट के मद्देनजर दोनों के संबंधों की पड़ताल के बाद कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि इस प्रकरण में कांग्रेस और चीन की भी भूमिका हो सकती है। कांग्रेस का कहना है कि अडाणी समूह में एलआईसी, एसबीआई और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के भारी जोखिम को देखते हुए व्यापक जनहित में गहन जांच जरूरी है। साथ ही, उसने यह आरोप भी लगाया है कि मोदी सरकार ने अडाणी समूह में एलआईसी, एसबीआई और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों जैसी रणनीतिक राज्य संस्थाओं द्वारा उदार निवेश करा कर भारत की वित्तीय प्रणाली को खतरे में डाल दिया है।
इसलिए ऊपर से भले ही यह मामूली आरोप लगे, लेकिन इस षड्यंत्र के पीछे मंशा भारत के वित्तीय बाजारों को धराशायी करना एवं आर्थिक तंत्र को खतरे में डालकर विकास को पटरी से उतारना था।
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