“अगर ट्रम्प चुनाव जीतते हैं, तो हमारे देश से लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा, हमारा संविधान समाप्त हो जाएगा और यह आखिरी चुनाव होंगे। इन चीजों के अपने दुष्परिणाम होंगे!” क्या यह भाषा सुनी-सुनी लग रही है? क्या यह वाक्य कुछ परिचित लग रहे हैं? क्या ऐसा लग रहा है जैसे यह पहले हो चुका है?
हाँ, ये सब सच है। ये सब पहले हो चुका है और हाल ही में भारत में लोकसभा के चुनावों के दौरान यही दुष्प्रचार किया गया था। अमेरिका में इन दिनों चुनावों का मौसम है और चुनावों का मौसम चाहे भारत में हो, या फ्रांस में या फिर अब अमेरिका में, एक बात साफ निकलकर आई है कि लेफ्ट विचारधारा वाले जो राजनीतिक दल हैं, उनकी भाषा उन दलों के प्रति यही है कि यदि दक्षिणपंथी दल जीते तो फिर चुनाव नहीं होंगे आदि आदि, जो राजनीतिक दल अपने देश की सीमाओं के अक्षुष्ण होने की बात करते हैं। जो यह कहते हैं कि वे घुसपैठियों को बाहर करेंगे, अपने देश की सीमाओं और संस्कृति को सुरक्षित रखेंगे।
भारत में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा विरोधी सभी दल यही कहते हुए नजर आ रहे थे कि यदि नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो यह आखिरी चुनाव होगा, देश से लोकतंत्र समाप्त हो जाएगा, संविधान समाप्त हो जाएगा और यह चुनाव संविधान की रक्षा के लिए चुनाव हैं। वह बात दूसरी है कि इतने प्रोपोगैंडा के बाद भी इंडी गठबंधन एनडीए से सीटों के मामले में पिछड़ गया। मगर देश में उसी अस्थिरता का उसने पूरा प्रयास किया और अभी भी वह कर रहा है जो फ्रांस में इन दिनों फैली हुई है।
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ट्रम्प के कार्यकाल में कम्युनिस्टों द्वारा फैलाया गया “ब्लैकलाइव्समैटर” आंदोलन सभी को याद होगा ही। एक सुनियोजित तरीके से असंतोष फैलाया गया था। हालांकि, भारत में भी यह करने का प्रयास किया गया और रोहित वेमुला का मामला सभी को याद होगा ही, जिसमें अब कॉंग्रेस की तेलंगाना सरकार की पुलिस ने जांच के बाद कहा कि रोहित वेमुला दलित नहीं था और उसकी आत्महत्या में भाजपा के किसी नेता का कोई हाथ नहीं था। मगर यह सभी को ज्ञात होगा कि कैसे एक आत्महत्या का राजनीतिक दुरुपयोग किया गया और उस आत्महत्या के बहाने यह विमर्श सेट करने का कार्य किया गया कि भारत में इस सरकार के आने के बाद “दलितों” पर इतने अत्याचार हो रहे हैं कि उन्हें आत्महत्या करनी पड़ रही है।
मामला इस सीमा तक कॉंग्रेस और कम्युनिस्ट दलों ने बढ़ाया और आंदोलन किए गए कि इस मामले को लेकर संसद में बयान देना पड़ा। मगर जब सत्य निकलकर खुद कॉंग्रेस की तेलंगाना पुलिस के हाथों आया तो कॉंग्रेस और कम्युनिस्ट दलों ने इस पर कुछ नहीं कहा।
हाँ, यह जरूर झूठ ये लोग कहते रहे कि भाजपा आई तो संविधान नहीं रहेगा। ट्रम्प के खिलाफ भी जनाक्रोश भड़काया गया था। जब डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिका के राष्ट्रपति थे तो वर्ष 2020 में जॉर्ज फलॉइड की मृत्यु के बाद जिस प्रकार से सुनियोजित अभियान चलाया गया, वह हैरान करने वाला था और यही विमर्श गढ़ा गया कि “अश्वेतों के साथ अन्याय हो रहा है!” इसके बाद यह भी मीडिया की रिपोर्ट्स में आया कि इस आंदोलन के नेताओं ने एक महंगा घर खरीदा था।
हाल ही में फ्रांस में चुनाव हुए हैं, मगर फ्रांस में भी एक अल्जीरिया मूल के 17 वर्षीय किशोर की पुलिस द्वारा रोके जाने पर मृत्यु के बाद दंगे भड़क गए थे और ऐसा विमर्श बनाया गया था कि अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं। और फ्रांस में सम्पन्न हुए चुनावों में पहले दौर में जहां दक्षिण पंथी पार्टी की जीत हुई तो वहीं दूसरे दौर में लेफ्ट गठबंधन सबसे बड़े दल के रूप मे उभरा है।
और फ्रांस में भी दक्षिणपंथी दल के लिए यही विमर्श बनाया गया था कि इनकी जीत लोकतंत्र के लिए हानिकारक है। यह कैसा लोकतंत्र है जो देश की सुरक्षा पर बात करने से असुरक्षित हो जाता है। ट्रम्प जो बाइडेन की प्रवासियों की नीति का विरोध करते हैं, ट्रम्प जो आतंकवाद का विरोध करते हैं, उनपर इस्लामोफोबिक होने का आरोप उसी प्रकार लगाया जाता है, जैसा आरोप भारत मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर लगाया जाता है, जैसा आरोप फ्रांस के दक्षिणपंथी दल पर लगाया जाता है।
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डोनाल्ड ट्रम्प को लेकर वहाँ की मीडिया में भी दुष्प्रचार यही किया जा रहा है कि वह जनरल्स की हत्या कराएगा, संविधान नष्ट करेगा आदि आदि।
कम्युनिस्ट मीडिया की भाषा उन सभी नेताओं के प्रति एक सी होती है, जो अपने देश के संविधान की रक्षा कनरा चाहते हैं। यह भी सच है कि कम्युनिस्ट यह कह सकते हैं या कॉन्ग्रेसी यह कह सकते हैं कि अमेरिका में घटी घटना का भारत में क्या संदर्भ, तो ऐसे में उस भाषा पर गौर किया जाना चाहिए, उन अफवाहों पर गौर किया जाना चाहिए, उन आशंकाओं पर गौर किया जाना चाहिए, जो कुछ नेताओं और राजनीतिक विचारों के खिलाफ लगातार फैलाई जा रही हैं।
जनता के मन में आक्रोश बढ़ाया जा रहा है। छोटी छोटी घटनाओं को बड़ा बनाकर उनके आधार पर विभाजन और असंतोष और अशान्ति के विमर्श बनाए जा रहे हैं और ये अमेरिका से लेकर इटली, फ्रांस और भारत तक किया जा रहा है।
क्या कम्युनिस्ट मीडिया और कम्युनिस्ट विचारों से प्रभावित दलों के नेताओं की अंतर्राष्ट्रीय भाषा किसी अंतर्राष्ट्रीय विमर्श का संकेत नहीं है? क्या “संविधान समाप्त होने का रोना” पूरब से पश्चिम तक एक नहीं है? हाल ही में जो बाइडेन ने एक चुनावी रैली में डोनाल्ड ट्रम्प को देश के लिए असली खतरा बताया था। उन्होंने कहा था कि यह कोई हवा हवाई बात नहीं है, बल्कि यह हमरी आजादी के लिए खतरा है। वह हमारे लोकतंत्र के लिए खतरा है और वह उस अमेरिका के लिए खतरा है हम जिसकी बात करते हैं।
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बाइडेन ने कहा था कि हर देश किसी न किसी नस्लीय मूल या मजहब या भूगोल के आधार पर बना होता है, मगर हमारा देश एक विकहर पर आधारित है कि सभी पुरुष और महिलाएं एकसमान रूप से बनी हैं और उनके साथ जीवन में एक समान व्यवहार होना चाहिए।“
यह भी ध्यान दिए जाने योग्य है कि लोकतंत्र के लिए खतरा बताए जा रहे ट्रम्प के किसी भी समर्थक ने अभी तक राजनीतिक प्रतिस्पर्धियों पर हमला नहीं किया है। इसके साथ ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रम्प पर हुए हमले को लेकर हालांकि राजनीति में हिंसा का स्थान न होने की बात कही है, मगर उन्होनें घटना के प्रति अज्ञानता का भी प्रदर्शन किया है।
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