पैसे के अंबार लगाने वाले दानी भी अब हौसला छोड़ते दिख रहे हैं। इससे राष्ट्रपति बाइडन का चुनाव अभियान डगमगा सकता है। इसमें पैसे लगाने वालों के एक गुट ने कहा था कि वह 90 करोड़ डॉलर उनके प्रचार में लगाने को देगा, लेकिन अब यह गुट कह रहा है कि पैसे नहीं देगा।
राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडन की उम्मीदवारी को लेकर अमेरिका में तीखी बहस छिड़ी है। उम्रदराज बाइडन भी अड़े हुए हैं कि चुनाव तो लड़कर रहेंगे। ऐसे में उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक पार्टी के पसीने छूटे जा रहे हैं यह सोचकर कि बाइडन नैया कैस पार लगाएंगे। पार्टी के कुछ बड़े नेता उम्मीदवारी में बदलाव चाहते हैं तो कुछ कहते हैं उनके जैसा कद वाला दूसरा कोई नहीं।
ट्रंप दूर से इस नजारे को देखकर मस्त हैं कि जीत पक्की दिख रही है। अपने और विदेशी नेताओं के नामों में गड्डमड्ड करने के बाद भी बाइडन नाम वापस लेने की बात पर बिफर पड़ते हैं। लेकिन अब सुनने में आया है कि उनके चुनाव में करोड़ों डालर का चंदा देने वाले दानदाताओं ने भी अब उन पर दांव रूपी पैसे लगाने से कदम खींचने शुरू कर दिए हैं।
बाइडन के चुनाव अभियान के कोष को 9 करोड़ डॉलर का चूना लग गया है। यह ढर्रा तब देखने में आया जब ट्रंप के साथ टेलीविजन पर दिखी चुनावी बहस में बाइडन की लड़खड़ाहट साफ झलकी थी। बाइडन महत्वपूर्ण नीतियों और योजनाओं के विवरण में घालमेल कर रहे थे और जबान लड़खड़ाती दिखी थी। कार्यक्रमों में भी वे अन्यमनस्क सी दिखते हैं। दक्षिण की बजाय घूमकर उत्तर को जाने लगते हैं।
इस स्थिति को देखकर न सिर्फ उनकी पार्टी लज्जित महसूस कर रही है बल्कि उनके पीछे पैसे के अंबार लगाने वाले दानी भी अब हौसला छोड़ते दिख रहे हैं। इससे राष्ट्रपति बाइडन का चुनाव अभियान डगमगा सकता है। इसमें पैसे लगाने वालों के एक गुट ने कहा था कि वह 90 करोड़ डॉलर उनके प्रचार में लगाने को देगा, लेकिन अब यह गुट कह रहा है कि पैसे नहीं देगा।
यह विषय इतना महत्वपूर्ण है कि अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर एक पूरी रिपोर्ट छापी है। उसी में लिखा है कि ‘नकदी के संकट से बाइडन का चुनाव अभियान झटके खाता दिख रहा है।’ डेमोक्रेट पार्टी को चंदा देने वालों ने दान राशि वापस जेब में डाल ली है।
इस साल नवम्बर में अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होना तय है। इसमें वर्तमान राष्ट्रपति बाइडन तथा पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप में दो दो हाथ होने हैं। ऐसे में वहां बसे बाइडन के समर्थक भारतीय-अमेरिकी मतदाताओं का भी बहुत मोल है। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में तो बाइडन के उन मतदाताओं की संख्या भी घट रही है। जितने पहले उनको वोट देते आए थे, उतनों के अब वोट नहीं मिलते दिख रहे।
ऐसा निष्कर्ष एशियाई-अमेरिकी वोटर सर्वे ने निकाला है। यह सर्वे प्रत्येक दो वर्ष में किया जाता है। इसका निष्कर्ष यह है कि साल 2020 के मुकाबले अब 2024 में होने जा रहे चुनाव में बाइडन के समर्थक भारतीय-अमेरिकी संख्या में कम हो चले हैं। 19 प्रतिशत की यही कमी कोई मामूली नहीं है।
इस सर्वे में एशियन एंड पैसिफिक आइलैंडर अमेरिकन वोट, एएपीआई डेटा, एशियन अमेरिकन्स एडवांसिंग जस्टिस तथा एएआरपी का संयुक्त निष्कर्ष यही बता रहा है कि इस वाले चुनाव में बाइडन के लिए वोट डालने वाले भारतीय-अमेरिकी नागरिकों का प्रतिशत 49 रहने वाला है। जबकि साल 2020 के चुनाव में यह संख्या 65 प्रतिशत थी। सर्वे का कहना है कि कुल भारतीय-अमेरिकी नागरिकों में से 30 प्रतिशत के ट्रंप के पाले में मतदान करने की संभावना है।
जैसा पहले बताया, बाइडन उम्रदराज हो रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में अभी चार महीने बचे हैं। तब तक उनका चीजों को भूलना और बढ़ ही जाने वाला है। इसी वजह से उनकी डेमोक्रेट पार्टी बाइडन की चुनाव लड़ने की जिद्द से पसोपेश में पड़ी है। पार्टी के भीतर बाइडन की उम्मीदवारी को लेकर मत में दरार बढ़ती जा रही है। कुछ नाम विकल्प के तौर पर चलाए जा रहे हैं। अमेरिका में मीडिया भी खुलकर लिख रहा है कि पार्टी बाइडन के उन विकल्पों को लेकर गंभीरता से सोचने लगी है।
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