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76 बरस राष्ट्र सेवा के : देह लेकर आए, ध्येय परिषद ने दिया

आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 76 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं और जब अभाविप की स्थापना 1949 में हुई तभी 1947 में हमारा भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था

by शालिनी वर्मा
Jul 9, 2024, 02:58 pm IST
in भारत, विश्लेषण, संघ
शालिनी वर्मा

शालिनी वर्मा

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आज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के 76 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। जब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना 1949 में हुई तभी 1947 में हमारा भारत देश अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त हुआ था, उस समय लगातार लंबे समय तक गुलामी में रहने के कारण मन में स्वत्व का अभाव था, लार्ड मैकाले का जब हम जिक्र करते हैं, तो ध्यान में आता है कि उसने भारतीयता पर, उसके स्वाभिमान पर करारी चोट करते हुए हमें गुलाम की मानसिकता में पहुँचाने के लिए, पूरे शिक्षा-तंत्र पर जो प्रहार किया, उस कारण से स्वाधीनता के समय हमारे ही मन में एक बड़ी ग्लानि थी।

आत्मविस्मृति थी और इसलिए उस समय के बड़े-बड़े विद्वान सामाजिक कार्यकर्ता, तत्वचिंतक, बुद्धिवादी भी यह कहते हुए सुने जाते थे कि अब हमको नवनिर्माण करना चाहिए, नया कुछ बनाकर दिखाएँगे। एक आधुनिक (Modern), अच्छा प्रगतिशील देश बनाना है, तो हमें कुछ नया करना पड़ेगा। यहाँ तक लोग सोचते थे कि भारत राष्ट्र है ही नहीं। अंग्रेजों के आने के बाद ही भारत राष्ट्र बनना शुरू हुआ, इस सोच के स्तर पर, यहाँ तक हमारी गिरी हुई अवस्था पहुँच गई थी। और इसलिए नवनिर्माण-नवनिर्माण नवनिर्माण इस प्रकार के नारे जब लगाते थे, तब विद्यार्थी परिषद ने बहुत स्पष्टता के साथ कहा कि यह नवनिर्माण नहीं, पुनर्निर्माण है। (it is a reconstruction) और इस राष्ट्रीय पुननिर्माण के लिए एक विशाल छात्रशक्ति के निर्माण का संकल्प लिया।

अब पुनर्निर्माण है ऐसा हमने क्यों कहा क्योंकि जब हम नवनिर्माण की बातें करते हैं, तो पुरानी सारी चीजों को समाप्त करते हुए एक नया सृजन करेंगे, नया निर्माण करेंगे, इस प्रकार का भाव प्रकट होता है। किंतु हमारा यह विश्वास था और है कि भारतीय संस्कृति में, भारतीय दर्शन में अब भी यह ताकत है कि वह आज की स्थिति में भी वर्तमान की सभी समस्याओं को चुनौती दे सकता है। इसलिए हम नवनिर्माण नहीं कहेंगे, हम पुनर्निर्माण कहेंगे।

पुनर्निर्माण शब्द हमारी सांस्कृतिक विरासत, धरोहर, जो कि अत्यन्त संपन्न है, उससे निकलता है। भारतीय दर्शन विश्व के सम्मुख खड़ी हुई बहु-आयामी समस्याओं का सामना करने के लिए ठोस आधार प्रदान करता है, ये हमारा विश्वास था; और उसी विश्वास के चलते हम अत्यन्त दृढ़ता के साथ कहते थे कि सब कुछ नया बनाने की जरूरत नहीं है, हम पुनर्निर्माण करेंगे। विद्यार्थी परिषद् का स्पष्ट रूप से कहना है कि चीजें सांस्कृतिक धरोहर के रूप में अच्छी हैं, उन्हें डंके की चोट पर सबके सामने कहना और युगानुकूल अनुकरण करना, और उसके बारे में छात्रों के मन में या सारे समाज के मन में आत्म-सम्मान का भाव उत्पन्न करना है। फिर हमको यह सोचना होगा कि ऐसे कौन से जीवनमूल्य हैं, जिनको हमें आज भी बरकरार रखना पड़ेगा, आज के समय में भी उपयोगी और प्रासंगिक हैं, उसका ध्यान रखकर अपने प्रयास लगातार जारी रखना अपना काम है।

अन्न, वस्त्र, निवाला, दवाई, पढ़ाई ये सभी लोगों को मिले। अब इसमें विद्यार्थी परिषद प्रत्यक्ष कुछ नहीं करेगा, किन्तु हमारी दिशा यही है। उसी प्रकार से सुरक्षा, समरसता, सम्मान और समृद्धि ये चार बातें सामाजिक स्तर पर हों। यानी व्यक्तिगत स्तर पर अन्न, वस्त्र, निवाला, दवाई, पढ़ाई सभी को उपलब्ध हो और सामाजिक स्तर पर सुरक्षा (Security comes First), फिर सुरक्षा के अंतर्गत आनेवाली दिक्कतों से, फिर वो चाहे आतंकवाद हो, नक्सलवाद हो या फिर बाहरी आक्रमण हो, सबसे सुरक्षा चाहिए। अब सुरक्षित समाज हो गया लेकिन विभेदो में है, प्रांतीयवाद में है, लिंगभेद है, जातिवाद, वर्णभेद है, तो उसका कोई मतलब नहीं, तो सुरक्षा एक प्राथमिक आवश्यकता है। उसके आगे हमको जाना पड़ेगा और समरसता की ओर जाना होगा। सुरक्षा हो गई, समरसता हो गई, लेकिन सभी समुदाय के लोगों को सम्मान मिलना चाहिए, उसके आगे समृद्धि ये चारों बातें सामाजिक स्तर पर भी हमें सोचनी हैं। यदि हम यह सब करेंगे, तो ही पुनर्निर्माण होगा। यही पुनर्निर्माण की वास्तविक दिशा है।

स्थापना के समय विचार हुआ कि विद्यार्थी परिषद की एक-एक इकाई में कार्यकर्ता आधारित संगठन बनकर कार्यकर्ता को अपनी भारतीय संस्कृति, उसके गुण, उसके व्यक्तिगत गुण को इस दिशा में ले जाना ही आवश्यक है। समाज में जितने भी प्रकार के विषय आएँगे उस विषय के समाधान हेतु हमारी परिषद् यूनिट में कोई कार्यक्रम, जागरण, आंदोलन हो सकता है। जिसके माध्यम से हम राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की अनेक बातें स्थापित कर सकेंगे। और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् समरसता युक्त व्यक्ति निर्माण से पर्यावरणयुक्त जीवनशैली तक की यात्रा पर अनवरत चल रही है। विद्यार्थी वर्ग में अभाविप के कार्यक्रम, गतिविधि, अभियान, आंदोलन का जो मानक है वह राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के ऊपर बताये गये बिंदुओं के आधार पर निर्धारित है और परिषद् ने कहा कि छात्र शक्ति राष्ट्र शाक्ति है। यह दिशाहीन समूह नहीं है। छात्र कल का नहीं अपितु छात्र आज का नागरिक है। और इन वाक्यों ने आज हमारे युवाओं को भारत के उज्जवल भविष्य के लिए संकल्पशक्ति दी है।

परिषद् में रहकर कार्यकर्ता/सामान्य विद्यार्थी हर क्षण भारत माता की जय का नारा लगाते हुए कहता है कि भारत के उत्थान के लिए पराक्रम पुरुषार्थ एवं संकल्प की जरूरत है। देशभक्ति एवं समाज के प्रति आत्मीयता से ओतप्रोत छात्र युवा समुदाय ही सभी समस्याओं के समाधान हो सकते हैं। आज चाहे परिषद का कार्यविस्तार होने में समय लगा लेकिन स्वाधीन भारत के राष्ट्रीय छात्र आंदोलन की नींव मजबूत हो यह प्रयास विद्यार्थी परिषद के प्रारंभ काल से ही किया गया। भारत के गौरवशाली इतिहास से प्राप्त ज्ञान शील एवं एकता को परिषद ने अपना मूलमंत्र बनाया तथा इसी परंपरागत नींव पर राष्ट्रीय पुनर्निर्माण को अपना मुख्य जीवन का उद्देश्य रखा।

इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु आवश्यक संगठन व व्यक्ति निर्माण का कार्य 76 वर्ष पूर्ण होने तक भी सतत जारी है। अराजक नहीं रचनात्मक को अपने कार्य का आधार बनाया। विद्यार्थी, शिक्षक एवं शिक्षाविद ऐसे शैक्षिक परिवार की कल्पना की। दलगत राजनीति के प्रभाव से ऊपर उठकर व्यापक हितों के लिये संकल्पबद्ध होने का निर्णय लिया। स्वाधीनता आंदोलन के शुद्ध देशभक्ति से नाता जोड़कर वैसा ही पराक्रमी छात्र आंदोलन अपने परिश्रम से खड़ा करने का निश्चय अब तक जारी है। इस तरह भारतवासियों का भाग्य बदलने हेतु अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के इस व्यापक छात्र आंदोलन का प्रारंभ से अब तक जारी है जिसके अनेकों परिवर्तन,परिणाम विद्यार्थी/समाज जीवन में आज दिखाई देते हैं।

फिर चाहे हम बात करें तो बांग्लादेश मुक्ति के युद्ध के समय सैनिकों की सहायता में शिविर लगाने में भी परिषद अग्रिम पंक्ति में रहा, 1971 में दिल्ली छात्र संघ में परिषद का झंडा अध्यक्ष पद पर लहराया और यह सिद्ध हुआ कि यह छात्रों द्वारा प्राप्त स्वीकृति का संकेत है। परिषद के रजतजयंती वर्ष 1974 में मुम्बई में आयोजित राष्ट्रीय अधिवेशन में 326 जिलों से 550 प्रतिनिधि उपस्थित हुए। बाद में 1973 गुजरात के नवनिर्माण आंदोलन में परिषद मुख्य भूमिका में रही, जिसमें विद्यार्थियों के योजनाबद्ध आंदोलन ने सत्ता को हिला दिया था। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा जून 1975 में लागू आपातकाल में सभी राजनीतिक नेताओं को कारागृह में बंदी होने के पश्चात भी विद्यार्थी परिषद की अग्रणी भूमिका में छात्र आंदोलन ने ऐतिहासिक संघर्ष का उदाहरण प्रस्तुत किया।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना से अंततः आपातकाल का अंत हुआ। इस आंदोलन ने छात्र संगठन एवं आंदोलन से छात्रों की भूमिका को प्रतिष्ठा एवं प्रासंगिकता प्रदान की। पश्चात हुए राजनैतिक परिवर्तन में जहाँ लगभग सभी छात्र संगठन दलगत राजनीति का हिस्सा बने, परिषद ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कार्य करने की अपनी रीति बनाये रखी। परिषद की इस भूमिका ने राष्ट्रीय छात्र आंदोलन को एक नया रचनात्मक चरित्र प्रदान किया। 1977 के पश्चात देशभर में विद्यार्थी परिषद को छात्रों का समर्थन प्राप्त हुआ और कई जगह छात्र संघों में विजय भी मिली तब से ही विद्यार्थी परिषद् की एक जिम्मेदार संगठन के रूप में यात्रा चली आ रही है। शिक्षा सभी के लिए सुलभ, भ्रष्टाचार मुक्त एवं गुणवत्तापूर्ण हो इस आग्रह को लेकर देश के हर कोने में परिषद ने आंदोलन चलाया है।

राष्ट्रीय एकात्मता को मजबूत करने में छात्रों की भूमिका को सामने रखकर पूर्वोत्तर भारत के छात्रों की देश के अन्य प्रांतों में यात्रा अंतरराज्य छात्र जीवन दर्शन (SEIL) प्रकल्प का प्रारंभ 1966 में हुआ, जोकि एक ऐतिहासिक कदम था। इसका प्रभाव पूर्वोत्तर में छात्र आंदोलनों की दिशा बदलने में हुआ तथा इसने देशभर में व्याप्त जानकारियों का अभाव दूर करते हुए राष्ट्रीय एकात्मता को भावनात्मक संबंधों का आधार प्रदान किया। आज विद्यार्थी परिषद के माध्यम से छात्रों की नागरिक भूमिका में नये-नये आयाम जुड़ चुके हैं।

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने सर्वस्पर्शी सर्वसमावेशी समरसतायुक्त छात्र संगठन बनाया है । फरवरी 2016 में जेएनयू में लगे देशविरोधी नारों का जब परिषद ने विरोध किया, तब कई राजनैतिक दलों के राष्ट्र‌विरोधी शक्तियों के समर्थन बावजूद छात्र समुदाय के साथ देश भारत जय के नारों से गूंज उठा। इसने यह सिद्ध कर दिया कि राष्ट्रीय छात्र आंदोलन को अब कोई देशविरोधी, अराजकवादी या संकीर्ण राजनैतिक ताकतें भ्रमित नहीं कर सकतीं। अब समय विवेकानंद से प्रेरित भारत भक्ति से ओतप्रोत राष्ट्रीय छात्र आंदोलन का है। परिषद की इतने वर्षों की साधना के उपरांत आज राष्ट्रभक्ति से ओत प्रोत परिसरों का वातावरण हमारे समक्ष है।

भारत से अब पूरी दुनिया को दिशा मिल रही है और इस अवसर पर छात्रों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है। परिवर्तन के आंदोलन का केंद्र विश्वविद्यालय एवं महाविद्यालय परिसर बनाकर राष्ट्र‌हित में सक्रिय करने में परिषद अपनी भूमिका सतत निभा रही है। आज संपूर्ण समाज भी राष्ट्रीय छात्र आंदोलन के इस संघर्ष- सृजन एवं संकल्प का दर्शन कर रहा है।

हम देह लेकर आए थे परिषद् ने ध्येय देकर जीवन की दिशा सार्थकता और दिखाई है।

नित्य नूतन प्रेरणा लें
बढ़ रहे है कोटि चरण है
नर ही नारायण हमारा
राष्ट्र को हम सब शरण है ।

(लेखिका- राष्ट्रीय मंत्री, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद्।)

Topics: अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषदरजतजयंती वर्षAkhil Bharatiya Vidyarthi Parishadराष्ट्रीय छात्र आंदोलनSilver Jubilee YearIndian Philosophy Worldसांस्कृतिक विरासतNational Student MovementFreedom MovementCultural Heritageस्वाधीनता आंदोलनheritageपाञ्चजन्य विशेषधरोहरभारतीय दर्शन विश्व
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