फ्रांस में दूसरे दौर के चुनावों के बाद कट्टर लेफ्ट सबसे आगे, दक्षिणपंथी पार्टी तीसरे नंबर पर
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फ्रांस में दूसरे दौर के चुनावों के बाद कट्टर लेफ्ट सबसे आगे, दक्षिणपंथी पार्टी तीसरे नंबर पर

फ्रांस में रविवार को दूसरे दौर का मतदान हुआ। जहां प्रथम दौर में दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की विजय दिखाई दी थी, तो वहीं दूसरे चरण में कट्टर लेफ्ट और मैक्रोन की पार्टी अधिक सीटें लेकर उभरती हुई दिखाई दे रही हैं।

by सोनाली मिश्रा
Jul 8, 2024, 09:59 pm IST
in विश्व
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फ्रांस में रविवार को दूसरे दौर का मतदान हुआ। जहां प्रथम दौर में दक्षिणपंथी पार्टी नेशनल रैली की विजय दिखाई दी थी, तो वहीं दूसरे चरण में कट्टर लेफ्ट और मैक्रोन की पार्टी अधिक सीटें लेकर उभरती हुई दिखाई दे रही हैं। एग्जिट पोल्स के अनुसार कट्टर लेफ्ट की सबसे ज्यादा सीटें आ रही हैं।

हालांकि फ्रांस में दक्षिण पंथी दल नेशनल रैली के प्रथम दौर में आगे रहने के बाद अराजकता और हिंसा फैली थी, वही हिंसा और अराजकता कट्टर लेफ्ट के जीतने पर दिखाई दे रही है। मैक्रोन की पार्टी दूसरे स्थान पर आती हुई दिख रही है। नेशनल रैली तीसरे स्थान पर है। कट्टर लेफ्ट के जीतने से इस्लामिस्ट खुश हैं। सोशल मीडिया पर कई ऐसे वीडियो आ रहे हैं, जिनमें कट्टर लेफ्ट की जीत का दावा करते हुए फिलिस्तीन के झंडे लहराए जा रहे हैं। और दंगे किए जा रहे हैं।

https://x.com/EndWokeness/status/1810067176717701373

जहां पहले दौर में दक्षिणपंथी पार्टी आगे थी तो वहीं दूसरे दौर में कट्टर लेफ्ट ने आश्चर्यजनक रूप से बढ़त बनाते हुए पहला स्थान हासिल किया है। हालांकि इन चुनावों में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। सरकार को लेकर भी स्पष्टता नहीं है। मगर पहले दौर के बाद जिस एक बात को लेकर स्पष्टता रही थी, वह इसे लेकर थी कि कैसे भी सेंट्रलिस्ट और कट्टर लेफ्ट दोनों ही मिलकर कुछ ऐसा करें कि दक्षिणपंथी विरोधी मतों का विभाजन न हो और किसी भी तरह से वह पार्टी आगे न जाए। वह पार्टी न जीत जाए। इस पार्टी की जीत को रोकने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रोन ने रणनीति बनाई थी कि वे कट्टर लेफ्ट से भी हाथ मिला लेंगे, मगर नेशनल रैली को आगे बढ़ने से रोकेंगे और इसे लेकर एक पोस्टर भी एक्स पर साझा हो रहा है कि “लेफ्ट और राइट के बीच विभाजन नहीं रह गया है, बल्कि यह देशभक्तों और ग्लोबलिस्ट्स के बीच विभाजन है।“

https://x.com/WallStreetSilv/status/1810043245050937720

भारत में भी यही स्थितियाँ बनी थीं, हर स्तर पर यह सुनिश्चित किया गया कि भाजपा विरोधी मतों का विभाजन न हो। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता था कि आप एक दूसरे के कट्टर विरोधी हैं या समर्थक हैं, अंतिम लक्ष्य जैसे फ्रांस में नेशनल रैली को सत्ता में आने से रोकना था, फिर चाहे किसी भी पार्टी को बहुमत न मिले, देश दो विरोधी दलों के गठबंधन के चलते अस्थिरता में चला जाए, मगर दक्षिणपंथी दल को सत्ता में नहीं आने देना है।

क्या यह कहा जाए कि वैश्विक शक्तियां जो भारत में आंशिक रूप से सफल हो पाईं, कि भारतीय जनता पार्टी की सीटें अत्यधिक कम हुईं और आज तक कॉंग्रेस और ममता बनर्जी आदि आपस की धूर विरोधी पार्टियां बार-बार यह कह रही हैं कि मोदी की नैतिक पराजय हुई है। मगर जीत किसकी हुई है, यह नहीं बता रही हैं। यह मानसिक रूप से विजेता के मनोबल को तोड़ने की रणनीति हो सकती है।

जैसे भारत में रणनीति बनी कि जहां पर आम आदमी पार्टी को लगा कि वह भाजपा को अकेले परास्त कर सकती है और कॉंग्रेस के उसके साथ आने से नुकसान है, तो उसने इंडी गठबंधन में होते हुए भी चुनाव अलग लड़ा। क्योंकि लक्ष्य अपनी जीत से बढ़कर भाजपा की पराजय था।

फ्रांस में भी पहले दौर के एग्जिट पोल के बाद यही हुआ। लक्ष्य केवल नेशनल रैली को किसी भी कीमत पर पराजित करना रह गया था और यही कारण था कि सैकड़ों की संख्या में लोगों ने अपने नाम चुनावों से वापस ले लिए थे।

फिर भी फ्रांस में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला है। कट्टर लेफ्ट ने अधिकांश सीटें जीतीं अवश्य हैं, मगर फिर भी उसके पास पूर्ण बहुमत नहीं है। किसी भी दल के पास 289 सीटें नहीं हैं। लेफ्ट विंग के न्यू पॉपुलर फ्रंट ने 182 सीटें जीतीं हैं, मैक्रोन की पार्टी वाले गठबंधन टुगेदर गठबंधन ने 163 सीटें जीतीं हैं नेशनल रैली और उसके सहयोगी दल 143 सीटें जीत सके हैं। बीबीसी के अनुसार हालांकि किसी भी गठबंधन को पूरी सफलता नहीं मिली है, फिर भी वामपंथी नेता ज्यां ने यह घोषणा कर दी है कि उनका गठबंधन फिलिस्तीन को मान्यता देने की दिशा में काम करेगा। ज्यां के सोशल मीडिया हैंडल से यह लिखा गया है कि प्रधानमंत्री न्यू पॉपुलर फ्रंट से होगा। हम अब कई चीजों का निर्धारण कर सकेंगे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हम फिलिस्तीन राज्य को मान्यता देंगे।

https://x.com/JLMelenchon/status/1810041739039723810

वहीं वहाँ पर रह रहे यहूदियों से यह अनुरोध किया जा रहा है कि वे फ्रांस छोड़कर इजरायल में चले जाएं। न्यू पॉपुलर फ्रंट की इस जीत को फासिस्ट शक्तियों पर विजय के रूप में बताया जा रहा है, जबकि जिस तरीके से नेशनल रैली को सत्ता में आने से रोका गया है, वह अपने आप में विस्मित करने वाला है। वह अपने आप में एक फासिस्ट कदम है कि कैसे लोकतान्त्रिक तरीके से एक दल को सत्ता में आने ही नहीं दिया जाए। लोकतान्त्रिक तरीके से मतों को इस प्रकार एकजुट किया जाए कि एक विशेष दल को हराया जा सके। यही सब कुछ भारत में भी हुआ था और ऐसा बेमेल गठबंधन बना था, जिसकी न दिशा थी, न नीति और न निर्देश। बस एकमात्र उद्देश्य भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी को सत्ता से दूर रखना। एक्स पर कई लोग इसे फ्रांस का दुर्भाग्य बता रहे हैं।

 

 

 

 

 

 

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