इंसान में हौसला और हुनर हो तो सफलता उसके पीछे दौड़ाती है। यह कहानी उत्तर प्रदेश में बरेली की नेमवती की है, जिन्हें पढ़ने का मौका तो ज्यादा नहीं मिला लेकिन मेहनत एवं लगन से उन्होंने न सिर्फ स्वयं के, बल्कि न जाने कितने परिवारों में खुशहाली का दीप जला रखा है। इलाके में अपनी जैसी कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के साथ मिलकर नेमवती ने कुछ साल पहले अचार बनाने का काम शुरू किया था। अभि स्वयं सहायता समूह बनाकर नेमवती और उनके साथ की महिलाओं ने विभिन्न तरह के अचार और मुरब्बे बनाने में प्रयोग करते हुए अपने समूह को कामयाबी की मंजिल तक पहुंचा दिया। मौजूदा समय में अभि समूह के अचार-मुरब्बे की मांग उ.प्र. उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों में है और आमदनी भी लाखों में है।
छोटे से गांव से हुई शुरुआत
बरेली के अभि स्वयं सहायता समूह के जन्म की कहानी बरेली में रामगंगा के तट पर बसे छोटे से गांव खल्लपुर से शुरू हुई थी। पांच साल पहले नेमवती और उसके परिवार की जिंदगी अभावों में जकड़ी थी। सिर्फ नेमवती क्या, उसके गांव की प्रीती, सरोजा देवी, असनीता, रामबेटी सहित कितनी ही महिलाओं का चैन से जिंदगी गुजारना उस वक्त किसी सपने से कम नहीं था। नेमवती अपने मायके से ही अचार बनाने का हुनर सीख कर आई थीं। एक दिन गांव की कई महिलाओं के साथ बातचीत करते-करते नेमवती ने साथ मिलकर अचार बनाकर बेचने की योजना बनाई।
नेमवती के पति राय सिंह ने योजना को मूर्तरूप देने में उनकी मदद की। सबने मिलकर नेशनल रूरल लाइवहुड मिशन (एनआरएलएम) योजना के बारे में जानकारी ली तो बरेली प्रशासन भी उनके हुनर को और ज्यादा धार देने के लिए सामने आया। पहले 10 महिलाओं ने मिलकर अभि स्वयं सहायता समूह का गठन किया। उसके बाद नेमवती ने खाद्य प्रशिक्षण केन्द्र बरेली- लखनऊ में जरूर प्रशिक्षण प्राप्त किया और वहां से लौटते ही वे अचार-मुरब्बा बनाने के काम में जुट गईं। कारोबार चमका तो और भी महिलाएं इससे जुड़ती चली गईं।
मेलों में लगाते हैं स्टॉल
देखते ही देखते उनके बनाए अचार-मुरब्बों की मांग क्षेत्र क्या, जिला और मंडल तक होने लगी। ये महिलाएं अपनी मेहनत से एक बार सफलता के रथ पर सवार हुईं तो फिर मुड़कर पीछे नहीं देखा। अभि समूह इस समय आम, कटहल, नीबू, मिश्रित, बांस, आंवला, कैंडी, करोंदा, चेरी, आम, मिर्च सहित 30 तरह के अचार और 10 प्रकार के मुरब्बे तैयार कर रहा है। उनका समूह दिल्ली के प्रगति मैदान में लगने वाले मेले के अलावा नोएडा हाट, गुड़गांव, गोरखपुर, देहरादून सहित कई जगहों पर हर बार लगने वाले मेलों में अपने स्टॉल लगाता है और वहां से महिलाओं को माल के काफी आर्डर प्राप्त होते हैं। यूपी के सभी जिलों के अलावा समूह की उत्पादन मांग उत्तराखंड, हरियाणा, दिल्ली-एनसीआर, बिहार तक है।
नेमवती और उनके पति राय सिंह बताते हैं कि अचार-मुरब्बे उत्तम स्वाद के हैं, इसलिए उपभोक्ताओं के बीच मांग लगातार बढ़ रही है। समूह की महिलाएं बिल्कुल परंपरागत तरीके से अचार और मुरब्बा गांव में ही तैयार करती हैं। वे अचार में इस्तेमाल होने वाले मसाले भी खुद ही तैयार करती हैं। समूह दिल्ली के कनॉट प्लेस में आयोजित सरस फूड फेस्टिवल में काफी वाहवाही बटोर चुका है। समूह के उत्पादों में सबसे ज्यादा मांग बांस के अचार की देखी जा रही है। इस अचार के लिए ओडिशा से खास किस्म का बांस मंगवाया जाता है।
बांस का अचार कई रोगों से लड़ने में रामबाण माना जाता है। यह महिला स्वयं सहायता समूह अचार-मुरब्बे की बढ़ती मांग देखकर अपने काम को विस्तार देने में लगा है। खल्लपुर गांव में एक और उत्पादन गृह तैयार किया जा रहा है, ताकि इलाके की और भी तमाम महिलाओं को जोड़ा जा सके। समूह के पास देश भर से आनलाइन आर्डर प्राप्त हो रहे हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए काम को और तेजी दी जा रही है। स्वयं सहायता समूह से अपनी किस्मत चमका रहीं नेमवती और उनके साथ की महिलाओं को देखकर बरेली व इसके आसपास के जिलों में और न जाने कितने महिला समूह गठित होकर खुशहाली की राहपर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं।
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