बंगाल से आए दिन महिलाओं को लेकर ऐसी घटनाएं सामने आ रही हैं, जो भद्र लोक को लज्जा में डालने के लिए पर्याप्त हो सकती हैं। मगर भद्र लोक का प्रदेश कहे जाने वाले बंगाल में इन घटनाओं को लेकर बंगाली भद्रलोक और लुटियन ज़ोन के पत्रकारों के साथ ही “लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” जैसी बातें करने वाली प्रियंका गांधी भी एकदम चुपचाप हैं।
सबसे बढ़कर बंगाल के सत्ताधारी राजनेताओं का रवैया है, जो एक ऐसी महिला के वीडियो से सामने आया है, जिसे कंगारू कोर्ट लगाकर पीटा जा रहा है, क्योंकि उसने कुछ काम इस्लाम की रिवायतों के अनुसार नहीं किए। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि जो लोग संविधान बचाओ की बातें करते थे, उन लोगों के प्रदेश में मुस्लिम कानून कब से लागू हो गए कि वहाँ पर इस्लाम की रिवायतों का पालन न किए जाने पर कोई भी महिलाओं को सड़क पर पीट देगा?
क्या बंगाल में मुस्लिम आचार-विचार लागू हो गया है, जो वहाँ पर सड़क पर उसके अनुसार इंसाफ मिलने लगा है? यह प्रश्न भारत की अखंडता के लिए भी बहुत आवश्यक है। मगर अभी यह देखना होगा कि घटना क्या है? 30 जून को एक वीडियो भारतीय जनता पार्टी के अमित मालवीय तथा सीपीआई के मोहम्मद सलीम ने पोस्ट किया। प्रथम दृष्ट्या तो यह वीडियो भारत का लगा ही नहीं, क्योंकि एक महिला को और पुरुष को घेरा बनाकर पीटा जा रहा था। यह दृष्य पूरी तरह से उन इस्लामिक अदालतों की याद दिलाने के लिए पर्याप्त था, जो तालिबान अपनी औरतों के लिए लगाता है।
इसमें तृणमूल कॉंग्रेस के विधायल हमीदूर रहमान के बहुत नजदीकी ताजेमुल का नाम सामने आया, जिसे “तत्काल इंसाफ” देने के कारण जेसीबी के नाम से पुकारा जाता है। यह भी बहुत हैरान करने वाला तथ्य है कि जब उत्तर प्रदेश मे अपराधियों के घरों के अवैध कब्जों पर जेसीबी चलाई जाती है तो उसे अन्याय का नाम देने वाले लोग अपने राज्य में महिलाओं के जीवन के प्रति जेसीबी बने लोगों के प्रति आँखें मूँदे रहते हैं।
यह शरिया इंसाफ था। मगर प्रश्न यह भी उठता है कि शरिया इंसाफ देने वाला जेसीबी कौन है? किसने उसे यह अधिकार दिया है? हालांकि, इस मामले में जो सबसे शर्मनाक और खतरनाक बात है, वह है विधायक का जस्टीफ़िकेशन। विधायक का यह कहना है कि उनकी पार्टी का इसमें कुछ हाथ नहीं हैं। हाँ, उनके “मुस्लिम राष्ट्र” में कुछ आचार और विचार होते हैं, और चूंकि उस औरत ने कुछ ऐसा किया था, जो इस्लाम के खिलाफ था, इसलिए उसे यह सजा दी गई।
अब सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि आखिर बंगाल कब से मुस्लिम राष्ट्र बन गया है? अभी बहुत दिन नहीं हुए हैं, जब ममता बनर्जी समेत तमाम विपक्षी नेता अपने अपने हाथों में संविधान की कॉपी लेकर यह कहते हुए चुनाव प्रचार करते पाए जाते थे कि वे संविधान की रक्षा करने के लिए यह चुनाव लड़ रहे हैं, नहीं तो मोदी जी संविधान बदल देंगे। मगर उनके ही प्रदेश में संविधान को बदला ही नहीं गया है, बल्कि संविधान को अस्वीकार कर दिया आज्ञा है।
जो भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, वहाँ पर बंगाल में मुस्लिम राष्ट्र बनाकर शरिया लागू कर दिया गया है क्या? सबसे बड़ा प्रश्न यही है और पुलिस के पास चूंकि महिला ने शिकायत नहीं की है, तो ऐसे में किसी का कोई बोलना भी मायने नहीं रखता है, ऐसा कहा जा रहा है। जिस विधायक के हाथों में इंसाफ बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है, वही विधायक यह कह रहा है कि “उस औरत ने भी अपने शौहर के साथ गलत किया था। उसने अपने शौहर, बेटे और बेटी को छोड़ दिया था और उसने गलत किया था। मुस्लिम समाज में कुछ आचार और विचार होते हैं, हाँ जो हुआ वह कुछ ज्यादा हो गया और इस मामले में अब कानूनी कार्यवाही की जाएगी!”
किसी भी महिला का किसी के साथ रहना या न रहना उसकी व्यक्तिगत पसंद होता है और यदि पारिवारिक विवाद का कोई मामला आता भी है तो उसका निस्तारण करने के लिए पारिवारिक न्यायालय हैं, जिनका संचालन संविधान के अनुसार किया जाता है। भारतीय न्याय प्रणाली में विश्वास न रखने वाले लोग किस प्रकार इस घटना को उचित ठहरा रहे हैं, वह खतरनाक है।
यह एक महिला को मारने का मामला नहीं है, यह भारतीय संविधान को तार-तार करने का भी विषय है। यहाँ पर मुस्लिम राष्ट्र के आचार-विचार चलेंगे, विधि द्वारा स्थापित भारतीय संविधान नहीं। यह घटना संसद को चुनौती है, जिस प्रकार तृणमूल के विधायक कह रहे हैं, कि मुस्लिम राष्ट्र के कुछ आचार विचार होते हैं।
मगर दूसरी तरफ उसी सूबे की महिला मुख्यमंत्री एक दिन पहले न्याय की निष्पक्षता को लेकर यह कहती हुई दिखाई दी थी कि न्यायालय को अपनी दृष्टि राजनीतिक रूप से निष्पक्ष रखनी चाहिए। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक कार्यक्रम में, जिसमें सीजेआई चंद्रचूड़ भी थे, यह कहा था, “पश्चिम बंगाल में 88 फास्ट ट्रैक अदालतें हैं और जिनमें से केवल 55 केवल महिलाओं के लिए हैं!” ऐसे में ममता बनर्जी को यह भी उत्तर देना चाहिए, कि जिस महिला को उनके विधायक के अनुसार “शरिया की नजर में इंसाफ” दिया गया, तो क्या ऐसी ही फास्ट ट्रैक अदालतें महिलाओं के लिए हैं, जहां पर उन्हें तालिबानी शैली में मारापीटा जाता है? जहां पर उन्हें लोगों की भीड़ के सामने हिंसा का शिकार बनाया जाता है?
क्या एक महिला मुख्यमंत्री को ऐसी औरतों के लिए लग रही तत्काल इंसाफ वाली अदालतें दिखाई नहीं दे रही हैं, जो विधि द्वारा स्थापित फास्ट ट्रैक नहीं हैं, बल्कि गाँव के एक मजहबी विचार द्वारा लगाई जा रही हैं? और जिन्हें उनका विधायक भी समर्थन दे रहा है कि गाँव वालों ने सजा देने के लिए उस सभा को बुलाया था।
भाजपा की मुस्लिम कार्यकर्ता को निर्वस्त्र कर पीटा
हाल ही में एक और ऐसा ही वीडियो बंगाल की भारतीय जनता पार्टी ने जारी किया था जिसमें भाजपा की एक मुस्लिम कार्यकर्ता रोसोनारा खातून कूचबिहार में उनके घर से बाहर निकालकर निर्वस्त्र कर दिया गया था। इस विषय में भी चर्चा नहीं हुई थी।
संदेशखाली में भी पीड़ित महिलाओं को “तत्काल इंसाफ” की चर्चा रही थी। उस कांड में पूरे देश ने देखा था कि कैसे आरोपी को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर ऐसी महिला मुख्यमंत्री ने लगा दिया था, जो महिलाओं के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट होने का दावा करती हैं।
मुख्यमंत्री की दृष्टि उन तत्काल इंसाफ वाली नुक्कड़ अदालतों पर क्यों नहीं जा रही है, जहां पर संविधान को चुनौती देते हुए इंसाफ दिया जा रहा है? सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि इस असंवैधानिक कदम पर, इस असंवैधानिक अदालत पर, इस असंवैधानिक इंसाफ पर, वे तमाम लोग अपना मुंह क्यों सिले हुए हैं, जो कुछ दिन पहले तक संविधान बचाओ का नारा लगा रहे थे।
इस मामले में तो संविधान खतरे में ही नहीं आया है, बल्कि ऐसी अदालत लगाकर और तत्काल इंसाफ देकर संविधान पर जैसे हमला ही बोला गया है। क्योंकि टीएमसी के विधायक तो खुद कह रहे हैं कि वह औरत कुछ असामाजिक गतिविधियों में लिप्त थी और गाँव वालों ने “सलीशी सभा” (कंगारू कोर्ट) बुलाया था, जिससे उसकी सजा तय की जा सके।
अब क्या गाँव वाले सजा तय करेंगे? क्या भीड़ के पंथिक विचारों से लोगों का जीवन चलेगा? प्रश्न कई हैं, मगर दुर्भाग्य बंगाल की हर घटना की तरह यह भी घटना मात्र इसलिए दब जाएगी क्योंकि आज भी कई लोगों का यही मानना है कि ममता ही मोदी को हरा सकती हैं।
ऐसे में महिलाओं के साथ कुछ भी होता रहे, संदेशखाली हो या फिर उत्तर दीनापुर का छोपरा क्षेत्र, महिलाओं की पीड़ा और संविधान को चुनौती जैसे मामले कभी भी शायद एक दिन से ज्यादा नहीं चलेंगे।
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