देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली भीषण गर्मी में जल संकट से जूझी। सर्वोच्च न्यायालय तक को मामले में सुनवाई करनी पड़ी। देश के कई और राज्यों में भी जल संकट की स्थिति गंभीर है। आजादी से पहले दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और बेंगलुरु जैसे महानगरों में पर्याप्त कुएं, तालाब और बावड़ी हुआ करते थे और उनमें पर्याप्त मात्रा में पानी भी होता था। पर बेहिसाब शहरीकरण के कारण कुएं- तालाब सब पट गये और उन पर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गये। हमने भूजल को रिचार्ज करने के नाम पर केवल खानापूरी की। इसी का दुष्परिणाम है देशभर में गहराता जल संकट।
देश में प्रदेशवार जल संकट की बात करें तो मौजूदा वक्त में उत्तर भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के लेकर दक्षिण भारत में तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में पानी की किल्लत है, वहीं पूर्वी भारत में झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोग भी जल संकट से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो जीवनदायिनी नदियों में, झीलों और अन्य जल स्रोतों में बढ़ता प्रदूषण भी जल संकट का प्रमुख कारण है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण बारिश के पैटर्न में बदलाव आ रहा है। अनियमित और कम बारिश व बढ़ते तापमान के कारण जल स्रोत भर नहीं पाते जिससे भूजल का स्तर गिरता जा रहा है और सूखे के हालात पैदा हो रहे हैं।
बढ़ती आबादी पानी की मांग को बढ़ा रही है, जिससे जल संसाधनों पर बोझ बढ़ रहा है। साथ ही औद्योगिक कचरा, तरह-तरह के केमिकल, सीवेज और घरेलू अपशिष्ट जलस्रोतों अथवा उसके आसपास डंप किए जा रहे हैं, जिस कारण जल स्रोत दूषित हो रहे हैं। इससे न केवल पानी की गुणवत्ता खराब हो रही है, बल्कि इन जलस्रोतों से मिलने वाले पानी की मात्रा भी घटती जा रही है। जल संकट के कई कारण हैं जो देश में पानी की कमी को बढ़ावा दे रहे हैं। कृषि, उद्योग और घरेलू उपयोग के लिए भूजल का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। उद्योग धंधों में पानी का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। शहरीकरण के बढ़ते दबाव के चलते भी घरों में पानी की खपत काफी बढ़ गयी है। इस दिशा में हुए अध्ययन चेतावनी दे रहे हैं कि भारत में जल संकट का गंभीर खतरा है।
2050 तक देश में 50 प्रतिशत से ज्यादा जिलों में पानी के लिए हाहाकार मच जाएगा। लोग बूंद-बूंद पानी का तरसने लगेंगे। उस वक्त तक देश में प्रति व्यक्ति पानी की मांग में 30% का इजाफा होने की संभावना है। समझना होगा कि जल परमात्मा का प्रसाद है, इसका संरक्षण करना वर्तमान समय की आवश्यकता है। इसका संरक्षण एवं सही उपयोग हमारे भविष्य के हेतु आवश्यक है। जब तक जल के महत्व का बोध हम सभी के मन में नहीं होगा तब तक सैद्धान्तिक स्तर पर स्थिति में सुधार संभव नहीं है। इसके लिए लोगों को जल को सुरक्षित करने के लिए सही प्रबन्धन के अनुसार कार्य करना होगा।
‘रेन मैन’ के नाम से मशहूर रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक के विशेषज्ञ चेन्नई के डॉ. शेखर राघवन कहते हैं कि देश में गहराता जल संकट कोई एक दिन की समस्या नहीं वरन दशकों के अनियोजित शहरी विकास और जल संरक्षण के प्रति घोर लापरवाही का कुफल है। अभी तक हम जल संकट से निपटने के लिए जो कोशिश कर रहे हैं, वे सिर्फ खानापूर्ति मात्र हैं। वाटर हार्वेस्टिंग में हम अभी कहीं भी नहीं हैं। हम न ही कारगर रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम बना पा रहे हैं और न ही रेन सेंटर। वह बताते हैं कि कुछ समय पहले तक ब्राजील भी पानी के संकट से गुजर रहा था। फिर उसने वाटर स्टोरेज और वाटर हार्वेंस्टिंग के तौर तरीके पर काम किया।
अब बारिश के पानी का सबसे बेहतर तरीके से इकट्ठा कर इस्तेमाल करने के मामले में ब्राजील सबसे आगे हैं। बकौल डॉ. राघवन ब्राजील के बाद सिंगापुर, चीन, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों का नंबर आता है, जहां घरों से लेकर जलाशयों तक में बारिश के पानी का बेहतरीन तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। देश में पानी के संकट से उबरने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। केंद्र और राज्य सरकारों, उद्योग, किसान, नागरिक और सभी हितधारकों को मिलकर काम करना होगा। तभी हम भविष्य होने वाले वाटर वार को रोक पाएंगे।
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