भारतीय सेना लगातार खुद को अपडेट कर रही है और भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को तैयार कर रही है। क्योंकि किसी भी देश की सुरक्षा में उसकी संचार तकनीकों का बहुत बड़ा महत्व होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए इंडियन आर्मी अपनी कम्युनिकेशन टेक्नॉलजी को और अधिक उन्नत बनाने जा रही है। इसके लिए आर्मी ने अगली पीढ़ी की वायरलेस तकनीकों में सहयोग के लिए कई कंपनियों के साथ समझौता किया है।
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रिपोर्ट के मुताबिक, रक्षा मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि मिलिट्री कॉलेज ऑफ टेलीकम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (एमसीटीई), भारतीय सेना और सोसाइटी फॉर एप्लाइड माइक्रोवेव इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग एंड रिसर्च (एसएएमईआर), इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (एमईआईटीवाई) के तहत एक स्वायत्त अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला के बीच यह समझौता किया गया है। इस समझौते पर रक्षा मंत्रालय ने कहा कि ये कार्यक्रम देश की रक्षा और तकनीकी परिदृश्य के लिए इसकी रणनीतिक महत्व को दिखाता है।
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बताया गया है कि एमओयू पर लेफ्टिनेंट जनरल केएच गवास, कमांडेंट एमसीटीई और कर्नल कमांडेंट कोर ऑफ सिग्नल और डॉ. पीएच राव, महानिदेशक समीर ने हस्ताक्षर किए हैं। यह कार्यक्रम एसके मारवाह, समूह समन्वयक एमईआईटीवाई और मेजर जनरल सीएस मान, एवीएसएम, वीएसएम, अतिरिक्त महानिदेशक, आर्मी डिजाइन ब्यूरो, भारतीय सेना के तत्वावधान में आयोजित हुआ था।
इस बीच भारतीय नौसेना ने भी फैसला किया है कि समुद्र में निगरानी के लिए वह पूर्णतया इंडीजीनियस ड्रोन का इस्तेमाल करेगी। इसके तहत जल्द ही इंडियन ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने 4 नए ड्रोन खरीदने जा रही है। इन्हीं ड्रोन्स का इस्तेमाल समुद्री इलाकों की निगरानी करने में किया जाएगा।
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