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भारत नाम से चिढ़ और सांस्कृतिक गौरव से पीड़ा क्यों ?

Published by
सोनाली मिश्रा

विदेशी एक्टिविस्ट और एक तरह का एजेंडा चलाने वाले इस जुगत में लगे रहते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर किस तरह भारत को बदनाम किया जाए। वे यह झूठ स्थापित करने की कोशिश करते हैं कि भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। इस पर बड़े ‘सेलेक्टिव’ रहते हैं। गुरुवार (22 जून 2024) को  सोशल मीडिया पर एक बार फिर ऐसा ही देखने को मिला। भारत नाम से चिढ़ने वाला खेमा सद्गुरु जग्गी वासुदेव की सोशल मीडिया पर एक पोस्ट पर सक्रिय हो गया। सद्गुरु को ट्रोल किया जाने लगा। वजह यही थी कि सद्गुरु ने भारत की बात की थी। लेकिन यह ट्रोलिंग कंपनी भारत को लेकर उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कैसे देख सकती थी?

संविधान में भी लिखा गया है “इंडिया दैट इज भारत!”। लेकिन जैसे ही कोई भारत नाम लेता है, वैसे ही एक बड़े वर्ग को पीड़ा हो जाती है, क्योंकि वे भारत को केवल उस इंडिया के रूप में देखते हैं, जिसका जन्म 1947 में हुआ। उस इंडिया के रूप में नहीं, जिसका उल्लेख बहुत ही गर्व से मेगस्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में किया था। जिसका उल्लेख कई ग्रीक एवं अन्य भाषा के विद्वानों ने किया था। उन्हें उस इंडिया से प्यार है, जिसकी पहचान एक औपनिवेशिक गुलाम की है। भारत जिसका उल्लेख शताब्दियों से होता आ रहा है और जिसका उल्लेख विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है, जैसे –

“उत्तरम् यत् समुद्रस्य हिमाद्रे: चैव दक्षिणम्। वर्षम् तद् भारतम् नाम भारती यत्र संतति:”

उस भारत शब्द की पहचान से अभिव्यक्ति के कथित ठेकेदारों को इस सीमा तक घृणा है कि यदि कोई उसका उल्लेख भी कर देता है, तो उसे ही दोषी ठहरा दिया जाता है कि वे भारत को बांटने का प्रयास कर रहे हैं। दरअसल एनसीईआरटी समिति ने स्कूलों की सभी पाठ्यपुस्तकों में इंडिया शब्द को भारत से बदलने की सलाह दी थी। और उसे लेकर अब सद्गुरु ने एक्स पर यह लिखा कि “हमें अंग्रेजों के चले जाने के बाद ही अपना नाम ‘भारत’ वापस ले लेना चाहिए था। नाम से सब कुछ नहीं होता, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि देश का नाम इस तरह रखा जाए कि वह सभी के दिलों में गूंजे। भले ही राष्ट्र हमारे लिए सब कुछ है, लेकिन ‘इंडिया शब्द का कोई मतलब नहीं है। अगर हम आधिकारिक तौर पर राष्ट्र का नाम बदलने में असमर्थ या अनिच्छुक हैं, तो अब समय आ गया है कि हम कम से कम ‘भारत’ को अपनी दैनिक बोलचाल में शामिल करें। युवा पीढ़ी को पता होना चाहिए कि भारत का अस्तित्व भारत के जन्म से बहुत पहले से है। बधाई @ncert

मगर सद्गुरु इस बात को भूल गए थे कि अभिव्यक्ति की आजादी केवल एक वर्ग विशेष के पास है, जो भारत के विषय में, जो भारत के गौरव के विषय में नकारात्मक लिखते हैं, जो भारत के लोकतान्त्रिक रूप से निर्वाचित प्रधानमंत्री को फासीवादी आदि कह सकते हैं। सद्गुरु को इस बात का तनिक भी भान नहीं था कि उनके द्वारा कही गई यह बात उनके लिए ट्रोलिंग का विषय बन जाएगी।

सद्गुरु की इस पोस्ट के विषय में यूटूबर ध्रुव राठी ने लिखा था कि ‘क्या आप अपना इंडिया विरोधी एजेंडा बंद कर सकते हैं? हर कोई जानता है कि भारत और इंडिया दोनों ही हमारे संविधान में है, और आप राजनीति के लिए बांटो और शासन करो का गंदा खेल खेल रहे हैं।’

इस पर फ्लाइंग बीस्ट के नाम से पोस्ट करने वाले गौरव तनेजा ने एक्स पर पोस्ट लिखा,’आखिर इंटरनेट पर विचारों की विविधता क्यों नही रह सकती है? क्यों कुछ विदेशी इंटरनेट पर हर कंटेन्ट को नियंत्रित करना चाहते हैं।’

दरअसल यहीं पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के इन कथित ठेकेदारों का असली चेहरा दिखाई देता है, कि वे हर उस व्यक्ति की बोलने की आजादी को रौंदने लगते हैं, जो उनके विचारों का न हो, या फिर या कहा जाए कि जो उनके घातक एजेंडे का समर्थन न करे। सद्गुरु की पोस्ट में आखिर भारत विरोधी एजेंडा कहाँ से आ गया?

हाँ, उस इंडिया का अवश्य विरोध है जिसकी पहचान मात्र अंग्रेजों के उपनिवेश के रूप में है। यदि किसी भी देश के कई नाम होते हैं, तो वह उसकी प्राचीनता का संकेत करते हैं, जैसे भारत। भारत का नाम जंबू द्वीप, भारत और ग्रीस आदि देशों से आने वाले यात्रियों की दृष्टि में इंडिया था। मगर यह भी बात सत्य है कि नाम हमेशा वही होना चाहिए, जो उसके सांस्कृतिक बोध को आत्मगौरव के साथ जीवित रखे।

सद्गुरु ने इसी बोध के फलस्वरूप इच्छा प्रकट की थी। इसमें ट्रोलिंग की आवश्यकता नहीं थी और न ही हो सकती थी। परंतु भारत का विरोध करने वाले और मात्र औपनिवेशिक इंडिया को अपनी पहचान बताने वाले वर्ग के लिए सांस्कृतिक बोध और भारत के अस्तित्व का बोध होना ही सबसे बड़ा अपराध है।

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