लोकसभा 2024 के चुनाव सम्पन्न होने के साथ ही अब विश्लेषणों का दौर चल रहा है। जहां भारतीय जनता पार्टी में इस बात को लेकर मंथन जारी है कि उसकी सीटें कम कैसे हुईं, वहीं कांग्रेस की ओर से अजीब सा विश्लेषण किया जा रहा है। कांग्रेस की सोशल मीडिया प्रभारी सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर आँकड़े पोस्ट किए, जिनमें यह लिखा था कि कैसे कई दल इस चुनावी प्रक्रिया में उतरे और उनके कारण इंडी गठबंधन की कुछ सीटें कम हो गईं।
सुप्रिया की पोस्ट थी कि
“महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर जी की VBA और ओवैसी जी की AIMIM ने 6 सीटें BJP की झोली में डालीं. इन सीटों पर जीत के अंतर से ज़्यादा वोट VBA और AIMIM को मिले हैं
इनमें से 1 पर कांग्रेस और 5 पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे) की जीत को हार में बदलने का काम किया गया
अन्यथा MVA (महा विकास अघाड़ी) की महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीट में से 31 नहीं 37 सीट आतीं. और BJP+ 17 नहीं 11 सीटों पर सिमट गई होती!
• यूपी में BJP की संकट मोचक मायावती जी
• महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर जी और ओवैसी जी और फिर उन्होनें एक तालिका भी पोस्ट की थी
महाराष्ट्र में प्रकाश अंबेडकर जी की VBA और ओवैसी जी की AIMIM ने 6 सीटें BJP की झोली में डालीं. इन सीटों पर जीत के अंतर से ज़्यादा वोट VBA और AIMIM को मिले हैं
इनमें से 1 पर कांग्रेस और 5 पर शिव सेना (उद्धव ठाकरे) की जीत को हार में बदलने का काम किया गया
अन्यथा MVA (महा विकास… pic.twitter.com/h8C0s59jet
— Supriya Shrinate (@SupriyaShrinate) June 14, 2024
यह बहुत ही हतप्रभ करने वाली बात है कि कांग्रेस लोकतान्त्रिक प्रक्रियाओं का सम्मान नहीं कर रही है। किसी भी दलीय लोकतंत्र में कोई भी व्यक्ति अपना दल बनाकर चुनाव लड़ सकता है, वह निर्दलीय भी लड़ सकता है। परंतु सुप्रिया श्रीनेत को ऐसा क्यों लगता है कि कथित रूप से भाजपा विरोधी मतों की वह एकमात्र उम्मीदवार है? सुप्रिया श्रीनेत का यह आरोप दूसरे दलों पर लगाना कि वे भाजपा की बी टीम हैं, एकाधिकार एवं वर्चस्ववादी मानसिकता को प्रदर्शित करता है। यह ऐसा ही है कि शेष अन्य दल समाप्त हो जाएं, एवं मात्र कांग्रेस ही शेष रहे और उसका कहने के लिए कोई विरोधी हो। कांग्रेस शक्ति का केंद्र स्वयं को मानकर शक्ति के विभाजन से कतराती है।
सुप्रिया श्रीनेत इन दलों को भाजपा की बी टीम होने के लिए कोस रही हैं, परंतु वे यह बताने के लिए तैयार नहीं हैं कि आखिर वे कौन से कारण थे जिनके कारण प्रकाश अंबेडकर की पार्टी ने उनके गठबंधन से नाता तोड़ा था? और सबसे बढ़कर दलितों की आवाज उठाने वाले चंद्रशेखर को नगीना से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में क्यों उतरना पड़ा..?
सुप्रिया का निशाना दलित और मुस्लिम समुदाय के दलों पर है। ऐसे में प्रश्न यह भी उठता है कि क्या सुप्रिया कांग्रेस को दलित एवं मुस्लिम राजनीति का केंद्र मानती है? क्या उन्हें लगता है कि किसी भी अन्य दल को चुनाव लड़ने का अधिकार ही नहीं है? इस पर प्रोफेसर दिलीप मण्डल ने महाराजगंज का पिछली बार का लोकसभा चुनाव परिणाम साझा करते हुए एक्स पर लिखा कि “अगर बीजेपी और सपा ने कैंडिडेट न दिया होता तो सुप्रिया जी 2019 में महाराजगंज से लोकसभा चुनाव जीत जातीं!”
यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश के महाराजगंज से वर्ष 2019 में सुप्रिया को बहुत भारी पराजय मिली थी। तो क्या सुप्रिया जैसी नेता यह चाहती हैं कि उनके सामने कोई प्रतिस्पर्धी ही न रहे? यह कैसी तानाशाही मानसिकता है?
लोगों ने सुप्रिया श्रीनेत से प्रश्न किए कि यदि ऐसा है तो ओडिशा में क्या कांग्रेस ने भाजपा की मदद की? एक यूजर ने लिखा कि लोकतंत्र का ढोल पीटने वाली कांग्रेस के ढोंग का ढोल यहीं पर फट जाता है, जब कांग्रेसी यह इच्छा रखते हैं कि पूरे भारत में दो पार्टियों के अतिरिक्त और कोई चुनाव नहीं लड़े।
अपने आप को समाजवादी, अम्बेडकरवादी कहने वाले इमरान शकील खान ने लिखा कि आप क्या चाहतीं हैं कि दलित और मुसलमानों की पार्टियाँ चुनाव न लड़े कांग्रेस की बंधुआ मज़दूर रहें। 2019 में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के कारण सपा बसपा गठबंधन 30 सीटें हारा किसी ने कांग्रेस को बी टीम कहा?
दरअसल कांग्रेस यही चाहती है कि कोई उसके सामने हो ही नहीं। या फिर ऐसा वातावरण बनाया जा रहा है, जिसमें कांग्रेस को ही एकमात्र राजनीतिक विकल्प बनाकर खड़ा कर दिया जाए? क्योंकि दलित चेहरे चंद्रशेखर के साथ किया गया व्यवहार तो अभी ताजा ही है। दलितों के विषय में यह विमर्श बनाया जा रहा है कि उनका नेतृत्व तब तक बेकार है जब तक वे राष्ट्रवादी दलों को नुकसान नहीं पहुंचाने में सफल होते हैं। इसी संबंध में सूरज कुमार बौद्ध ने लिखा कि यदि राहुल गांधी प्रधानमंत्री नहीं बन पा रहे हैं, उसका दोष दूसरे दलों को क्यों देना? हमने कांग्रेस का ठेका लिया है क्या?
बहन जी, बालासाहेब, ओवैसी.. कोई भी चुनाव ना लड़े। क्यों? संसदीय लोकतंत्र का मतलब जानती हैं कि नहीं? सुप्रिया को यह नहीं भूलना चाहिए कि आखिर आम्बेडकर जी के साथ कांग्रेस ने किस प्रकार की राजनीति खेली एवं कांग्रेस के अतिरिक्त और कोई राजनीतिक विकल्प इस देश में उभरकर न आ पाए, इसके लिए हरसंभव प्रयास किए गए और अभी तक किए जा रहे हैं। और बसपा प्रमुख मायावती पर हमला करने वालों के साथ मिलकर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा था, एक बार भी गेस्टहाउस कांड पर कांग्रेस ने चुनावों के दौरान बात नहीं की। सुप्रिया श्रीनेत का एक्स पर पोस्ट उसी तानाशाही एवं वर्चस्ववादी मानसिकता का उदाहरण है, जिसमें कॉंग्रेस एकछत्र राज्य चाहती है, लोकतान्त्रिक विकल्प नहीं!
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