नई दिल्ली । दिल्ली की सड़कों से लगभग 1,000 क्लस्टर बसें 19 जून को हटाई जा सकती हैं, क्योंकि उनके कॉन्ट्रैक्ट की अवधि समाप्त हो रही है। यह कदम न केवल बस सेवा में बाधा उत्पन्न करेगा बल्कि इन बसों के कंडक्टरों के लिए भी बड़ी चिंता का विषय बन गया है, जिनकी नौकरियां खतरे में पड़ गई हैं।
संकट में परिवहन व्यवस्था
कॉन्ट्रैक्ट की समाप्ति और बसों के हटने से दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा। दिल्ली के परिवहन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि वे स्थिति को संभालने के लिए वैकल्पिक उपायों पर विचार कर रहे हैं। लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बसों के हटने से सेवा में निश्चित ही रुकावट आएगी। इस पूरी स्थिति ने न केवल बस कंडक्टरों के जीवन को प्रभावित किया है, बल्कि दिल्ली के लाखों नागरिकों की दैनिक जीवनचर्या को भी संकट में डाल दिया है।
सरकार की प्रतिक्रिया
दिल्ली सरकार ने इस मुद्दे पर अभी तक कोई स्पष्ट वक्तव्य नहीं दिया है। हालाँकि, यह स्पष्ट है कि यदि समय रहते समाधान नहीं निकाला गया तो दिल्ली के यातायात पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। बसों के कंडक्टरों की हड़ताल और उनका विरोध भी लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे स्थिति और जटिल हो गई है।
हाईकोर्ट ने दी राहत
इस बीच, दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस संकट को कुछ हद तक टालते हुए एक राहत दी है। अदालत ने संभावित बसों की कमी को रोकने के लिए क्लस्टर बसों के परमिट 15 जुलाई तक बढ़ा दिए हैं। इस फैसले से दिल्ली की सड़कों पर सार्वजनिक परिवहन की कमी का तत्काल खतरा टल गया है। न्यायालय ने दिल्ली सरकार को इस मामले पर याचिकाओं का जवाब देने के लिए 15 दिन का समय दिया है और अगली सुनवाई 15 जुलाई को निर्धारित की है।
कंडक्टरों की हड़ताल
वहीं कंडक्टरों ने अपनी नौकरी बचाने के लिए हड़ताल शुरू कर दी है। उनकी मांग है कि वे वर्षों से जिस सेवा में लगे हुए हैं, उसमें उन्हें बने रहने दिया जाए। एक कंडक्टर ने बताया, “हमने अपनी जिंदगी का आधा समय इन बसों में गुज़ारा है। हमें हटाना गलत है और ये हमारे भविष्य के लिए खतरनाक है। हमने इन बसों में दिन-रात मेहनत की है। हम चाहते हैं कि हमारी मेहनत को सराहा जाए और हमें नौकरी से न निकाला जाए।”
आगे क्या..?
दिल्ली में 1,000 क्लस्टर बसों का हटना और कंडक्टरों की नौकरी पर मंडराता संकट न केवल परिवहन व्यवस्था के लिए चुनौतीपूर्ण है, बल्कि यह उन हजारों परिवारों के लिए भी एक गंभीर मुद्दा है जो इन नौकरियों पर निर्भर हैं। वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला अस्थायी राहत जरूर है, लेकिन इसके बाद भी यह सवाल बना हुआ है कि क्या 15 जुलाई के बाद भी बसों का संचालन जारी रह पाएगा। कंडक्टरों की हड़ताल और उनकी मांगों पर सरकार का क्या रुख होगा, यह भी देखने वाली बात होगी।
साथ ही यदि कंडक्टरों की मांगों को नहीं सुना गया और समय रहते कोई समाधान नहीं निकला, तो दिल्ली की सड़कों पर परिवहन की स्थिति और भी बिगड़ सकती है। यह देखना बाकी है कि सरकार और परिवहन विभाग इस संकट को कैसे हल करते हैं और कंडक्टरों की नौकरियां बचाने के लिए क्या कदम उठाते हैं।
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