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आआपा ने उभारा अलगाववाद!

लोकसभा चुनाव में पंजाब में दो खालिस्तानी समर्थकों की जीत से सवाल उठ रहे हैं कि क्या आआपा के शासन काल में पंजाब में अलगाववादी ताकतें फिर सिर उठा रही हैं? क्या प्रदेश की शांति को पलीता लगाया जा रहा है

by राकेश सैन
Jun 14, 2024, 06:21 am IST
in विश्लेषण, पंजाब
खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा की जीत के संकेत क्या?

खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा की जीत के संकेत क्या?

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इस बार लोकसभा चुनाव में पंजाब से दो निर्दलीय प्रत्याशियों, अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा ने जीत हासिल कर पूरे देश का ध्यान खींचा है। दोनों खालिस्तानी विचारधारा के समर्थक हैं। असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपाल ने खडूर साहिब सीट से 1.97 लाख और सरबजीत सिंह खालसा ने फरीदकोट से 70,000 वोटों से जीत दर्ज की है। जैसा कि डर था, इनकी जीत से अलगाववादी माहौल लौटने के संकेत मिलने लगे हैं।

प्रदेश की राजनीति की दिशा क्या?

अमृतपाल की जीत के बाद उसकी मां ने 6 जून तक लोगों से जीत की खुशी न मनाने की अपील की, क्योकि 6 जून, 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खालिस्तानी आतंकियों के विरुद्ध ‘आपरेशन ब्लू स्टार’ अभियान चलाया था। खालिस्तानी इस दिन को ‘घल्लूघारा (नरसंहार) दिवस’ के तौर पर मनाते हैं। इस दिन श्रीहरिमंदिर साहिब में सरेआम देश विरोधी नारेबाजी व तकरीरें होती हैं। ये सब इस ओर संकेत करते हैं कि आने वाले समय में प्रदेश की राजनीति किधर मुड़ने वाली है।

इसी तरह, सरबजीत सिंह खालसा इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षक बेअंत सिंह का बेटा है। उसने दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा, पर सफलता उसे इस बार मिली है। सरबजीत की मां बिमल कौर भी रोपड़ से सांसद रह चुकी हैं। सरबजीत के फरीदकोट सीट से चुनाव लड़ने के पीछे कारण 2015 में क्षेत्र के कोटकपूरा व बरगाड़ी में श्रीगुरुग्रंथ साहिब की बेअदबी और उससे उपजे आक्रोश को बताया जा रहा है।

2017 में कांग्रेस और 2022 में आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे को उठाते हुए चुनाव लड़ा, लेकिन अपना वादा पूरा नहीं किया। इन घटनाओं की आड़ में अलगाववादी ताकतों ने इस इलाके के लोगों में इतनी कट्टरता भर दी कि क्षेत्र के लोगों ने खुद सरबजीत सिंह खालसा को उनका प्रतिनिधित्व करने का न्योता दे दिया। ऐसा नहीं है कि पंजाब में पहली बार कोई खालिस्तानी समर्थक जीता है। ‘आपरेशन ब्लू स्टार’ के समय सिमरनजीत सिंह मान फरीदकोट के एसएसपी थे। लेकिन वह इस्तीफा देकर अलगाववादियों के साथ जुड़ गए।

मान ने 1984-89 तक जेल में रहते हुए अकाली दल (अमृतसर) नाम से पार्टी बनाई और 1989 में तरनतारन लोकसभा सीट से चुनाव जीते। उनके छह अन्य साथी भी लुधियाना, रोपड़, फरीदकोट, फिरोजपुर, संगरूर व बठिंडा से चुनाव जीते थे। 1999 में मान संगरूर से सांसद बने। इसी तरह, अतिंदरपाल सिंह ने जेल से चुनाव लड़ा और 1989-91 तक सांसद रहे, फिर अकाली दल (खालिस्तानी) पार्टी बनाई। चुनाव प्रचार के दौरान जालंधर में उनकी पार्टी का नारा था, ‘तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें खालिस्तान दूंगा।’

बेशक, पंजाब में अलगाववादी ताकतें फिर से पैर पसार रही हैं। ऐसे में आआपा के रूप में उन्हें सहारा मिला है। अरविंद केजरीवाल के खालिस्तनियों से संपर्क की बात छिपी नहीं है। उन पर विधानसभा चुनाव में खालिस्तानियों से पैसे लेने की खबरें आई थीं। प्रतिबंधित आतंकी संगठन एसएफजे के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू ने तो खुलेआम आआपा को पंजाब विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए पैसे देने का दावा किया है। अब दो खालिस्तानी समर्थकों की जीत से प्रश्न उठ रहा है कि क्या आआपा के राज में अलगाववादियों को खाद-पानी मिल रहा है?

आआपा के लिए खतरे की घंटी

इस चुनाव ने आआपा को धरती पर ला पटका है। आआपा जिस तेजी से राज्य की राजनीति में आई थी, उसका ग्राफ उसी तेजी से गिर रहा है। 2022 में आआपा ने पंजाब विधानसभा की 117 में से 92 सीटें जीती थीं। इस बार उसे 13 में से मात्र 3 लोकसभा सीटों, संगरूर, आनंदपुर साहिब और होशियारपुर में ही जीत मिली। विधानसभा चुनाव में आआपा को 42 प्रतिशत वोट मिले थे, जो इस लोकसभा चुनाव में घटकर 26 प्रतिशत पर पहुंच गए। चुनाव में मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने पांच मंत्रियों और इतने ही विधायकों को चुनाव में उतारा था, लेकिन केवल एक मंत्री और एक विधायक ही चुनाव जीत सका। तो क्या पंजाब की जनता ने आआपा की मुफ्तखोरी की राजनीति को नकार दिया है?

आआपा ने दिल्ली, हरियाणा और चंडीगढ़ में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, पर पंजाब में दोनों एक-दूसरे के विरुद्ध चुनाव लड़े। पहली बार राज्य में बहुकोणीय मुकाबला हुआ और कांग्रेस आआपा के वोट बैंक में सेंध लगाने में सफल रही। कांग्रेस को 7 सीटें मिलीं, जो पिछली बार से एक कम है। वहीं, शिअद को एक सीट मिली और उसका वोट प्रतिशत 27.45 प्रतिशत से घटकर 13.42 प्रतिशत हो गया। पार्टी 10 सीटों पर जमानत भी नहीं बचा सकी। भाजपा गठबंधन कोटे से राज्य में 3 सीटों पर चुनाव लड़ती थी, लेकिन इस बार अकेले चुनाव लड़ी।

पिछली बार भाजपा को दो सीटें मिली थीं, लेकिन इस बाद उसका खाता नहीं खुला। हालांकि भाजपा का वोट 9.63 प्रतिशत से बढ़ कर 18.56 प्रतिशत हो गया है। जालंधर, गुरदासपुर और लुधियाना में भाजपा ने कांग्रेस को सीधी टक्कर दी और 6 सीटों पर तीसरे स्थान पर रही। प्रत्येक सीट पर उसे औसतन लगभग दो लाख वोट मिले हैं।

इस बार भाजपा को 25,00,877 वोट मिले, जो अकाली दल (बादल) से 6,92,040 वोट अधिक हैं। यह स्थिति तब है, जब कथित किसान आंदोलन के नेताओं ने भाजपा प्रत्याशियों के प्रचार में व्यवधान डाले। इस कारण भाजपा का चुनाव प्रचार बहुत प्रभावित हुआ। किसान नेताओं ने भाजपा की छवि किसान विरोधी के तौर पर पेश की। हालांकि पंजाब में प्रत्येक फसल को एमएसपी पर खरीदने के बावजूद भाजपा ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित नहीं कर पाई। पंजाब की 37.52 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है। ऐसे में पार्टी के बूथ लगने या पोलिंग एजेंट की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

2020 में पहली बार जब किसान आंदोलन हुआ था, तब शहरी और ग्रामीण इलाकों से इसे समर्थन मिला था। लेकिन इस बार शहरी इलाकों के लोगों ने इसमें रुचि नहीं ली, क्योंकि लगभग सड़क और रेल मार्ग बाधित रहने से कारोबारियों को बहुत नुकसान हुआ और लोगों परेशानी हुई। इस कारण पंजाब के शहरी और ग्रामीण इलाकों में खाई बढ़ गई, जो इस चुनाव में स्पष्ट दिखी। कांग्रेस को कथित किसान आंदोलन का लाभ मिला।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर अकाली दल और भाजपा मिलकर चुनाव लड़तीं तो चुनाव परिणाम चौंकाने वाले होते। लुधियाना, फिरोजपुर, पटियाला, अमृतसर में अकाली दल (बादल) और भाजपा को मिले वोटों को जोड़ दिया जाए, तो वह विजेता उम्मीदवार से अधिक हैं। गठजोड़ का लाभ दूसरी सीटों पर भी पड़ना तय था। बहरहाल, अमृतपाल सिंह और सरबजीत सिंह खालसा के रूप में अलगाववादी ताकतों को दो चेहरे मिल चुके हैं। इनके उभार के बाद अब देखना है कि राज्य में अलगाववादी एजेंडा क्या शक्ल लेता है।

Topics: किसान नेताआपरेशन ब्लू स्टारश्रीगुरुग्रंथ साहिबOperation Blue StarYou give me your voteSri Guru Granth SahibI will give you Khalistanअकाली दलAmritpal in Dibrugarh jailAkali DalGhalugharaपाञ्चजन्य विशेषfarmer leaderतुम मुझे वोट दोमैं तुम्हें खालिस्तान दूंगाडिब्रूगढ़ जेल में बंद अमृतपालघल्लूघारा
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