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देश विरोधी विचार जमा रहा जड़

18वीं लोकसभा के लिए आरा और काराकाट से दो वामपंथी सांसद चुने गए हैं। स्थानीय देशभक्त जनता को आशंका है कि आने वाले दिनों में एक बार फिर से यह क्षेत्र लाल आतंक से ग्रस्त हो सकता है

by प्रो. आतिश पाराशर
Jun 14, 2024, 03:23 pm IST
in विश्लेषण, बिहार
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इस बार बिहार में लोकसभा चुनाव के परिणाम चौंकाने वाले रहे। भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को 29 सीटों पर सफलता मिली है। इनमें भाजपा और जदयू को 12-12 और लोक जनशक्ति (रामविलास) को पांच सीटें मिली हैं। 2019 में राजग को 39 सीटें मिली थीं। यानी इस बार राजग को 10 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) को चार, कांग्रेस को तीन और माकपा (माले) को दो सीटें मिली हैं। पूर्णिया से निर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादव जीते हैं। जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर थी, वहां भाजपा ने कांग्रेस को बड़े अंतर से धूल चटाई है। केवल सासाराम अपवाद रहा। चुनाव परिणाम यह भी बता रहा है कि स्थानीय उम्मीदवारों और क्षेत्रीय भावनाओं पर थोड़ा और ध्यान दिया जाता तो भाजपा का पांच सीटों का नुकसान नहीं होता।

नीतीश कुमार के जदयू को 12 सीटों पर सफलता मिली है। इसके पीछे दो कारण रहे-एक, राज्य सरकार द्वारा महिलाओं को आरक्षण देना और दूसरा भाजपा के साथ गठबंधन करना। यदि जदयू और भजपा में गठबंधन नहीं होता तो परिणाम कुछ और ही होते। सबसे मजबूत स्थिति में चिराग पासवान की पार्टी रही, जिसने 100 प्रतिशत सफलता पाई। यह उनकी मजबूत दलित मतों पर पकड़ का ही नतीजा है। चिराग दलित मतदाताओं को राजग के साथ जोड़ने में भी सफल रहे।

लालू यादव और तेजस्वी यादव ने टिकट के बंटवारे में गठबंधन के साथ जो मनमानी की, उन्हें उसका खामियाजा भुगतना पड़ा। ये पिता-पुत्र लोकसभा चुनाव की आड़ में विधानसभा की तैयारी करना चाहते थे, लेकिन इनकी मंशा पूरी नहीं हुई। उधर माकपा (माले) ने आरा और काराकाट में जीत दर्ज कर नए समीकरण का संकेत दिया है। आरा में माकपा (माले) के सुदामा प्रसाद ने विकास पुरुष के रूप में विख्यात केंद्रीय मंत्री आर. के. सिंह को हरा कर सबको चौंका दिया। आरा और काराकाट में जीत हासिल कर माकपा (माले) ने इस क्षेत्र में एक बार फिर से अपने लाल झंडे की उपस्थिति का एहसास कराया।

एक समय था जब यह लाल झंडा जातीय और वर्ग संघर्ष का प्रतीक हुआ करता था और इसने अगड़ों में भी कई जातीय संगठनों की नींव रखवाई। वामपंथी तत्वों ने लंबे समय तक इस क्षेत्र को अशांत रखा। काफी प्रयासों के बाद इन तत्वों के वर्चस्व को तोड़ा गया था, लेकिन इंडी गठबंधन ने अपने साथ लेकर इन्हें एक बार फिर से फलने-फूलने का अवसर दे दिया है। लंबे समय बाद बिहार में उग्र वामपंथी विचारधारा के दो सांसद चुने गए हैं।

आम लोगों का मानना है कि दो सांसदों के जीतने से नक्सली एक बार फिर से अपने पैर पसार सकते हैं, जो न इस क्षेत्र के लिए ठीक होगा और न ही भारत के लिए। लोगों की यह आशंका बेबुनियाद नहीं है। जिन लोगों ने इन तत्वों को झेला है, इनकी हरकतों को देखा है, वे चिंतित हैं। उनकी इस चिंता को दूर करने का काम शासन-प्रशासन का है। उम्मीद है कि सरकार ऐसे तत्वों से आम लोगों की रक्षा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेगी।
(लेखक दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में प्राध्यापक हैं)

Topics: National Democratic Alliance (NDA)Independent candidate Pappu Yadavnitish kumarनीतीश कुमारराष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधनजदयू और भजपानिर्दलीय प्रत्याशी पप्पू यादवJDU and BJP
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