95 फीसदी आबादी वाला अजरबैजान दुनिया का एक ऐसा मुस्लिम देश है, जहां आज भी हिंदू धर्म की प्राचीन परंपरा जीवंत है। अजरबैजान की राजधानी बाकू में ऐसा मंदिर है, जहां दर्शन के लिए लोग ईरान से आते हैं। इस मंदिर को ज्वाला मंदिर और आतेशगाह कहते हैं। इस मंदिर में सालों से एक ज्योत जल रही है, इसलिए इसे टेंपल ऑफ फायर कहा जाता है। मंदिर की इमारत प्राचीन किले जैसी है, लेकिन इसकी छत हिंदू मंदिर जैसी ही है, जिस पर त्रिशूल को स्थापित किया गया।
इस मंदिर का इतिहास 300 साल पुराना बताया जा रहा है। हिंदू इसे इसे मां दुर्गा का पवित्र स्थान मानते हैं। अप्रैल 2018 में पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी अजरबैजान की तीन दिवसीय यात्रा के दौरान इस मंदिर में गई थीं। यह अजरबैजान में किसी भारतीय विदेश मंत्री की पहली यात्रा थी। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर हिंदुओं का बड़ा तीर्थस्थल है। इसका निर्माण 18वीं सदी में हुआ है। हालांकि, इस मंदिर में किसी देवी की मूर्ति नहीं है, लेकिन मंदिर के बीचो-बीच जल रही एक अखंड ज्योति की पूजा होती है। ईरान के पारसी लोग भी इस मंदिर में उपासना करने आते हैं। पारसियों का मानना है कि यह एक पारसी मंदिर था। हालांकि, ऐतिहासिक साक्ष्यों से यह पता चलता है कि पहले इस मंदिर में भारतीय पुजारी हुआ करते थे, जो यहां प्रतिदिन पूजा-पाठ करते थे।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सैकड़ों साल पहले भारतीय कारोबारी इस रास्ते से होकर जाते थे। इस दौरान उन लोगों ने इस मंदिर को बनवाया था। वहीं, इतिहासकारों की मानें तो इसे बुद्धदेव नाम के एक व्यक्ति ने बनाया था। वह हरियाणा के कुरुक्षेत्र का रहने वाला था। एक अन्य शिलालेख के मुताबिक, उत्तमचंद व शोभराज ने इस मंदिर के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी।
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