इंडी गठबंधन ने इस लोकसभा चुनाव में पूरी ताकत लगा दी फिर भी भाजपा नीत एनडीए गठबंधन को सरकार बनाने से नहीं रोक सका। चुनाव परिणाम आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। उस समय उनके चेहरे पर हंसी थी, लेकिन इस हंसी के पीछे गठबंधन की गांठ कितनी ढीली है इसे भी समझना होगा। चुनाव परिणाम के बाद ताली पीटने वालों के दिल में कितनी कसक है वह चुनाव से पहले ही दिख चुकी है।
बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के कुछ नेताओं ने कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता पर सार्वजनिक रूप से सवाल उठाए। गठबंधन के सहयोगियों की ओर से न्याय योजना की आलोचना की गई। विपक्ष की एकता कितने दिनों तक चलेगी, यह भी बड़ा सवाल है क्योंकि समाजवादी पार्टी (सपा) के नेताओं ने कांग्रेस की न्याय योजना को अव्यावहारिक बताया था। इससे पार्टी की आर्थिक नीतियों पर संदेह उत्पन्न हुआ।
राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिकता कानून (सीएए) जैसे मुद्दों पर भी विपक्ष की एकता दिखने की संभावना शून्य है क्योंकि पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के नेताओं ने इन मुद्दों पर कांग्रेस से अलग बयान दिए।
राज्य के स्तर पर असहमति तो है ही। महाराष्ट्र में सीट बंटवारे को लेकर कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच मतभेद रहे, जिससे चुनावी रणनीति प्रभावित हुई। अब दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने घोषणा कर दी है कि वह अकेले विधानसभा चुनाव लड़ेगी।चुनाव से पहले इंडी गठबंधन में एक नहीं, प्रधानमंत्री पद के कई दावेदार थे। नेतृत्व का विवाद थमेगा नहीं। दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कुछ नेताओं ने राहुल गांधी के नेतृत्व पर तीखी टिप्पणियां की थीं, जिससे कांग्रेस की छवि पर असर पड़ा। अरविंद केजरीवाल का अपनी ही पार्टी के नेताओं से नहीं बनी तो दूसरी पार्टी के नेताओं से कैसे बनेगी? अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा को लेकर अण्णा हजारे भी सचेत कर चुके हैं। उन्होंने तो चुनाव के दौरान यहां तक कह दिया था कि जिन लोगों के पीछे ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) पड़ी है उन्हें वोट न दें। अरविंद केजरीवाल के जेल में रहते उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल ने इंडी गठबंधन का मंच जरूर साझा किया, लेकिन पंजाब में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच छत्तीस का आंकड़ा रहा। पंजाब में दोनों धुर-विरोधी रहे। अब दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी अकेले ही चुनाव लड़ेगी।
संवदेनशील मुद्दों पर विपक्ष एकमत नहीं होता है। तमिलनाडु में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) के नेताओं ने कुछ संवेदनशील मुद्दों पर बयान दिए, जिससे कांग्रेस को रक्षात्मक मुद्रा अपनानी पड़ी। इन घटनाओं ने विपक्षी गठबंधन की एकता पर प्रश्नचिह्न लगाए।
कांग्रेस जहां ममता बनर्जी के साथ गठबंधन की कोशिश कर रही थी वहीं ममता ने उसे सीधे चुनौती दे दी। बहरामपुर में कांग्रेस के बड़े नेता अधीर रंजन चौधरी के खिलाफ पूर्व क्रिकेटर यूसुफ पठान को उतारा गया। अधीर चुनाव हार गए और वह भी 85 हजार से ज्यादा वोटों से। इसके बाद अधीर रंजन चौधरी की झुंझलाहट भी मीडिया में सामने आई। चुनाव परिणाम के बाद ममता बनर्जी का बयान आया कि उन्होंने विपक्षी दलों के सभी नेताओं से बात की, कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी मैसेज भेजा, लेकिन राहुल की तरफ से कोई जवाब नहीं आया। ऐसे में कांग्रेस तृणमूल को कैसे साधेगी यह बड़ा सवाल होगा। कांग्रेस और तृणमूल तो चुनाव से पहले ही साथ नहीं थे और न ही चुनाव में तो अब चुनाव के बाद कैसे साथ होंगे? एक राष्ट्रवादी पार्टी के विरोध में उपजा इंडी गठबंधन शुरुआत से ही उलझा हुआ है। इस गठबंधन की गांठ कितनी मजबूत है यह आने वाले दिन बताएंगे।
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