प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की चुनावी जीत पर दुनियाभर के नेताओं ने बधाई संदेश भेजे। इस क्रम में ताइवान के राष्ट्रपति चिंग ते लाई ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से मोदी को बधाई दी। उन्होंने लिखा, “चुनाव में जीत के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मेरी हार्दिक बधाई। हम तेजी से बढ़ती ताइवान-भारत साझेदारी को बढ़ाने, व्यापार, प्रौद्योगिकी और अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग का विस्तार करने के लिए तत्पर हैं ताकि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और समृद्धि में योगदान दिया जा सके।”
प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस संदेश का जवाब देते हुए लिखा, “चिंग ते लाई, आपके गर्मजोशी भरे संदेश के लिए धन्यवाद। मैं पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक और तकनीकी साझेदारी की दिशा में काम करते हुए और भी घनिष्ठ संबंधों की आशा करता हूं।”
ताइवान और भारत के बीच इस प्रकार की बधाई संदेशों की अदला-बदली ने चीन को भड़का दिया। चीन ने आधिकारिक बयान जारी कर भारत को उसकी “वन चाइना पॉलिसी” की याद दिलाई और ताइवान के अधिकारियों की “राजनीतिक चालों” का विरोध करने की सलाह दी। चीन के अनुसार, ताइवान उसका एक विद्रोही किंतु अभिन्न प्रांत है और इसे चीन के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए, चाहे इसके लिए बल प्रयोग ही क्यों न करना पड़े।
चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता माओ निंग ने इन संदेशों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “चीन ने इस पर भारत के समक्ष विरोध दर्ज कराया है।” हालांकि, भारत ने इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी, लेकिन अमेरिका ने इस बहस में शामिल होकर चीन को करारा जवाब दिया।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने एक सवाल के जवाब में कहा, “दो विदेशी नेताओं का एक-दूसरे को इस प्रकार के बधाई संदेश देना राजनयिक शिष्टाचार का हिस्सा है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे संदेश सामान्य रूप से कूटनीतिक सौहार्द्र का हिस्सा होते हैं और इसमें किसी प्रकार की राजनीतिक चाल नहीं होती।
इस घटनाक्रम ने अंतरराष्ट्रीय राजनीति के क्षेत्र में एक नया मोड़ ला दिया है, जिसमें ताइवान और भारत के बीच घनिष्ठ संबंधों की संभावना नजर आ रही है। वहीं, चीन ने भी अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है कि वह ताइवान के किसी भी प्रकार के स्वतंत्रता के प्रयासों का कड़ा विरोध करेगा। अमेरिका का इस मामले में हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि वह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपनी उपस्थिति और प्रभाव को बनाए रखने के लिए सतर्क है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में भारत, ताइवान और चीन के बीच संबंधों का क्या स्वरूप बनता है और अंतरराष्ट्रीय राजनीति में यह मामला कितना महत्वपूर्ण बनता है। फिलहाल, यह स्पष्ट है कि मोदी की जीत पर ताइवान की बधाई और चीन की प्रतिक्रिया ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक नया संवाद शुरू कर दिया है।
टिप्पणियाँ