हाल में भारतीय शेयर बाजार न केवल आर्थिक और व्यापारिक, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी खबरों में रहा है। यह चर्चा भी चलाई गई कि ‘बाजार गिर रहा है।’ इससे व्यापक रूप से यह अटकलें लगाई जाने लगीं कि बाजार को चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की हार की अनुमान है और नई सरकार के संभावित धीमे सुधारों से बाजार में घबराहट है। यह एक आधार हो सकता है, क्योंकि शेयर बाजार इसका संकेतक है कि भविष्य में क्या होने की संभावना है। यह बाजार की गतिविधियों और मूल्यांकन पर आधारित होता है। इसलिए यदि बाजार को डर है कि प्रधानमंत्री मोदी दोबारा सत्ता में नहीं लौटेंगे तो जाहिर है कि जो आर्थिक सुधार हो रहे है, उन्हें झटका लगेगा।
नई सरकार के कार्यभार से नीतिगत स्थिरता भी प्रभावित होगी। इसमें एक अस्थिर राजनीतिक गठबंधन का डर भी शामिल है, क्योंकि स्थिरता और सुधारों पर जोर देने के लिए किसी भी पार्टी के पास पूर्ण बहुमत नहीं होगा। इसलिए सुनियोजित तरीके से यह अफवाह फैलाई गई कि ‘लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री की हार की उम्मीद में बाजार गिर रहा है।’ लेकिन यह सच नहीं है। शेयर बाजार में अस्थिरता मोदी के चुनाव हारने के डर के कारण नहीं है। बाजार के बुनियादी सिद्धांतों और बाजार में नरमी के कारणों पर गहराई से विचार करने पर अलग ही तस्वीर सामने आती है।
बाजार को पूरा विश्वास
हालांकि शेयर बाजार गिरावट के बाद संभला और बेंचमार्क सूचकांकों से आगे 5 खरब अमेरिकी डॉलर के बाजार पूंजीकरण तक पहुंच गया। इससे पहले निफ्टी ने 10 अप्रैल, 2024 को 22,794 की नई ऊंचाई को छुआ था। यह भाजपा की जीत और मोदी के सत्ता में वापस आने की प्रत्याशा में था। न केवल भारतीय निवेशक और समाज का एक वर्ग, जिसे दूसरा पक्ष ‘भक्त’ या ‘अंधभक्त’ कहता है, बल्कि वैश्विक निवेशक भी भाजपा के स्पष्ट बहुमत के साथ चुनाव जीतने को लेकर आश्वस्त हैं। वैश्विक निवेशकों में फंड हाउस, पेंशन फंड, हेज फंड आदि शामिल हैं।
चुनाव प्रक्रिया शुरू होने से पहले बाजार में तेजी और नई ऊंचाई को छूने के पीछे मूल कारण था प्रधानमंत्री मोदी और उनके आर्थिक एजेंडे पर बाजार का विश्वास, जिसे भारत की आर्थिक वृद्धि को आगे बढ़ाने के लिए ‘मोदीनॉमिक्स’ कहा जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय अर्थव्यवस्था 2014 में कमजोर पांच अर्थव्यवस्थाओं से 2023 में दुर्जेय पांच अर्थव्यवस्थाओं में बदल गई। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना, मेक इन इंडिया, एक जिला-एक उत्पाद, स्टार्टअप इंडिया और वैश्विक निवेशक समुदाय तक पहुंच जैसी मोदी की प्रमुख पहलों ने परिणाम दिए हैं। इससे भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेशकों का विश्वास बढ़ा है।
पीएलआई योजना के कारण बढ़ते निर्यात और वैश्विक निर्माताओं द्वारा अपनी विनिर्माण सुविधाओं को चीन से भारत में स्थानांतरित करने के अपेक्षित परिणाम मिले हैं। वर्तमान सरकार ने बुनियादी ढांचे में सार्वजनिक निवेश में उल्लेखनीय वृद्धि करके वाजपेयी सरकार द्वारा लागू की गई कैपेक्स संचालित विकास रणनीति को जारी रखा। यह सड़क नेटवर्क, राष्ट्रीय राजमार्गों के विकास, फ्लाईओवर और एक्सप्रेस-वे के निर्माण, रेलवे पटरियों के विद्युतीकरण व ब्रॉडगेजिंग, कश्मीर और उत्तर-पूर्व को जोड़ने के लिए रेलवे नेटवर्क के विस्तार, उड़ान योजना के तहत 75 से अधिक नए हवाई अड्डों के निर्माण और गांवों के विद्युतीकरण आदि के रूप में परिलक्षित हुआ।
इसके अलावा, रक्षा क्षेत्र में भी भारत ने अपनी पहचान बनाई है। भारत वित्त वर्ष 2023-24 में 21,000 करोड़ का रक्षा निर्यात कर एक महत्वपूर्ण निर्यातक बन गया है। सरकार के निर्यात प्रोत्साहन के कारण एचएएल, बीडीएल आदि जैसी रक्षा क्षेत्र की सार्वजनिक कंपनियां ‘मल्टीबैगर’ बन गईं। इन सभी कारकों के कारण अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई और निवेशकों- स्थानीय व वैश्विक, दोनों ने मोदी के नेतृत्व वाली सरकार में अपना विश्वास दोहराया। यही कारण है कि बाजार में कुछ शुरुआती उथल-पुथल के बावजूद न केवल बेंचमार्क सूचकांक, बल्कि व्यापक बाजार भी 5 खरब अमेरिकी डॉलर के बाजार पूंजीकरण में नई ऊंचाई को छूने के लिए वापस लौट आया।
ये हैं असली कारण
दरअसल, विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) को चीनी बाजार अपेक्षाकृत सस्ता और आकर्षक लग रहा है। मई 2024 में एफआईआई ने जमकर बिकवाली की। एफआईआई ने नकद खंड में लगभग 25,000 करोड़ रुपये और इक्विटी डेरिवेटिव खंड में लगभग 11,000 करोड़ रुपये की भारतीय इक्विटी बेचीं। एफआईआई की इस बिकवाली से बाजार में गिरावट आई है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि एफआईआई को चीनी बाजार अधिक उचित मूल्य और आकर्षक मूल्यांकन पर उपलब्ध लग रहे हैं। चीन शंघाई कंपोजिट इंडेक्स अक्तूबर 2007 में लगभग 69 गुना और जून 2015 में लगभग 25 गुना के चरम मूल्यांकन की तुलना में लगभग 12.2 गुना मूल्य आय अनुपात पर कारोबार कर रहा है। इससे पता चलता है कि चीनी बाजार भारतीय बाजारों से सस्ते मूल्य पर उपलब्ध हैं, जो 23.6 गुना मूल्य आय अनुपात पर कारोबार कर रहे हैं। इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि एफआईआई चीनी शेयरों को प्राथमिकता दे रहे हैं और भारतीय शेयरों को बेच रहे हैं। इसी कारण बाजार में गिरावट आई है।
दूसरी ओर, अमेरिका में फेडरल फंड दरें स्थिर बनी हुई हैं और एफईडी आक्रामक संकेत दे रहा है। वर्तमान में एफईडी दरें लगभग 5.25-5.50 प्रतिशत के स्तर पर मंडरा रही हैं। इसका असर एफआईआई के फैसलों पर भी पड़ता है। एफआईआई और उनके निवेशक भारतीय इक्विटी को बेचना और अमेरिकी राजकोष में अपना निवेश बढ़ाना पसंद करेंगे। यह विशेष रूप से तब सच होता है, जब भारतीय इक्विटी पूरी तरह से या अधिक मूल्यांकित होती है और निवेशकों को उच्च जोखिम और अमेरिकी कोषागारों पर भारतीय इक्विटी में एक्सपोजर के लिए आवश्यक अतिरिक्त डेल्टा की भरपाई करने के लिए एक बड़ा उछाल प्रदान नहीं करती है। अमेरिका में ऊंची ब्याज दरों के कारण अमेरिकी डॉलर में मजबूती आई। अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने का मतलब है, भारतीय रुपये का कमजोर होना। इसके परिणामस्वरूप भारतीय इक्विटी में निवेश करने वाले एफआईआई को कम रिटर्न मिलता है। एफआईआई द्वारा भारतीय इक्विटी बेचने और बाहर निकलने का यह एक और कारण है।
इंडी गठबंधन ने फैलाया भ्रम
भारतीय अस्थिरता सूचकांक ‘इंडिया VIX’ ने 52 सप्ताह के नए उच्चतम स्तर 21.81 को छू लिया है और एक महीने में लगभग दोगुना हो गया है। इसके परिणामस्वरूप भारतीय बाजार में भय बढ़ा और बिकवाली शुरू हो गई, जिससे शेयर सूचकांक गिर रहा है। ‘इंडिया VIX’ अगले 30 दिन में बाजार की अस्थिरता के बारे में निवेशकों की धारणा का संकेतक है। अस्थिरता सूचकांक जितना अधिक होगा, बाजार में प्रमुख सुधार की उम्मीद उतनी अधिक होगी और इसके विपरीत भी। यह महत्वपूर्ण है कि ऐतिहासिक रूप से ‘इंडिया VIX’ सूचकांक आम चुनावों के दौरान हमेशा उछला है।
इसलिए उपरोक्त कारणों से पिछले कुछ हफ्तों में भारतीय बाजारों में गिरावट दिखी है। लेकिन बाजार का अनुमान है कि आर्थिक वृद्धि, आर्थिक सुधार, नीतिगत सुधार और निरंतरता बनी रहेगी। ऐसे में बाजार के गिरने का कोई कारण नहीं है। बाजार के लिए असली चिंता शिव सेना (यूबीटी गुट) के प्रवक्ता संजय राउत का एक बयान है, जिसमें उन्होंने कहा था कि अगर इंडी गठबंधन सत्ता में आता है तो देश में 5 वर्ष में 5 प्रधानमंत्री होंगे। यानी गठबंधन के अस्थिर और अवसरवादी चरित्र को देखते हुए लगता है कि नीतिगत पंगुता आएगी और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग द्वारा किए गए आर्थिक और नीतिगत सुधार उलट जाएंगे।
हर साल प्रधानमंत्री बदलने का मतलब फिर से नीतियों में बदलाव होगा, जिससे परिणामी अस्थिरता आएगी। यह निश्चित तौर पर बाजार के लिए अच्छा नहीं है। यह सीधे तौर पर बाजार के भय, इंडी गठबंधन और उसके राहुल गांधी, लालू प्रसाद यादव, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, शरद पवार, उद्धव ठाकरे जैसे नेताओं पर विश्वास की कमी को उजागर करता है। यह निश्चित रूप से इन नेताओं और उनके संबंधित राजनीतिक दलों के लिए अच्छी खबर नहीं है। ऐसे माहौल में बाजार की मौजूदा स्थिति को एक कहानी के जरिए समेटना उचित होगा।
ठंड का मौसम था। रेड इंडियंस ने अपने नए मुखिया से पूछा कि इस बार ठंड अधिक पड़ेगी या कम। चूंकि मुखिया आधुनिक परिवेश वाला था, इसलिए यह नहीं बता सकता था कि मौसम कैसा रहेगा। फिर भी उसने सुरक्षित रहने के लिए कह दिया कि ठंड अधिक पड़ेगी, इसलिए गांव के लोगों को लकड़ी जमा करनी चाहिए। लेकिन एक व्यावहारिक नेता होने के नाते अगले दिन उसे एक विचार आया। वह एक फोन बूथ पर गया और राष्ट्रीय मौसम सेवा को फोन कर पूछा, ‘क्या आने वाली शरद ऋतु अधिक ठंडी होने वाली है?’ मौसम विशेषज्ञ ने जवाब दिया, ‘लगता तो है कि इस बार ठंड काफी पड़ेगी।’ मुखिया ने समाज के लोगों से अधिक लकड़ियां इकट्ठी करने को कहा।
एक सप्ताह बाद उसने फिर राष्ट्रीय मौसम सेवा पर फोन कर पूछा, ‘क्या इस बार कड़ाके की सर्दी पड़ेगी?’ दूसरी ओर से उत्तर मिला, ‘हां, निश्चित रूप से बहुत ठंड पड़ेगी।’ मुखिया फिर अपने लोगों के पास गया और आदेश दिया कि जो भी लकड़ी का टुकड़ा उन्हें मिले उसे इकट्ठा कर लें। दो सप्ताह बाद उसने राष्ट्रीय मौसम सेवा को फिर से फोन किया और पूछा, ‘क्या आप पूरी तरह आश्वस्त हैं कि कड़ाके की ठंड पड़ने वाली है?’ मौसम विज्ञानी ने उत्तर दिया, ‘बिल्कुल, यह अब तक की सबसे सर्द मौसम रहने वाला है।’ उसने प्रतिप्रश्न किया, ‘आप इतने भरोसे के साथ कैसे कह सकते हैं?’ मौसम विज्ञानी ने उत्तर दिया, ‘रेड इंडियंस पागलों की तरह लकड़ियां इकट्ठी कर रहे हैं।’
ठीक यही कहानी भारतीय शेयर बाजार में भी दोहराई जा रही है। लोग शेयर बेच रहे हैं क्योंकि ‘बाजार गिर रहा है’ और इसे मोदी की हार के रूप में चित्रित किया जा रहा है। इससे घबरा कर लोग अधिक शेयर बेच रहे हैं और बाजार गिरता जा रहा है। जबकि सच कुछ अलग ही है जो 4 जून को सामने आ जाएगा।
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