प्रतिवर्ष 31 मई को ‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’ ((World No Tobacco Day) मनाया जाता है, जो इस वर्ष ‘बच्चों को तंबाकू उद्योग के हस्तक्षेप से बचाना’ विषय के साथ मनाया जा रहा है। दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि दुनियाभर में पिछले कुछ वर्षों में सिगरेट पीने में तो कमी आई है लेकिन अरबों डॉलर का राजस्व अर्जित करने के लिए तम्बाकू उद्योग अब बच्चों को निशाना बना रहा है। हाल ही में वैश्विक तम्बाकू उद्योग पर नजर रखने वाली संस्था ‘स्टॉप’ तथा डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी रिपोर्ट में यह चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि कई देशों में किशोरों के बीच ई-सिगरेट के उपयोग की दर अब व्यस्कों के मुकाबले काफी अधिक है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यूरोपीय क्षेत्र में तो सर्वेक्षण में शामिल 15 वर्षीय बच्चों में से 20 फीसदी ने पिछले 30 दिनों में ई-सिगरेट का उपयोग करने की बात स्वीकारी। इसी कारण डब्ल्यूएचओ (WHO) कह रहा है कि तंबाकू के उपयोग को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति के बावजूद ई-सिगरेट तथा अन्य नए तंबाकू और निकोटीन उत्पादों का उद्भव युवाओं और तंबाकू नियंत्रण के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है।
ई-सिगरेट पर किए गए एक अध्ययन में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने पाया था कि वर्ष 2013 में प्रचलन में आने के बाद से टैंक-स्टाइल ई-सिगरेट के एरोसोल अथवा वाष्प में सीसा, निकल, आयरन तथा कॉपर जैसी हानिकारक धातुओं के कणों की संख्या बढ़ी है। इन धातुओं को कार्सिनोजेन धातु भी कहा जाता है, जिनसे कैंसर होने का खतरा रहता है। अमेरिकी वैज्ञानिकों के मुताबिक ई-सिगरेट में बैटरी, एटॉमिजिंग यूनिट तथा फ्लूड होता है, जिसे फिर से भरा जा सकता है। ई-सिगरेटें अब नए टैंक-स्टाइल डिजाइन में आती हैं, जिनमें से अधिकांश में दमदार बैटरियां होने के साथ-साथ फ्लूड जमा रखने के लिए अधिक क्षमता वाली टंकी भी बनी होती है। कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि नए स्टाइल में प्रयोग में लाई जाने वाली उच्च क्षमता वाली बैटरी और फ्लूड के सम्पर्क से जो वाष्प उत्पन्न होता है, उसमें भारी धातु के कण शामिल होते हैं।
हालांकि एम्स, टाटा रिसर्च सेंटर, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीच्यूट एंड रिसर्च सेंटर सहित कुछ अमेरिकी रिसर्च के आधार पर भारत में 2019 में ही ई-सिगरेट को प्रतिबंधित कर दिया गया था लेकिन इसके बावजूद ग्रे बाजार में इनकी उपलब्धता सदैव बरकरार रही है। हाल ही में ‘पब्लिक हैल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया’ (पीएचएफआई) द्वारा बताया गया है कि ई-सिगरेट विभिन्न पोर्टल अथवा ग्रे मार्केट में आसानी से उपलब्ध हैं और उपभोक्ता की उम्र की पुष्टि किए बिना बेचे जाते हैं, जो पूरी तरह से कानूनों का उल्लंघन है। केन्द्र सरकार ने धूम्रपान नहीं करने वालों में निकोटीन की लत बढ़ने को ध्यान में रखते हुए ई-सिगरेट पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया था और उस समय ‘इलैक्ट्रॉनिक सिगरेट (उत्पादन, विनिर्माण, आयात, निर्यात, परिवहन, विक्रय, वितरण, भण्डारण और विज्ञापन) विधेयक-2019’ पर चर्चा का उत्तर देते हुए तत्कालीन केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डा. हर्षवर्धन ने राज्यसभा में बताया था कि ऐसे साक्ष्य सामने आए हैं कि ई-सिगरेट बहुत हानिकारक हैं, जो एक दिन तम्बाकू से भी बड़ा खतरा बन सकती है, इसीलिए सरकार की मंशा इस समस्या को खत्म करने की है। उन्होंने कहा था कि भारत में युवाओं की संख्या बहुत ज्यादा है, जिन्हें तंबाकू उद्योग अथवा ई-सिगरेट कम्पनियां निशाना बना सकते हैं। विदेशों में और खासकर अमेरिका में किए गए अध्य्यनों से इससे स्वास्थ्य संबंधी नुकसान उजागर हुए हैं।
जानकारों के मुताबिक पेन ड्राइव जैसे डिजाइन के चलते छिपाने में आसानी और अलग-अलग फ्लेवर के चलते पसंद किए जाने के कारण यह बच्चों में तेजी से लोकप्रिय हो रही है। ई-सिगरेट का कारोबार पूरे विश्व में कितनी तेजी से फल-फूल रहा है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि वर्ष 2003 में एक चीनी फार्मासिस्ट होन लिक द्वारा ईजाद की गई ई-सिगरेट की बिक्री उनकी कम्पनी ‘गोल्डन ड्रैगन होल्डिंग्स’ द्वारा 2005-2006 में विदेशों में शुरू की गई थी और इन दो दशकों के भीतर दुनियाभर में इसके आठ हजार फ्लेवर के साथ करीब पांच सौ ब्रांड बाजार में मौजूद हैं और ई-सिगरेट का वैश्विक कारोबार बढ़ते-बढ़ते तीन अरब डॉलर से ज्यादा का हो चुका है।
ई-सिगरेट में उपयोग किए जाने वाले तरल पदार्थ प्रायः तरल निकोटीन, सिन्नामेल्डिहाइड, प्रोपेलीन ग्लाइकोल, वेजिटेबल ग्लिसरीन और फ्लेवर्स के मिश्रण से तैयार किए जाते हैं। प्रोपेलीन ग्लाइकोल एक रंगहीन तथा गंधहीन पदार्थ है, जिसका इस्तेमाल टूथपेस्ट तथा दवा कारोबार में भी होता है जबकि सिन्नामेल्डिहाइड एक ऐसा रसायन है, जिसमें दालचीनी जैसा स्वाद और गंध होती है। अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक शोध से यह साबित हो चुका है कि सिगरेट के धुएं में पाए जाने वाले विषैले एल्डिहाइड की ही भांति ई-सिगरेट में इस्तेमाल होने वाला सिन्नामेल्डिहाइड भी शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाता है, जिससे ई-सिगरेट पीने वालों में सांस से जटिल समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इस शोध में कहा गया था कि ई-सिगरेट से भी लगभग उतने ही खतरे होते हैं, जितने तम्बाकू से बनी आम सिगरेट में क्योंकि इसमें भी वे सभी विषैले रासायनिक पदार्थ होते हैं, जो तम्बाकू के धुएं में पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो ई-सिगरेट वास्तव में कृत्रिम नशे का ही रासायानिक इंतजाम हैं।
अगर ई-सिगरेट में मौजूद घातक निकोटीन की बात की जाए तो यह ऐसा द्रव है, जिससे इसका उपभोग करने वालों को इसकी लत लग सकती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, भूख कम महसूस होना, अधिक लार व कफ बनना, हृदय की धड़कन प्रति मिनट 10-20 बार बढ़ जाना, छोटी-छोटी बात बेचैनी अनुभव करना, ज्यादा पसीना आना, उल्टी-दस्त होना, हर कार्य के लिए तम्बाकू की जरूरत महसूस होना, निकोटीन लेने की इच्छा बढ़ जाना, चिंता बढ़ना, अवसाद या निराशा महसूस होना, सिरदर्द होना, ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी महसूस होना इत्यादि निकोटीन की लत के प्रमुख लक्षण होते हैं।
कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के स्टेम सेल केन्द्र के निदेशक टालबोट के अनुसार गर्भावस्था अथवा युवावस्था के दौरान निकोटीन का किसी भी रूप में सेवन मस्तिष्क पर बुरा प्रभाव डालता है, जिससे स्मरण शक्ति, सीखने की क्षमता और पहचानने की क्षमता का ह्रास होता है। निकोटीन न्यूरल स्टेम सेल्स तथा उनके मेटोकान्ड्रिया को क्षतिग्रस्त करता है। टालबोट के मुताबिक ई-सिगरेट के सेवन से न्यूरल स्टेम सेल्स में तनाव पैदा होता है, जो मस्तिष्क के बेहद महत्वपूर्ण सेल होते हैं। एक सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया था कि ई-सिगरेट के सेवन से मुंह के कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं। विभिन्न शोध अध्ययनों के अनुसार ई-सिगरेट, ई-निकोटीन युक्त हुक्का तथा ई-शीशा ट्यूमर को बढ़ावा देने वाले साबित हो सकते हैं। गर्भवती महिलाओं द्वारा इनके सेवन से गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क के विकास पर असर पड़ सकता है।
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