चीन से अलग ताइवान एक संप्रभु देश है, लेकिन चीन हमेशा से उसे अपना हिस्सा बताते हुए उसे ‘मुख्यभूमि’ से येन केन प्रकारेण मिलाने की कसमें खाता रहा है। ताइवान स्वायत्तशासी देश है जबकि चीन अपने विस्तारवाद के मद में डूबा उसे कब्जाने की साजिशें रचता रहा है। आएदिन कम्युनिस्ट ड्रैगन ताइवान की सीमा पर लड़ाकू जहाज भेजकर घुड़कियां दिखाता है।
टापू देश ताइवान की संसद में जो कुछ चल रहा है और उसका जो परिणाम निकल रहा है वह असाधारण है। वहां की मुख्य विपक्षी नेशनलिस्ट पार्टी क्या देश को चीन को तश्तरी में सजाकर देने की साजिश रच रही है। आखिर रक्षा बजट में कमी लाने के उसके प्रस्ताव के यही मायने नहीं हैं कि ताइवान अपनी रक्षा में कमजोर रहे और चीन जब चाहे उसे दबोच ले?
राजधानी ताइपे में आम जन कल उस समय हैरान रह गए जब संसद में बहुमत वाली, चीन की तरफ झुकाव रखने वाली नेशनलिस्ट पार्टी ने देश के रक्षा बजट में कटौती का प्रस्ताव पास करा लिया। यह प्रस्ताव न सिर्फ वहां नए बने राष्ट्रपति लाई की शक्तियों को छीजता है बल्कि चीन की विस्तारवादी धमक से टकराने की शक्ति भी कम करने वाला प्रतीत होता है।
साफ है कि ताइवान की विपक्षी पार्टी के सांसद चीन के प्रति मोहग्रस्त हैं अन्यथा रक्षा बजट में कमी लाने जैसे प्रस्ताव के पारित होने का सवाल ही पैदा नहीं होता था, खासकर ऐसे वक्त पर जब चीन बहुत ज्यादा आक्रामक दिख रहा है। ताइवान की सीमाओं पर उसे लड़ाकू जहाज मंडरा रहे हैं और बीजिंग गत कई दिनों से धमकीभरी भाषा बोल रहा है।
संसद पर जिस नेशनलिस्ट पार्टी का वर्चस्व है, उसने ऐसे प्रस्ताव कैसे पारित कराए जो राष्ट्रपति की ही शक्तियों को घटाते हैं और देश के चीन से जूझने के जज्बे को कुंद करते हैं? क्योंकि ताइवान की जनता इन प्रस्तावों के पारित होने पर ताव में आ गई है। कल तो संसद के सामने हजारों लोग इकट्ठे हो गए और नेशनलिस्ट पार्टी सहित पारित हुए इन प्रस्तावों का विरोध जताने लगे। संसद के बाहर कल तापमान उस वक्त गर्म हो गया जब आमजन ताइवान की सुरक्षा के सवाल पर एकजुट होकर नए राष्ट्रपति लाई के समर्थन में गुस्से में भरे विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।
उधर जिस वक्त संसद के अंदर ये प्रस्ताव रखे जा रहे थे तब भी पक्षा और विपक्ष एक दूसरे के विरोध में नारेबाजी कर रहे थे और पोस्टर, बैनर लहरा रहे थे। सदन में बहस जारी थी लेकिन ऐसा शोर मच रहा था और आपस में गुत्थमगुत्था चल रही थी कि एक वक्त पर कुछ सुनाई तक नहीं दे रहा था। विपक्षी दल नेशनलिस्ट पार्टी और उस गुट वालों ने जो बदलाव किए हैं उनसे अब बजट के मामले में सदन को ज्यादा ताकत मिल गई है। इसी वजट में रक्षा खर्च तय होता है जिसे अब कम किए जाने की पूरी संभावना है और यह स्थिति चीन के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। अगर ताइवान के राष्ट्रीय सोच वाले लोग इस चीज को चीन का हाथ मजबूत करने जैसा मान रहे हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है।
चीन से अलग ताइवान एक संप्रभु देश है, लेकिन चीन हमेशा से उसे अपना हिस्सा बताते हुए उसे ‘मुख्यभूमि’ से येन केन प्रकारेण मिलाने की कसमें खाता रहा है। ताइवान स्वायत्तशासी देश है जबकि चीन अपने विस्तारवाद के मद में डूबा उसे कब्जाने की साजिशें रचता रहा है। आएदिन कम्युनिस्ट ड्रैगन ताइवान की सीमा पर लड़ाकू जहाज भेजकर घुड़कियां दिखाता है।
ऐसा नहीं है कि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में ताइवान अकेला पड़ा हुआ है। अमेरिका सहित कई बड़े देश ताइवान की संप्रभुता को मान्य करते हैं। उन्होंने संसद में पारित हुए नए प्रस्तावों की भर्त्सना की है। ताइवान में गत जनवरी में जो चुनाव हुए थे उनमें संसद में नेशनलिस्ट पार्टी का बहुमत हो गया था, लेकिन राष्ट्रपति पद डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डीपीपी) के पक्ष में गया और तत्कालीन उपराष्ट्रपति लाई चिंग-ते राष्ट्रपति बने हैं। डीपीपी हमेशा से ताइवान की स्वतंत्रता के पक्ष में रही है और चीन की धुर विरोधी मानी जाती है।
टिप्पणियाँ