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पुत्र का मतलब क्या होता है, इस बारे में रामायण में क्या लिखा है

Published by
Sudhir Kumar Pandey

शब्द कहां से आते हैं, उनकी यात्रा कितनी लंबी होती है। इसका अध्ययन आनंददायक होता है। कई विद्वानों ने इस पर काम किया है। उनकी पुस्तकें भी आई हैं। यदि हम अपने प्राचीन ग्रंथों की ओर लौटें तो हमें कई शब्दों के अर्थ मिल जाते हैं। वाल्मीकि रामायण में पुत्र शब्द को लेकर रोचक जानकारी है। भगवान राम भैया भरत को इस बारे में विस्तार से बताते हैं।

भगवान राम जब चित्रकूट में वनवास पर थे तो भैया भरत उन्हें वापस अयोध्या ले जाने के लिए वहां पहुंचे। उन्होंने प्रभु राम से अयोध्या लौट चलने के लिए निवेदन किया। लेकिन भगवान राम को पिताश्री की आज्ञा का पालन कर पुत्र धर्म निभाना था। भैया भरत भगवान राम की पादुका लेकर वापस अयोध्या लौटते हैं। भरत जी और राम जी के बीच चित्रकूट में जो संवाद हुआ उसमें पुत्र की भी बात हुई। श्रीराम ने भरत को समझाते हुए कहा कि –

तात, सुना जाता है कि बुद्धिमान यशस्वी राजा गय ने गय देश में यज्ञ करते हुए पितरों के प्रति एक कहावत कही थी।

पुत्राम्नो नरकाद् यस्मात् पितरं त्रायते सुत:।
तस्मात् पुत्र इति प्रोक्त: पितृन् य: पाति सर्वत:।।

शाष्त्रों में नरक के बारे में भी विस्तार से बताया गया है। एक नरक का नाम है पुत्। इस नरक से उद्धार जो करता है वह है पुत्र। पितरों की रक्षा करता है पुत्र।

वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड में एक सौ सातवें सर्ग में इसका उल्लेख है। इसी सर्ग में प्रभु राम और भैया भरत के बीच बड़ी ही कारुणिक बातचीत है। भैया भरत श्रीराम को वापस अयोध्या ले जाने के लिए हठ करते हैं, लेकिन श्रीराम पुत्र धर्म की बात कहकर उन्हें मनाते हैं।

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