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आआपा में सुलगते शोले

स्वाति मालीवाल प्रकरण ने आम आदमी पार्टी के दोहरे चरित्र को बेनकाब तो किया ही है, नेतृत्व और पार्टी के अंधकारमय भविष्य को लेकर सुगबुगाहट भी बढ़ा दी है। पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर नेता तक यही मान रहे हैं कि केजरीवाल दोबारा जेल गए तो पार्टी की इतिश्री तय है

by अवधेश कुमार
May 25, 2024, 07:04 am IST
in विश्लेषण, दिल्ली
अरविंद केजरीवाल,स्वाति मालीवाल और विभव कुमार

अरविंद केजरीवाल,स्वाति मालीवाल और विभव कुमार

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इस बार लोकसभा चुनाव ने आम आदमी पार्टी (आआपा) को वहां लाकर खड़ा कर दिया है, जहां से उसके टूट कर बिखरने और अवसान की संभावनाएं बढ़ गई हैं। पार्टी की राज्यसभा सांसद और अरविंद केजरीवाल व मनीष सिसोदिया के आरंभिक दिनों की साथी स्वाति मालीवाल के साथ मुख्यमंत्री आवास पर जो हुआ, वह भारतीय राजनीति की एक असाधारण घटना है। अभी तक ऐसा नहीं हुआ कि मुख्यमंत्री आवास पर उनके निजी सहायक ने पार्टी की महिला सांसद के साथ मारपीट और दुराचार किया हो।

स्वाति मालीवाल लंबे समय तक दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष रहीं और महिलाओं की गरिमा, अधिकार आदि पर उनकी तत्परता, आक्रामकता और कार्रवाई के तौर-तरीके को मीडिया के माध्यम से पूरे देश ने देखा है। लेकिन स्वाति ने कल्पना भी नहीं की होगी कि उनके साथ भी ऐसा कुछ होगा। इस प्रकरण के बाद केजरीवाल और पार्टी का व्यवहार ऐसा है, मानो स्वाति ही अपराधी और षड्यंत्रकारी हों। महिला अस्मिता, महिला सुरक्षा और उनके प्रति संवेदनशीलता की बात करने वाली पार्टी के नेताओं के मुंह से पश्चाताप और माफी तो दूर, अफसोस का एक शब्द तक नहीं निकला।

शराब घोटाले में जमानत पर बाहर आए राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने हालांकि घटना की निंदा करते हुए विभव कुमार के विरुद्ध जांच की बात कही थी। लेकिन अब उनका व्यवहार बिल्कुल बदला हुआ है। आआपा सरकार में आतिशी एक महिला मंत्री हैं, लेकिन इस मुद्दे पर सहानुभूति तो छोड़िए, वह कह रही हैं कि स्वाति भाजपा के षड्यंत्र का हिस्सा बन गई हैं।

आआपा के सभी नेता यही साबित करने में जुटे हुए हैं, जैसे सारी गलती स्वाति मालीवाल की है। यह सब उन्होंने राजनीतिक षड्यंत्र के तहत किया और कहा कि इसमें भाजपा का हाथ है। वैसे भी आआपा नेताओं की आदत रही है, चाहे पार्टी में असंतोष के उठने वाले स्वर हों, प्रशासनिक विफलता, अपराध और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर घिरने पर भाजपा को ही कोसते रहे हैं। स्वाति के विरुद्ध विभव कुमार ने जो प्राथमिकी दर्ज कराई है, उसके अनुसार वह बिना पूर्व सूचना के मुख्यमंत्री आवास आई, जब सुरक्षाकर्मियों ने रोका तो स्वाति ने धमकाते हुए कहा कि मेरा अपॉइंटमेंट है।

बहुत कुछ कहती है चुप्पी

स्वाति मालीवाल प्रकरण ने आआपा का महिला विरोधी ही नहीं, बल्कि संवेदनहीन और निष्ठुर चरित्र को भी उजागर किया है। साथ ही, कांग्रेस नेतृत्व वाला इंडी गठबंधन, जिसमें आआपा सहयोगी है, की चुप्पी भी बहुत कुछ कहती है। ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा देने वाली प्रियंका वाड्रा का सिर्फ बयान देकर स्वाति मालीवाल का समर्थन करना औपचारिकता से अधिक कुछ नहीं है। मणिपुर, प्रज्ज्वल रेवन्ना प्रकरण आआपा और इंडी गठबंधन के नेताओं को शर्मसार करता है, लेकिन अपनी ही पार्टी की नेता के साथ मुख्यमंत्री आवास पर जो हुआ, वह उन्हें षड्यंत्र लगता है। इसी तरह, पश्चिम बंगाल में संदेशखाली पर भी इनकी चुप्पी हैरान करती है। आआपा और इंडी गठबंधन के लिए महिला या पुरुष की गरिमा भी उनकी अपनी राजनीति के हिसाब से तय होती है।

भाजपा ने जब इस मामले को उठाया तो, उन्हें आपत्ति है। आपत्ति क्यों? क्या भाजपा को भी अन्य दलों की तरह चुप्पी साध लेनी चाहिए थी? क्या ऐसी घटनाओं पर राजनीतिक दल को अपना रुख स्पष्ट नहीं करना चाहिए? ऐसी ही घटना भाजपा के किसी नेता या मंत्री के घर होती तो आआपा और इंडी गठबंधन में शामिल दलों का क्या रवैया होता? एजेंडाधारी पत्रकार और एक्टिविस्ट क्या चुप रहते? दरअसल, आआपा नेताओं के व्यवहार से यह स्पष्ट हो चुका है कि उनके लिए मानवीय मूल्यों, गरिमा, नैतिकता, आदर्श आचरण और कथनी-करनी में अंतर है।

वे अपनी सहूलियत से इन सब विषयों की परिभाषा गढ़ते हैं तथा सही-गलत का भेद भी अपनी सुविधानुसार ही तय करते हैं। अभी तक किसी नेता ने महिला सम्मान पर कुछ नहीं कहा है। आआपा की आंतरिक संस्कृति और नारी विरोधी रचना का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है? महिलाओं को मुफ्त बस यात्रा की सुविधा देकर केजरीवाल अगर यह सोचते हैं कि महिलाएं हर जगह उनके साथ खड़ी होंगी, तो स्वाति मालीवाल की घटना के साथ इसके अंत का आधार बन सकता है।

… तो आआपा का टूटना तय है!

इस पूरे प्रकरण का एक बड़ा पहलू भी है। जिस पार्टी की नींव भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर पड़ी, केजरीवाल और उनके साथी राजनीतिक शुचिता, महिला सुरक्षा पर बोलते नहीं थकते थे, आज महिला सम्मान और उसकी सुरक्षा को लेकर कठघरे में हैं, भ्रष्टाचार के कीचड़ में धंसे दिखते हैं। उनके दोहरे चरित्र उजागर हो चुके हैं। शराब घोटाले में केवल स्वाति मालीवाल नहीं, पार्टी के कई नेताओं ने वैसी आक्रामकता नहीं दिखाई, जिसकी उनसे अपेक्षा थी। पार्टी को उम्मीद थी कि केजरीवाल की गिरफ्तारी के बाद वह बड़ा आंदोलन खड़ा कर सकेगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि शराब घोटाले में एक-एक कर जो तथ्य सामने आए, उससे पार्टी में नीचे से ऊपर तक यह धारणा बनी है कि भ्रष्टाचार तो हुआ है। तेलंगाना के पूर्व मुख्यमंत्री की बेटी के. कविता की गिरफ्तारी से यह धारणा और पुष्ट हुई कि आआपा नेताओं की गिरफ्तारी निराधार नहीं हो सकता। इसलिए पार्टी नेताओं और विधायकों को लगने लगा कि भ्रष्टाचार हुआ है, इसलिए उनके सामने विरोध का कोई नैतिक आधार नहीं है। इसलिए पार्टी में पहले जैसी आक्रामकता नहीं दिखती।

बार-बार महिला अस्मिता से खिलवाड़

यह पहला अवसर नहीं है, जब आआपा का महिला विरोधी चेहरा सामने आया है। केंद्रीय मंत्री निर्मला सीतारमण कहती हैं कि आआपा के इकलौते नेता अरविंद केजरीवाल महिलाओं के खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव में एक भी महिला को टिकट नहीं दिया है। आआपा की एक पूर्व महिला नेता के बयान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि महिला हो या पुरुष कार्यकर्ता, सभी को बाउंसर या पीए से पिटवाकर, जलील कर निकाला जाता है। यही आआपा का चरित्र है। आआपा विधायक शरद चौहान पार्टी की महिला कार्यकर्ता सोनी मिश्रा की आत्महत्या मामले में आरोपी हैं। उन पर 2016 में सोनी को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगा था। जिस सोमनाथ भारती पर गर्भवती पत्नी के पेट पर मारने और उसे कुत्ते से कटवाने का आरोप लगा, उसे आआपा ने लोकसभा का टिकट दिया है। सोमनाथ के लिए गांधी-नेहरू परिवार वोट मांग रहा है। 2016 में ओखला के विधायक अमानतुल्लाह खां पर यौन उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज हुआ था।

  • 2016 में आआपा की एक पूर्व संयोजक और फिरोजपुर की महिला नेता ने पार्टी नेताओं पर पंजाब की 52 महिला कार्यकर्ताओं से यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। इसकी शिकायत हाईकमान से की तो नेतृत्व मामले को दबाने में जुट गया। महिला की फोटो भी सोशल मीडिया पर लीक करा दी।
  •  दिल्ली के तत्कालीन विधायक कर्नल देविंदर सहरावत ने संजय सिंह पर पंजाब विधानसभा चुनाव में टिकट का वादा कर महिलाओं का शोषण करने का आरोप लगाया था। उन्होंने केजरीवाल को चिट्ठी भी लिखी थी। तब संजय सिंह ने सहरावत पर मानहानि का मुकदमा दर्ज करने की धमकी दी थी।
  •  2021 में पार्टी कार्यकर्ता हरदीप कौर ने मटियाला वार्ड के पार्षद रमेश मटियाला पर बदसलूकी और मारपीट के आरोप लगाए थे। जब वह दिल्ली के मटियाला में कोविड-19 परीक्षण शिविर लगा रही थी, तब रमेश ने दो महिला कार्यकर्ताओं से उसे पिटवाया। हरदीप ने द्वारका के बिंदापुर थाने में शिकायत भी दर्ज कराई थी।
  •  सेक्स सीडी कांड में तत्कालीन विधायक और दिल्ली सरकार में मंत्री रहे संदीप कुमार को दिल्ली पुलिस ने बलात्कार, भ्रष्टाचार निरोधक कानून और आईटी एक्ट की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था।
  • आआपा के सुनाम और बरनाला विधानसभा क्षेत्र के पर्यवेक्षक विजय चौहान पर उनके घर और कार्यालय में काम काम करने वाली महिला ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था।
  •  संगरूर के लेहरागागा में पार्टी संयोजक हरदीप सिंह पर एक नाबालिग लड़की से बलात्कार की कोशिश मामला दर्ज हो चुका है। पीड़िता छोटी बहन के साथ फोटो खिंचवाने हरदीप के स्टूडियो में गई थी।

दूसरे, पार्टी नेताओं को लगने लगा है कि यदि केजरीवाल को सजा हो गई तो, पार्टी वैसे ही खत्म हो जाएगी। इसलिए वे अपना राजनीतिक भविष्य कहीं और तलाश रहे होंगे। इसके अलावा, नेतृत्व के दागदार दामन और उनके व्यवहार से उन लोगों में भी आक्रोश है, जो आंदोलन के समय से साथ थे। कुल मिलाकर पार्टी कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक में भीतर-भीतर असंतोष पनप रहा है।

स्वाति मालीवाल ने अभी तक यह नहीं बताया है कि आखिर क्यों मुख्यमंत्री आवास पर उनके साथ मारपीट हुई? अलबत्ता मीडिया खबरों में केजरीवाल और वरिष्ठ कांग्रेस नेता व अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी के बीच हुए एक सौदे की चर्चा है। इसके मुताबिक, सिंघवी यदि केजरीवाल को भ्रष्टाचार मामले में बेदाग छुड़ा लेंगे तो आआपा उन्हें राज्यसभा में पहुंचा देगी। इसीलिए पार्टी स्वाति पर राज्यसभा से त्यागपत्र देने का दबाव बना रही थी, जिसके लिए वह तैयार नहीं थीं। यदि यह कारण है तो एकमात्र महिला सांसद पर ही यह दबाव क्यों बनाया गया? इससे भी महिलाओं के प्रति पार्टी नेतृत्व के दोहरे रवैये का प्रमाण मिलता है। हो सकता है स्वाति ने पार्टी के अंदर भ्रष्टाचार और अन्य मुद्दे उठाए हों, जो केजरीवाल व उनके साथियों को नागवार गुजरा हो। लेकिन ऐसा करने वाली अकेली स्वाति मालीवाल नहीं हो सकतीं।

बहरहाल, धीरे-धीरे पार्टी में विद्रोह और टूट की संभावनाएं साफ दिखने लगी हैं। जैसे-प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को बताया है कि आआपा ने चंदे के रूप में विदेश से 7 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए हैं। इसमें विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम, जनप्रतिनिधत्व अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता का उल्लंघन हुआ है। इसलिए ईडी ने सीबीआई से इसकी जांच कराने की सिफारिश की है। याद कीजिए, जब आआपा बनी थी, तब भी उसके खाते में विदेशों से मोटी राशि आने की बात सामने आई थी, लेकिन दान किसने दिया, इसका पता नहीं चला था।

रेवन्ना मेरे धैर्य की परीक्षा न ले : देवगौड़ा

गत दिनों जद (एस) के सांसद प्रज्ज्वल रेवन्ना के अश्लील वीडियो वायरल होने के बाद वे विदेश भाग गए। उन्हें पकड़ने के लिए पुलिस ने इंटरपोल से भी मदद मांगी है। इसी बीच, पूर्व प्रधानमंत्री और रेवन्ना के दादा एच.डी.देवगौड़ा ने पत्र लिखकर रेवन्ना को चेतावनी दी है कि जहां भी हो, भारत आकर पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करो। साथ ही, लिखा है कि अगर रेवन्ना पर लगे आरोप सही हुए तो उसे कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिए। मुझे रेवन्ना की हरकतों की जानकारी नहीं थी। अब उसे मेरे धैर्य की परीक्षा नहीं लेनी चाहिए। उन्होंने यह भी लिखा है, ‘‘अगर उसने मेरी चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया तो उसे मेरे और अपने परिवार के सभी सदस्यों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। परिवार की बात न सुनने से वह पूरी तरह दूर हो जाएगा। यदि उसके मन में मेरे लिए कोई सम्मान बचा है,तो उसे तुरंत लौटना होगा।’’

उदाहरण के लिए, जिसने पार्टी को 50 लाख रुपये चंदा दिया, पत्रकार उसके दिए पते पर ढूंढने गए तो वहां उस नाम का व्यक्ति ही नहीं मिला। पूछने पर अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हम कैसे पता करें कि हमें कौन पैसे दे रहा है। इसी तरह, आंदोलन के दौर को देखें तो भव्य मंच, म्यूजिक सिस्टम से लेकर भाड़े के हॉल में बार-बार प्रेस कॉन्फ्रेंस बिना भारी-भरकम राशि के संभव ही नहीं था। वैसे भी, आआपा ने अपने पहले चुनाव में ही यह जता दिया कि उसके पास पैसे की कमी नहीं है। उसका चुनाव प्रचार किसी भी बड़ी पार्टी से कमतर नहीं है। निश्चय ही इसके लिए धन के अलग-अलग स्रोत होंगे और उन्हीं में से एक स्रोत दिल्ली की आबकारी नीति से जुड़ता दिखाई पड़ता है।

बहरहाल, भले ही स्वाति मालीवाल अभी पार्टी में कमजोर दिख रही हों, लेकिन आने वाले दिनों में पार्टी में असंतोष बढ़ना तय है। कारण, स्वाति के साथ जो हुआ, उसे पार्टी के अंदर या बाहर सक्रिय संवेदनशील महिलाएं सहन नहीं करेंगी। शायद लोकसभा चुनाव के बाद या 2 जून को अरविंद केजरीवाल के फिर से जेल जाने के बाद विरोध और विद्रोह की कुछ और आवाज सुनाई दें। पार्टी के कार्यकर्ताओं और नेताओं के मन में यह प्रश्न उठ रहा है कि कल यदि किसी दूसरी पार्टी में या दूसरी सरकार में महिला के साथ कुछ हुआ तो वे किस मुंह से विरोध करेंगे? यदि विरोध किया तो स्वाति से जुड़े सवाल पूछे जाएंगे तो क्या उत्तर देंगे? जब पार्टी में ऐसे प्रश्न पैदा होने लगें तो मान लीजिए कि नेतृत्व के प्रति असंतोष और विद्रोह बढ़ रहा है। तो क्या पार्टी के नेताओं के भ्रष्ट आचरण व व्यक्तिगत व्यवहार से पार्टी में असंतोष व विद्रोह की स्थिति बन गई है?
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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