कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी चुनावी मोड में हैं। इस जोश में वह इस बार बहुत कुछ ऐसा कह बैठे, जो देश की व्यवस्था पर गंभीर प्रश्न उठाती है। यह भी प्रश्न उठाती है कि क्या राहुल गांधी भारत सरकार के प्रशासन को अपने घर की व्यवस्था मानते हैं ? एक लोकतांत्रिक देश में वह व्यक्ति कैसे सिस्टम का हिस्सा बन सकता है, जो किसी पद पर न हो ? क्या नीतियों का निर्धारण किसी परिवार के ड्रॉइंगरूम में होता है? क्या राहुल गांधी यह कहना चाहते हैं कि जब उनका परिवार सत्ता में था तो उनके सामने देश के मुद्दों पर चर्चा की जाती थी? भारत में आजादी के बाद से ही सिस्टम कांग्रेस के हाथ में रहा तो क्या इसके लिए वह कांग्रेस को जिम्मेदार मानते हैं? उनके परिवार से या फिर कांग्रेस में किसके कहने पर वंचित समाज के लिए कार्य नहीं किया गया? ऐसे तमाम सवाल खड़े होते हैं।
हरियाणा के पंचकूला में संविधान सम्मान सम्मेलन में राहुल गांधी ने कहा कि जब से वे पैदा हुए हैं, तब से वे सिस्टम में हैं। सिस्टम को अंदर से जानते हैं। मुझसे आप यह नहीं कह सकते कि सिस्टम कैसे चलता है, किसे फ़ेवर करता है, कैसे फ़ेवर करता है, किसकी रक्षा करता है। किसे अटैक करता है, ये सब उन्हें मालूम है, क्योंकि वे उसके अंदर से आए हैं। प्राइम मिनिस्टर हाउस से, दादी प्राइम मिनिस्टर, पापा प्राइम मिनिस्टर और फिर मनमोहन सिंह।
दरअसल राहुल गांधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने के लिए यह कह रहे थे कि भारत के वंचित वर्गों के साथ अर्थात एससी/एसटी आदि के साथ व्यवस्थागत रूप से अन्याय हो रहा है और होता आया है, और चूंकि वे सिस्टम का हिस्सा अपने जन्म के साथ से ही रहे हैं, तो कोई उन्हें यह न समझाए कि सिस्टम कैसे काम करता है और सिस्टम कैसे इनके प्रति अन्याय नहीं करता है।
क्या राहुल गांधी यह भूल गए हैं कि यह देश एक संविधान और मंत्रिमंडल, न्यायपालिका समेत तमाम संवैधानिक व्यवस्थाओं के द्वारा संचालित होता है। यह देश बाबा साहेब आंबेडकर के बनाए गए संविधान के द्वारा संचालित होता है, जिसमें स्पष्ट है कि निष्ठा संविधान एवं देश के प्रति है, व्यक्ति के प्रति नहीं तो फिर राहुल गांधी यह कैसे कह सकते हैं कि वह सिस्टम का हिस्सा अपने जन्म के साथ से रहे हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि क्या जब वह यह कह रहे हैं कि उनकी दादी, उनके पिता जी प्रधानमंत्री थे, तो क्या वे गोपनीय बातों की भी चर्चा अपने बच्चों के सामने करते होंगे? जब वह इन दोनों की बात करते हैं, तब तो यह समझा भी जा सकता है कि कुछ चर्चा हो जाती हो, परंतु जब वह कहते हैं कि मनमोहन सिंह की सरकार में? मनमोहन सिंह की सरकार में राहुल मात्र एक सांसद थे और कुछ नहीं। मगर अघोषित सिंहासन का नशा इस सीमा तक राहुल गांधी के आचरण से प्रतीत होता है कि मनमोहन सिंह के कैबिनेट द्वारा पारित अध्यादेश फाड़ दिया था। क्या वह ऐसा कहना चाह रहे थे कि व्यवस्था में अभी तक वंचित वर्ग के प्रति अन्याय होता आया है, तो क्या उनके परनाना, उनकी दादी, उनकी माताजी और मनमोहन सिंह के शासनकाल में वंचित वर्ग वंचित ही बना रहे, ऐसी व्यवस्था की गई थी?
कांग्रेस की जातिवादी सोच तो इसी एक उदाहरण से साबित हो जाती है कि कैसे अपने ओबीसी अध्यक्ष सीताराम केसरी का अपमान कांग्रेस के नेताओं ने सोनिया गांधी के लिए किया था। कैसे उन्हें एक कमरे मे बंद कर दिया था और कैसे युवा कांग्रेस के सदस्यों ने उनके साथ धक्का-मुक्की करने के बाद उनकी धोती तक खींच ली थी। चूंकि यह परिवार सिस्टम का हिस्सा नहीं था, बल्कि देश की व्यवस्था को अपने सिस्टम के अनुसार चलाना चाहता था, पार्टी को अपने अनुसार चलाना चाहता था। जब एनडीए की सरकार द्वारा जनजातीय समाज से द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति के पद के लिए प्रस्तावित किया गया, तो कांग्रेस द्वारा उनका लगातार अपमान किया गिया, क्योंकि कॉंग्रेस के सिस्टम में भारत के लोगों के लिए स्थान है ही नहीं। और यही बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी रैली में भी की कि कांग्रेस के युवराज ने यह मान लिया है कि किस तरह उनकी दादी, उनके पिताजी और उनकी माताजी के समय वंचित समाज, पिछड़ों और वनवासियों के साथ अन्याय होता था।
राहुल गांधी की बांटने की राजनीति
राहुल गांधी ने एक बार फिर बांटने की राजनीति करते हुए अवसरवादी राजनीति का उदाहरण दिया। उन्होंने अपने ही गठबंधन के साथी अरविन्द केजरीवाल की जमानत का उल्लेख करते हुए भारत की न्यायपालिका पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि आखिर आदिवासी हेमंत सोरेन की जमानत क्यों नहीं हुई? उन्होंने कहा कि दो राज्यों ने चीफ मिनिस्टर इलेक्ट किया और आदिवासी चीफ मिनिस्टर पहले जेल गया और आज तक नहीं निकला, और नेशनल मीडिया ने भी इस विषय में बात नहीं की। उन्होंने कहा कि मायावती जी भ्रष्ट हैं, मगर नवीन पटनायक जी भ्रष्ट नहीं हैं। उन्होनें भ्रष्टाचार को भी जातियों के साथ जोड़कर कहा कि जो भी आदिवासी हो, दलित हो, पिछड़ा हो उसकी फ्रेमिंग हो जाती है। और दो अलग-अलग कानून चलते हैं।
यहां पर राहुल गांधी फिर एक बार देश को बांटने की राजनीति करते हुए दिखाई देते हैं। राहुल गांधी से यह प्रश्न किया जाना चाहिए कि यदि उन्हें हेमंत सोरेन की जमानत न हो पाने का अफसोस है तो क्या उन्होंने अपने ही गठबंधन के साथी अरविन्द केजरीवाल की जमानत का यह कहते हुए विरोध किया कि जब तक हेमंत सोरेन की जमानत नहीं होती, तब तक गठबंधन के दूसरे नेता को बाहर नहीं आना चाहिए ? और जब वह मायावती जी के भ्रष्ट होने पर आपत्ति व्यक्त करते हैं, तो उन्हें यह भी बताना चाहिए कि आखिर मायावती जी पर भ्रष्टाचार के आरोप किसने लगाए थे, किसने जांच की शुरुआत की थी?
वर्ष 2014 में जब उन्हीं के गठबंधन के साथी अखिलेश यादव ने सत्ता संभाली थी, तब उन्होंने पार्कों और स्मारकों में पत्थरों को लगाने मे हुए घोटाले की जांच उत्तर प्रदेश के लोकयुक्त से करने की सिफारिश की थी। राहुल गांधी ने आज तक गेस्ट हाउस कांड पर क्यों कुछ नहीं कहा? जिसमें उनके ही गठबंधन के साथी अखिलेश यादव की पार्टी के लोग दोषी थे। राहुल गांधी जातिगत न्याय के नाम पर यह कैसा खेल खेल रहे हैं? जब वे वनवासी समाज के मुख्यमंत्री के जमानत न हो पाने की बात करते हैं तो वह यह क्यों नहीं कहते कि जिसकी जमानत हुई है वह भी उन्हीं के गठबंधन का हिस्सा हैं। उनकी जमानत का स्वागत कांग्रेस ने भी दिल खोलकर किया था और कांग्रेस के ही नेता अभिषेक मनु सिंघवी अरविंद केजरीवाल के वकील थे, जिन्होंने अपनी दलीलों से जमानत दिलवाई। ये आधा-अधूरा सच क्यों बोलना राहुल जी?
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