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षड्यंत्र विफल, ‘हिंदू’ निर्दोष

पुणे के नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड की आड़ में कई हिंदुत्वनिष्ठ संगठनों को उसमें फंसाकर अपमानित करने की कोशिश हुई, लेकिन अंतत: ये संगठन निर्दोष साबित हुए

by WEB DESK
May 23, 2024, 07:34 am IST
in विश्लेषण, महाराष्ट्र
नरेंद्र दाभोलकर

नरेंद्र दाभोलकर

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गत मई को पुणे की सी.बी.आई. अदालत ने कथित सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र दाभोलकर हत्याकांड पर अपना फैसला सुनाया। इस निर्णय से यह साफ हो गया कि दाभोलकर की हत्या में किसी हिंदुत्वनिष्ठ संगठन का हाथ नहीं था। बता दें कि 20 अगस्त, 2013 की सुबह पुणे में दाभोलकर की उस समय किसी ने हत्या कर दी थी, जब वे टहलने के लिए निकले थे। उनकी हत्या के बाद नक्सलियों और सेकुलर बिरादरी ने भारत ही नहीं, बल्कि विदेश में भी शोर मचाया था कि दाभोलकर की हत्या ‘हिंदू अतिवादियों’ ने की है। एक तरह से इन लोगों ने एक बार फिर से ‘हिंदू आतंकवाद’ की झूठी कहानी गढ़ने की कोशिश की थी, लेकिन न्यायालय के निर्णय से उनकी झूठी कहानी धराशायी हो गई है।

बता दें कि सेकुलर बिरादरी के हंगामे के बाद ही पुलिस ने सनातन संस्था के कुछ कार्यकर्ताओं को दाभोलकर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था। अब न्यायालय ने सनातन संस्था के साधक विक्रम भावे और हिंदू जनजागृति समिति से संबंधित डॉ. वीरेंद्र सिंह तावडे को दोष-मुक्त कर दिया है। इसके साथ ही हिंदू विधिज्ञ परिषद के वकील संजीव पुनालेकर को भी रिहा कर दिया है।

सनातन संस्था के प्रवक्ता चेतन राजहंस का कहना है, ‘‘दाभोलकर की हत्या की आड़ में सनातन संस्था को बदनाम कर उस पर प्रतिबंध लगाने की मंशा थी, लेकिन न्यायालय के निर्णय से उनकी वह मंशा पूरी नहीं हुई।’’ दाभोलकर हत्या के मामले में सचिन अंदुरे और शरद कलसकर को सजा हुई है। चेतन राजहंस का कहना है कि इन दोनों का सनातन संस्था से सीधा संबंध नहीं है। उन्होंने यह भी बताया कि गत 11 वर्ष में सी.बी.आई. ने सनातन संस्था के 1,600 साधकों से पूछताछ की, लेकिन उसे किसी के विरुद्ध सबूत नहीं मिला।

बता दें कि दाभोलकर नास्तिकतावादी थे। वे ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ के संस्थापक थे। उनकी मृत्यु के बाद महाराष्ट्र में अंधश्रद्धा विरोधी कानून बनाया गया। इसमें हिंदू धर्म के विरोध में कुछ बातें थीं। इस कानून के अनुसार किसी देवता की मूर्ति के सामने पशुबलि देना अपराध था, लेकिन बकरीद पर बकरों की बलि देना अपराध नहीं माना गया था। वारकरी समाज की पैदल यात्रा, कर्णच्छेद, होम-हवन आदि धार्मिक कृत्यों का भी विरोध किया गया था। इस कारण कुछ संगठनों ने इस कानून का विरोध किया। परिणामस्वरूप तत्कालीन कांग्रेस सरकार को इस कानून की 28 धाराओं में से 17 धाराएं हटानी पड़ीं।

दाभोलकर की संस्था का संबंध नक्सलियों से भी था। यह बात महाराष्टÑ सरकार की एक रपट ही कहती है। 2011 में राज्य खुफिया विभाग की एक रपट में कहा गया था कि नक्सलवादी अभियान को महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति सहित 62 संगठन बढ़ावा दे रहे हैं। महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति पर विदेशी दान स्वीकारने एवं आर्थिक घोटाले करने का आरोप भी था। इसलिए केंद्र सरकार ने उसका एफ.सी.आर.ए. लाइसेंस निरस्त कर दिया था।

Topics: हिंदू आतंकवादपाञ्चजन्य विशेषमहाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिदाभोलकर की हत्याMaharashtra Superstition Eradication CommitteeDabholkar's murderHindu Terrorism
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