चीन इन दिनों भारत की तरफ ज्यादा ही तिरछी नजरें गढ़ाए हुए है। भारत में चल रही आम चुनाव की प्रक्रिया में साइबर के रास्ते कथित दखल देने से लेकर यहां के नेताओं के बयानों को चीनी अधिकारी दूरबीन से जांचकर अपने कम्युनिस्ट आकाओं के कान भरने में व्यस्त हैं। अभी तीन दिन पहले भारत के विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने मेक इन इंडिया को लेकर भारतवासियों को उत्साहित किया तो कम्युनिस्ट ड्रैगन को तीखी मिर्ची लग गई। वहां के सरकारी भोंपू कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स से लेकर सत्ता के नजदीकी कम्युनिस्टों को अपच हो गई। जयशंकर के बयान की आड़ में चीन ने भारत पर बेबुनियाद आरोप जड़ दिया कि वह उसकी कंपनियों को सता रहा है।
विदेश मंत्री जयशंकर ने बहुत सहज भाव से विकसित भारत अभियान के महत्वपूर्ण सूत्र ‘मेक इंडिया’ के संदर्भ में बस इतना ही कहा था कि भारत की कंपनियों को चीन के साथ इस प्रकार संबंध रखना चाहिए जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर आंच आने की संभावना न रहे। जयशंकर चीन से चीजें आयात करने के संदर्भ में बोले कि चीन से चीजें मंगाने की बजाय अगर भारत में कहीं वह उपलब्ध है तो प्राथमिकता चीन को न दें। भारत के उद्यमी भारत के विकल्प के साथ व्यवहार करें तो उत्तम। ऐसा करना देश की सुरक्षा की दृष्टि से बेहतर रहेगा।
भारतीय विदेश मंत्री के ऐसा कहने का गलत अर्थ निकालते हुए चीन सत्ता के कथित भोंपू ग्लोबल टाइम्स ने अपने विश्लेषण में लिखा कि देश की सुरक्षा का ध्यान रखने वाला जयशंकर का बयान एक प्रकार से भारत के सामान और मेक इन इंडिया को समर्थन करने जैसा है। इससे भारत सरकार घरेलू उद्यमों को भले आगे बढ़ाने का संकेत करता है परन्तु यह बाजार को मर्यादित करते हुए कारोबार में अड़चन लगाने जैसा भी है। इससे बेशक भारत के आर्थिक हित प्रभावित होंगे।
चीनियों की नजर में ‘इधर कुछ समय से भारत का सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का अनुपात 17 प्रतिशत के आसपास पर बना हुआ है।’ लेकिन चीन के विश्लेषक शायद इस बात पर गौर नहीं कर रहे कि आज चीन की अर्थव्यवस्था डगमगा चुकी है। विदेशी कंपनियां अब वहां निवेश से दूर हो रही हैं और उनका गंतव्य अब भारत बना है। वे यह भी नहीं देख रहे हैं कि आज जहां पश्चिम के अधिकांश बड़े देशों की आर्थिक हालत पतली है, भारत ऐसी अर्थव्यवस्था है जो स्थिर है और आगे की ओर जा रही है।
चीनी अखबार आगे लिखता है कि इस प्रकार की संरक्षण देने जैसी भारत की नीतियां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता का कम करता है। यह ऐसा दिखाता है जैसे चीन का विनिर्माण और औद्योगिक आधार कमजोर है। भारत सरकार चीन से सामान मंगाने पर रोक लगाने की कोशिश करती रही है लेकिन तो भी कारोबारी साझेदारी में आज भी चीन भारत का सबसे बड़ा साझीदार है।
असल में साल 2023-24 की बात करें तो भारत—चीन व्यापार कुल 118.4 अरब डॉलर तक पहुंचा था। चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स इस विश्लेषण में यह भी जोड़ता है कि भारत चीन की कंपनियों को परेशान करता है। कहा कि भारत लापरवाही दिखाते हुए अपनी कंपनियों को भले संरक्षण देने की बात करे, वह राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने चीन की कंपनियों पर दबाव डाले, लेकिन ऐसा करना भारत की आर्थिक तरक्की में अड़चन डाल सकता है।
अखबार लिखता है कि भारत ने साल 2014 में यह मेक इन इंडिया अभियान शुरू किया था। तब भारत का लक्ष्य था 16 प्रतिशत विनिर्माण को 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद के 25 प्रतिशत तक ले जाना। लेकिन भारत अपने उस लक्ष्य से काफी पीछे दिखता है।
चीनियों की नजर में ‘इधर कुछ समय से भारत का सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण का अनुपात 17 प्रतिशत के आसपास पर बना हुआ है।’ लेकिन चीन के विश्लेषक शायद इस बात पर गौर नहीं कर रहे कि आज चीन की अर्थव्यवस्था डगमगा चुकी है। विदेशी कंपनियां अब वहां निवेश से दूर हो रही हैं और उनका गंतव्य अब भारत बना है। वे यह भी नहीं देख रहे हैं कि आज जहां पश्चिम के अधिकांश बड़े देशों की आर्थिक हालत पतली है, भारत ऐसी अर्थव्यवस्था है जो स्थिर है और आगे की ओर जा रही है।
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